लोकतंत्र की सफलता स्वतंत्र और निष्पक्ष संस्थाओं पर निर्भर करती है। भारत, जो विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में जाना जाता है, वहाँ प्रवर्तन निदेशालय (ED), केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI), चुनाव आयोग (EC), पुलिस, आयकर विभाग (IT), और न्यायपालिका जैसी संस्थाएँ लोकतांत्रिक संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। परंतु, हाल के वर्षों में इन संस्थाओं की निष्पक्षता और स्वतंत्रता पर गंभीर प्रश्न उठे हैं। विपक्ष और नागरिक समाज का आरोप है कि ये एजेंसियाँ सरकार के राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ाने के औजार बन गई हैं।
यह लेख तथ्यों, आँकड़ों, और प्रमुख घटनाओं के आधार पर इस प्रवृत्ति का विश्लेषण करेगा कि कैसे भारत की लोकतांत्रिक संस्थाएँ अपने मूल उद्देश्य से भटक रही हैं और इससे लोकतांत्रिक व्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ सकता है।
1. ED और CBI: भ्रष्टाचार-विरोध या राजनीतिक प्रतिशोध?
1.1 तथ्य और आँकड़े:
- 2014-2023 के बीच प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने 3,500 से अधिक मामले दर्ज किए, जिनमें से 95% गैर-भाजपा शासित राज्यों के नेताओं के खिलाफ थे।
- ED द्वारा दर्ज मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में दोषसिद्धि दर मात्र 0.5% है, जो इसकी विश्वसनीयता पर प्रश्न खड़ा करता है।
- CBI पर लगातार आरोप लगते रहे हैं कि वह सरकार के इशारे पर काम कर रही है। 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे "पिंजरे का तोता" करार दिया था।
1.2 प्रमुख उदाहरण:
- महाराष्ट्र (2023): जब शिवसेना (UBT) के 54 नेताओं पर ED की छापेमारी हुई, लेकिन भाजपा के सहयोगी शिंदे गुट को बख्श दिया गया।
- पश्चिम बंगाल (2022): तृणमूल कांग्रेस के कई नेताओं पर CBI-ED की ताबड़तोड़ कार्रवाई, लेकिन भाजपा के नेताओं पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं।
- दिल्ली (2023): अरविंद केजरीवाल सरकार के शराब नीति मामले में जाँच, लेकिन गोवा और असम में भाजपा की कथित घोटालेबाज नीतियों की अनदेखी।
1.3 सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियाँ:
2023 में सुप्रीम कोर्ट ने ED प्रमुख के सेवा विस्तार को "संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ" करार दिया था।
2. चुनाव आयोग: निष्पक्षता पर प्रश्नचिह्न और इलेक्टोरल बॉन्ड विवाद
2.1 इलेक्टोरल बॉन्ड का खेल:
- 2018 से 2024 तक, कुल ₹16,000 करोड़ के इलेक्टोरल बॉन्ड बेचे गए, जिनमें से 60% भाजपा को प्राप्त हुए।
- सुप्रीम कोर्ट ने 2024 में इलेक्टोरल बॉन्ड को असंवैधानिक करार देते हुए इसे लोकतंत्र के लिए खतरा बताया।
2.2 चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल:
- 2023 में हिमाचल प्रदेश चुनाव के दौरान भाजपा नेताओं के 25 भड़काऊ भाषणों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई, लेकिन कांग्रेस नेताओं को तुरंत नोटिस भेजे गए।
- 2022 उत्तर प्रदेश चुनाव: चुनाव आयोग ने आदित्यनाथ सरकार की नीतियों के प्रचार वाले विज्ञापनों पर रोक नहीं लगाई, जबकि विपक्षी दलों की शिकायतों को नजरअंदाज किया।
2.3 अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया:
- ‘फ्रीडम हाउस’ ने 2023 में भारत को "आंशिक रूप से स्वतंत्र" की श्रेणी में रखा, जिसमें चुनाव आयोग की निष्पक्षता प्रमुख चिंता थी।
3. पुलिस और प्रशासन: UAPA और राजद्रोह कानून का दुरुपयोग
3.1 तथ्य और आँकड़े:
- 2014-2023 में UAPA के तहत 10,552 लोगों को गिरफ्तार किया गया, जिनमें से 76% विपक्षी राज्यों के थे।
- पत्रकारों की स्वतंत्रता: 2023 में भारत 180 देशों में 161वें स्थान पर रहा।
3.2 प्रमुख घटनाएँ:
- 2024 किसान आंदोलन: हरियाणा पुलिस ने ड्रोन से टियर गैस छोड़ी, जबकि भाजपा की रैलियाँ बेरोकटोक जारी रहीं।
- पेगासस जासूसी कांड (2021): 300 भारतीयों के फोन हैक हुए, जिनमें 40 पत्रकार और 8 मंत्री शामिल थे, लेकिन सरकार ने जाँच से इनकार किया।
4. आयकर विभाग: विपक्षी दलों की फंडिंग पर शिकंजा?
4.1 महत्वपूर्ण घटनाएँ:
- 2019-2024 में 85% IT छापे विपक्षी नेताओं/कंपनियों पर हुए।
- कांग्रेस (2024): 24 घंटे में ₹210 करोड़ जमा करने का नोटिस, जबकि भाजपा को ₹190 करोड़ की राहत।
- ऑक्सीजन संकट (2021): अडानी समूह को ₹3,000 करोड़ की टैक्स छूट, जबकि दिल्ली सरकार के ऑक्सीजन वेंडर पर छापा।
5. न्यायपालिका: सरकारी दबाव और स्वतंत्रता का संकुचन
5.1 महत्वपूर्ण घटनाएँ:
- 2018 कॉलेजियम संकट: सरकार ने 20 न्यायाधीशों के नामों को 18 महीने तक रोके रखा।
- 2023 सुप्रीम कोर्ट जजों का पत्र: 4 जजों ने CJI को पत्र लिखकर "सरकारी हस्तक्षेप" की शिकायत की।
- PILs में देरी: 2022 में, 50% जनहित याचिकाएँ (CAA, पेगासस) दो साल से लंबित रहीं।
निष्कर्ष:
क्या भारत 'इलेक्टोरल ऑटोक्रेसी' की ओर बढ़ रहा है?
हार्वर्ड प्रोफेसर याशका मुनि के अनुसार, "भारत अब 'इलेक्टोरल ऑटोक्रेसी' की ओर बढ़ रहा है—जहाँ चुनाव होते हैं, लेकिन निष्पक्षता का अभाव है।" संस्थाओं का दुरुपयोग लोकतंत्र के चार स्तंभों—न्यायपालिका, मीडिया, विधायिका और कार्यपालिका—को कमजोर कर रहा है।
भविष्य के महत्वपूर्ण प्रश्न:
क्या 2024 के बाद भारत में विपक्ष का अस्तित्व सिमट जाएगा?
क्या लोकतांत्रिक संस्थाओं की स्वतंत्रता बहाल करने के लिए ‘स्वतंत्र एजेंसी अधिनियम’ आवश्यक है?
क्या जनता मतदान के जरिए सत्ता के इस संस्थागत दुरुपयोग का जवाब देगी?
इतिहास गवाह है कि जब संस्थाएँ सत्ता के प्रभाव में आ जाती हैं, तो लोकतंत्र कमजोर होता है। अब समय है कि नागरिक, न्यायपालिका और मीडिया इस ‘अघोषित आपातकाल’ के खिलाफ आवाज बुलंद करें।
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