Type Here to Get Search Results !

ADS5

ADS2

भारत में कमजोर होता लोकतंत्र और मोदी सरकार की ग्यारह वर्षों की शासन नीति पर सवाल ?

 भारत जो कभी सबसे बड़ा लोकतंत्र कहलाता था आज एक ऐसे दौर से गुजर रहा है जहाँ लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर किया जा रहा है अभिव्यक्ति की आज़ादी पर पहरा बिठाया जा रहा है और जनता की आवाज़ को दबाया जा रहा है दो हजार चौदह में जब नरेंद्र मोदी सरकार सत्ता में आई थी तब उन्होंने नए भारत का सपना दिखाया था लेकिन ग्यारह वर्षों के शासन के बाद यह सवाल उठने लगा है कि यह नया भारत क्या वास्तव में लोकतांत्रिक है या फिर हम एक छद्म तानाशाही की ओर बढ़ रहे हैं

सरकारी एजेंसियों का दुरुपयोग मीडिया पर शिकंजा न्यायपालिका पर दबाव और विपक्ष को कमजोर करने की रणनीति यह सभी संकेत देते हैं कि भारत अब उसी दिशा में बढ़ रहा है जिस दिशा में दुनिया के कई अन्य देशों में तानाशाही शासन लागू हुआ है सरकारी संस्थाओं को एक ही राजनीतिक दल के हित में इस्तेमाल किया जा रहा है जो लोकतंत्र की मूल आत्मा के विपरीत है

पत्रकारों पर हमले मीडिया की स्वतंत्रता पर संकट

लोकतंत्र में मीडिया को चौथा स्तंभ माना जाता है लेकिन भारत में इस स्तंभ को लगातार कमजोर किया जा रहा है पत्रकारों को डराया जा रहा है उन पर झूठे मुकदमे लगाए जा रहे हैं और मीडिया संस्थानों को आर्थिक और कानूनी दबाव में लाकर उनकी आवाज को बंद करने की कोशिश की जा रही है

कई पत्रकारों की गिरफ्तारी इस ओर संकेत करती है कि अब मीडिया को स्वतंत्रता से काम करने की अनुमति नहीं दी जा रही है भोपाल में पत्रकार कुलदीप सिंगोरिया को महज एक संदेह के आधार पर गिरफ्तार कर लिया गया था इसी तरह उत्तर प्रदेश में हाथरस कांड की रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकार को बिना किसी ठोस सबूत के जेल भेज दिया गया इसी तरह अल्ट न्यूज के पत्रकार मोहम्मद जुबैर को भी एक पुराने ट्वीट के आधार पर गिरफ्तार किया गया यह घटनाएँ स्पष्ट करती हैं कि अब मीडिया की स्वतंत्रता को सीमित किया जा रहा है

वहीं मीडिया संस्थानों पर भी सरकारी दबाव बढ़ रहा है एनडीटीवी बीबीसी और दैनिक भास्कर जैसी संस्थाओं पर छापे मारे गए कई संपादकों को उनके पदों से हटाने के लिए मालिकों पर दबाव डाला गया सरकार चाहती है कि मीडिया केवल उनकी प्रशंसा करे और उनकी गलत नीतियों पर सवाल न उठाए

सरकारी एजेंसियों का दुरुपयोग विपक्ष को खत्म करने की साजिश

लोकतंत्र में सरकारी एजेंसियाँ निष्पक्ष रूप से काम करती हैं लेकिन भारत में अब यह एजेंसियाँ सरकार के राजनीतिक हितों को साधने का एक साधन बन गई हैं केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो प्रवर्तन निदेशालय और आयकर विभाग जैसी एजेंसियाँ अब केवल सरकार के विरोधियों पर ही कार्रवाई करती हैं

अरविंद केजरीवाल को बार बार प्रवर्तन निदेशालय के समन भेजे गए तृणमूल कांग्रेस के नेताओं पर लगातार केंद्रीय एजेंसियों का शिकंजा कसा गया लालू यादव के परिवार के खिलाफ कई बार छापेमारी की गई लेकिन दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी के किसी भी बड़े नेता के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई यह स्पष्ट करता है कि इन एजेंसियों का इस्तेमाल अब केवल राजनीतिक प्रतिशोध के लिए किया जा रहा है

न्यायपालिका पर सरकार का बढ़ता दबाव

न्यायपालिका किसी भी लोकतंत्र की रीढ़ होती है लेकिन भारत में अब न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर भी सवाल उठने लगे हैं कई ऐसे उदाहरण देखने को मिले हैं जब सरकार के खिलाफ फैसले आने के बाद न्यायाधीशों को निशाना बनाया गया या फिर उनकी नियुक्तियों में हस्तक्षेप किया गया

सीबीआई जज लोया की रहस्यमयी मौत आज तक एक अनसुलझी पहेली बनी हुई है जज लोया एक महत्वपूर्ण मामले की सुनवाई कर रहे थे जिसमें भाजपा के बड़े नेता शामिल थे उनकी मृत्यु संदिग्ध परिस्थितियों में हुई लेकिन इस मामले की निष्पक्ष जांच तक नहीं की गई

वहीं चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर भी सवाल उठने लगे हैं दो हजार उन्नीस के लोकसभा चुनावों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह द्वारा आचार संहिता के उल्लंघन के कई मामले सामने आए लेकिन उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई जबकि विपक्षी नेताओं को तुरंत नोटिस जारी किए गए यह सब संकेत करते हैं कि अब लोकतांत्रिक संस्थाएँ निष्पक्ष नहीं रही हैं

सोशल मीडिया पर सेंसरशिप सरकार की नीतियों की आलोचना पर रोक

सरकार अब केवल पारंपरिक मीडिया ही नहीं बल्कि सोशल मीडिया पर भी सेंसरशिप लागू कर रही है ट्विटर और फेसबुक पर सरकार की आलोचना करने वाले पोस्ट हटा दिए जाते हैं कई पत्रकारों और एक्टिविस्ट्स के अकाउंट बंद कर दिए गए हैं

पिछले कुछ वर्षों में पेगासस जासूसी कांड ने इस बात को और स्पष्ट कर दिया कि सरकार अब अपने ही नागरिकों की जासूसी कर रही है विपक्षी नेताओं पत्रकारों और जजों के फोन हैक किए गए और उनकी निजी बातचीत तक सुनी गई इस मामले में सरकार ने किसी भी तरह की निष्पक्ष जांच नहीं करवाई जिससे यह सवाल उठता है कि क्या भारत अब एक निगरानी राज्य बन गया है

निष्कर्ष क्या भारत अब में लोकतंत्र नहीं रहा

आज भारत में मीडिया को दबा दिया गया है सरकारी एजेंसियाँ अब केवल राजनीतिक प्रतिशोध के लिए इस्तेमाल की जा रही हैं न्यायपालिका पर दबाव बढ़ रहा है और सोशल मीडिया पर भी सेंसरशिप लागू कर दी गई है यह सभी संकेत दर्शाते हैं कि भारत अब एक मजबूत लोकतंत्र नहीं रहा बल्कि यह धीरे धीरे एक अधिनायकवादी शासन की ओर बढ़ रहा है

अगर जनता ने इस प्रवृत्ति को समय रहते नहीं रोका तो आने वाले वर्षों में भारत में केवल दिखावटी चुनाव होंगे और जनता की आवाज को पूरी तरह से दबा दिया जाएगा अब यह भारत की जनता पर निर्भर करता है कि वह अपने लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए संघर्ष करती है या फिर एक तानाशाही शासन को स्वीकार कर लेती है

ये भी पढ़े 

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

ADS3

ADS4