भारतीय टीवी पत्रकारिता में एक और बड़ा भूचाल आ गया है। एबीपी न्यूज़ की चर्चित एंकर चित्रा त्रिपाठी और उनके पति, वरिष्ठ पत्रकार अतुल अग्रवाल, ने 16 वर्षों की शादी के बाद तलाक लेने का फैसला किया है। यह ख़बर केवल उनके व्यक्तिगत जीवन से जुड़ी नहीं है, बल्कि उस पत्रकारिता के प्रभाव को भी उजागर करती है, जो निष्पक्षता छोड़ सत्ता की भक्ति में लीन हो जाती है। देश में नफरत और ध्रुवीकरण की राजनीति को मीडिया के माध्यम से बढ़ावा देने वाली चित्रा त्रिपाठी का अपना परिवार अब टूट चुका है।
क्या पत्रकारिता ने बिखेर दिया चित्रा त्रिपाठी का घर?
चित्रा त्रिपाठी ने अपने एक्स (पूर्व में ट्विटर) अकाउंट पर अपने तलाक की घोषणा करते हुए लिखा, “16 शानदार साल साथ बिताने के बाद, हमने कुछ समय पहले ही अलग होने की योजना बनाई और अब हम इसे औपचारिक रूप देने के लिए तैयार हैं – पति-पत्नी के रूप में नहीं, बल्कि सह-माता-पिता और परिवार के रूप में।” उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वे अपने बेटे की परवरिश मिलकर करेंगे और एक-दूसरे के परिवारों के प्रति सम्मान बनाए रखेंगे।
अतुल अग्रवाल ने भी अपने सोशल मीडिया पोस्ट में तलाक को लेकर प्रतिक्रिया दी। उन्होंने लिखा, “होइहि सोइ जो राम रचि राखा। को करि तर्क बढ़ावै साखा।। अस कहि लगे जपन हरिनामा। गईं सती जहँ प्रभु सखधामा।। सब अच्छा है, आगे भी अच्छा ही होगा। पत्नी का प्रत्येक निर्णय आज तक लागू होता रहा है, तो आज क्यों नहीं?”
चित्रा त्रिपाठी और अतुल अग्रवाल के तलाक की असली वजह क्या है?
दोनों के रिश्ते में आई दरार की शुरुआत 2022 में हुई, जब अतुल अग्रवाल पर झूठी लूट की कहानी गढ़ने का आरोप लगा था। नोएडा पुलिस की जांच में यह घटना फर्जी निकली, जिससे उनकी छवि को भारी नुकसान पहुंचा। इसके बाद से ही दोनों के बीच मतभेद गहराने लगे। सूत्रों के अनुसार, इस घटना के बाद चित्रा त्रिपाठी ने तलाक की अर्जी दायर कर दी थी।
इस घटना ने उनके निजी और पेशेवर जीवन पर भी असर डाला। मीडिया में सक्रियता बनाए रखने के लिए उन्होंने अपने परिवार को प्राथमिकता देने के बजाय अपने करियर को तवज्जो दी, जिससे दोनों के बीच दूरियां और बढ़ गईं।
क्या नफरत की पत्रकारिता ही इस तलाक की जड़ है?
चित्रा त्रिपाठी को अक्सर "गोदी मीडिया" का चेहरा कहा जाता है, जो सत्ता की चाटुकारिता में लिप्त पत्रकारों की सूची में गिनी जाती हैं। उनका पत्रकारिता करियर विवादों से भरा रहा है। वे टीवी डिबेट्स में नफरत फैलाने वाले नैरेटिव को हवा देने, विपक्ष को कठघरे में खड़ा करने और सत्ता समर्थक खबरें दिखाने के लिए आलोचना झेल चुकी हैं। ऐसे में, जब उनके अपने परिवार की नींव हिल गई, तो सोशल मीडिया पर लोगों ने इसे "न्याय" करार दिया।
सोशल मीडिया पर उमड़ी प्रतिक्रियाएँ – सहानुभूति या तंज?
उनके तलाक की ख़बर सामने आने के बाद सोशल मीडिया पर जबरदस्त प्रतिक्रियाएँ आईं। कई लोगों ने सहानुभूति दिखाई, तो कुछ ने तंज कसा। एक यूजर ने लिखा, “देश को बांटने वाली पत्रकारिता करने वाली एंकर का अपना घर भी नहीं बचा बंटने से। भगवान की लाठी बिना आवाज़ के होती है।”
एक अन्य यूजर ने कटाक्ष करते हुए कहा, “चित्रा त्रिपाठी को सत्ता की चाटुकारिता करने के लिए जाना जाता है। अब उनका अपना परिवार बिखर गया, यह सोचने वाली बात है कि नफरत फैलाने वाले खुद भी इस आग से बच नहीं पाते।”
वहीं कुछ लोगों ने इसे महिलाओं के अधिकारों और स्वतंत्रता से भी जोड़ा। एक यूजर ने लिखा, “चित्रा त्रिपाठी एक सफल महिला हैं और उन्हें अपनी शर्तों पर जीने का हक है। व्यक्तिगत जीवन में कठिनाइयाँ आ सकती हैं, लेकिन यह किसी के पेशेवर कौशल का निर्धारण नहीं करता।”
क्या तलाक के बाद भी बेटे की परवरिश में साथ रहेंगे चित्रा और अतुल?
चित्रा त्रिपाठी और अतुल अग्रवाल ने स्पष्ट किया है कि वे अपने बेटे की परवरिश में साथ रहेंगे। दोनों ने कहा कि वे एक-दूसरे के परिवारों के प्रति सम्मान बनाए रखेंगे और अपने बेटे के लिए हमेशा साथ खड़े रहेंगे। चित्रा ने लिखा, “हमारा बेटा हमारी प्राथमिकता है, और हम उसकी भलाई के लिए हर संभव प्रयास करेंगे।”
क्या तलाक के बाद बदलेगी चित्रा त्रिपाठी की पत्रकारिता?
तलाक के बाद चित्रा त्रिपाठी के पेशेवर जीवन पर इसका क्या असर पड़ेगा, यह देखने वाली बात होगी। वे फिलहाल एबीपी न्यूज़ की प्रमुख एंकर के रूप में कार्यरत हैं और उनकी छवि को लेकर दर्शकों में मिश्रित राय है।
वहीं, अतुल अग्रवाल हिंदी खबर न्यूज़ चैनल के प्रधान संपादक के रूप में कार्यरत हैं। हालांकि, 2022 की घटना के बाद उनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठे थे, लेकिन उन्होंने अपने करियर को आगे बढ़ाने का प्रयास जारी रखा है।
क्या चित्रा त्रिपाठी का तलाक पत्रकारिता की असफलता का प्रतीक है?
चित्रा त्रिपाठी और अतुल अग्रवाल का तलाक केवल एक निजी मामला नहीं है, बल्कि यह उस पत्रकारिता की विफलता का भी प्रतीक है, जो निष्पक्षता छोड़कर सत्ता की चाटुकारिता में लिप्त हो जाती है। यह मामला बताता है कि जो लोग समाज में नफरत का बीज बोते हैं, वे खुद भी इससे बच नहीं पाते।
जहाँ एक तरफ यह तलाक व्यक्तिगत स्तर पर कठिन फैसला है, वहीं यह उस बड़ी सच्चाई को भी उजागर करता है कि नफरत और ध्रुवीकरण की राजनीति केवल समाज को ही नहीं, बल्कि इसे बढ़ावा देने वालों के निजी जीवन को भी प्रभावित करती है। अब देखना यह होगा कि चित्रा त्रिपाठी इस मुश्किल दौर से कैसे उबरती हैं और उनकी पत्रकारिता किस दिशा में आगे बढ़ती है।
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