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संभल की ऐतिहासिक जामा मस्जिद का नाम बदलने की कोशिश? ASI के 'जुमा मस्जिद' बोर्ड पर बवाल, मस्जिद कमेटी ने जताई आपत्ति

उत्तर प्रदेश के संभल जिले की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण शाही जामा मस्जिद एक बार फिर विवादों की केंद्रबिंदु बन गई है। इस बार विवाद मस्जिद के नाम को लेकर खड़ा हुआ है, जिसमें भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की भूमिका को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं। मस्जिद कमेटी ने आरोप लगाया है कि ASI द्वारा मस्जिद के बाहर लगाए जा रहे नए सूचना बोर्ड पर "जामा मस्जिद" के स्थान पर "जुमा मस्जिद" लिखा गया है, जो न सिर्फ ऐतिहासिक दस्तावेजों के विरुद्ध है बल्कि एक "गलत परंपरा" की शुरुआत भी है।

1927 के समझौते का हवाला, 'जामा' नाम की पुष्टि

मस्जिद कमेटी के उप सचिव मशहूद अली फारूखी के अनुसार, वर्ष 1927 में ASI और मस्जिद प्रबंधन समिति के बीच हुए लिखित समझौते में मस्जिद का नाम स्पष्ट रूप से "जामा मस्जिद" के रूप में दर्ज है। यही नाम शताब्दियों से धार्मिक, सामाजिक और ऐतिहासिक अभिलेखों में प्रयुक्त होता रहा है।

"जब ऐतिहासिक रिकॉर्ड में ‘जामा मस्जिद’ दर्ज है, तो ASI को किसी भी प्रकार से नाम बदलने का अधिकार नहीं है," – मशहूद अली फारूखी

 

‘जुमा मस्जिद’ नाम का कोई ऐतिहासिक या भाषाई आधार नहीं

मस्जिद कमेटी का कहना है कि ‘जुमा मस्जिद’ शब्द का न तो ऐतिहासिक कोई संदर्भ है और न ही यह आम प्रचलन में है। फारूखी बताते हैं कि “जामा” शब्द उर्दू और फारसी परंपरा में मुख्य congregational मस्जिद के लिए प्रयोग होता है, जबकि “जुमा” केवल एक दिन विशेष (Friday) को दर्शाता है। साथ ही यह भी तर्क दिया गया कि "जुमा मस्जिद" नाम प्रचलित नहीं है, जबकि "शाही जामा मस्जिद" नाम सदियों से सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक रहा है।

ASI के बचाव में अधिवक्ता की दलील

ASI के अधिवक्ता विष्णु कुमार शर्मा का कहना है कि मस्जिद पहले से ही संरक्षित स्मारक के अंतर्गत सूचीबद्ध है और सूचना बोर्ड परिसर के भीतर लगाया गया था। नया बोर्ड केवल बाहर स्थानांतरित किया जा रहा है। बोर्ड पर किस नाम का प्रयोग किया जाए — यह ASI की सुविधा के अनुसार तय किया गया है।

राजनीतिक और धार्मिक साजिश की भी आशंका

कमेटी ने आरोप लगाया कि यह केवल नाम बदलने का मामला नहीं है बल्कि पूरे धार्मिक और ऐतिहासिक संदर्भ को बदलने की सुनियोजित कोशिश है। यह भी आरोप लगाया गया है कि जब पुरातात्विक सर्वेक्षणों से किसी तरह की मंदिर संरचना का प्रमाण नहीं मिला, तो अब प्रशासनिक तरीकों से नाम परिवर्तन जैसे हथकंडे अपनाए जा रहे हैं।

पूर्व में भी हुआ था टकराव

गौरतलब है कि 24 नवंबर 2024 को मस्जिद परिसर में हुए एक सर्वे के दौरान विवाद और तनाव पैदा हो गया था। इसके बाद से यह मस्जिद लगातार चर्चा में बनी हुई है। वहीं, 19 नवंबर 2024 को चंदौसी अदालत में दाखिल याचिका में भी मस्जिद का नाम ‘जामी मस्जिद’ लिखा गया था, जिस पर भी मस्जिद कमेटी ने आपत्ति दर्ज कराई थी।

मामले के गंभीर परिणाम हो सकते हैं

मस्जिद कमेटी के अधिवक्ता शकील वारसी का कहना है कि इस तरह के कदम देश की सांप्रदायिक सौहार्दता को प्रभावित कर सकते हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि यह गलत नामांकन नहीं हटाया गया, तो मस्जिद कमेटी कानूनी और लोकतांत्रिक सभी विकल्पों पर विचार करेगी।


निष्कर्ष

संभल की शाही जामा मस्जिद का नाम बदलकर 'जुमा मस्जिद' करना न केवल एतिहासिक तथ्यों के विपरीत है, बल्कि यह पूरे सामाजिक ताने-बाने में एक नया विवाद उत्पन्न कर सकता है। मस्जिद प्रबंधन समिति की मांगें स्पष्ट हैं — मूल नाम की पुनर्स्थापना और ऐतिहासिक समझौतों का सम्मान।

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