भूमिका: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री एस. जयशंकर के नेतृत्व में भारत की विदेश नीति और वैश्विक कूटनीति को लेकर एक बड़ा सवाल उठ खड़ा हुआ है। हाल ही में अमेरिका द्वारा 104 भारतीय प्रवासियों को जबरन सैन्य विमान में हथकड़ी और बेड़ियों के साथ वापस भेजने की घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। यह न केवल भारत की अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा पर एक गहरा धक्का है, बल्कि सरकार की नाकामी का एक ऐतिहासिक दस्तावेज भी बन चुका है। जब कोलंबिया जैसे छोटे देश ने अपने नागरिकों की गरिमा के लिए अमेरिका के सामने कड़ा रुख अपनाया, तो भारत सरकार क्यों चुप रही? क्यों नहीं सरकार ने अपने नागरिकों के सम्मान की रक्षा के लिए ठोस कदम उठाए?
104 भारतीयों की बेड़ियों में वापसी: अमेरिका में ट्रंप प्रशासन के सत्ता में लौटने के बाद पहली बार भारतीय प्रवासियों को जबरन निर्वासित किया गया। 18 वर्षीय खुशप्रीत सिंह, जो हरियाणा के कुरुक्षेत्र से ताल्लुक रखते हैं, ने बताया कि अमेरिकी अधिकारियों ने उन्हें हथकड़ी पहनाकर सैन्य विमान में बैठा दिया। बुधवार को 104 भारतीयों को इसी तरह अमेरिका से भारत भेज दिया गया। उनके साथ अमानवीय व्यवहार किया गया, जिससे पूरे भारत में आक्रोश फैल गया।
कोलंबिया ने दिखाया साहस, भारत क्यों नहीं? जब अमेरिका ने कोलंबिया के नागरिकों को जबरन निर्वासित करने की कोशिश की, तो कोलंबिया के राष्ट्रपति गुस्तावो पेत्रो ने अमेरिकी सैन्य विमान को अपने देश में उतरने से रोक दिया। उन्होंने साफ कहा कि कोलंबिया अपने नागरिकों को सम्मानपूर्वक वापस लाएगा। इसके लिए कोलंबिया ने अपने वायुसेना के विमान भेजे, ताकि नागरिकों की गरिमा बनी रहे।
इसके विपरीत, भारत सरकार ने अपने नागरिकों को हथकड़ी और बेड़ियों में जकड़े हुए स्वीकार कर लिया। विदेश मंत्री जयशंकर ने संसद में इसे "पुरानी प्रक्रिया" कहकर टालने की कोशिश की, लेकिन यह कोई समाधान नहीं था। कांग्रेस के रणदीप सुरजेवाला और आम आदमी पार्टी के संजय सिंह सहित कई विपक्षी नेताओं ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दी।
विदेश मंत्रालय की विफलता: भारत सरकार का रुख पूरी तरह से नकारात्मक और असहाय दिखा। विदेश मंत्री जयशंकर ने संसद में बयान देते हुए कहा कि "हम अमेरिकी सरकार से बात कर रहे हैं कि निर्वासित किए जा रहे भारतीयों के साथ अमानवीय व्यवहार न हो।" लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या भारत सिर्फ अमेरिका से "बात" करने तक सीमित रहेगा? क्या यह सरकार इतनी कमजोर हो चुकी है कि अपने नागरिकों की गरिमा की रक्षा तक नहीं कर सकती?
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया और मोदी सरकार की चुप्पी: यह घटना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि के लिए घातक साबित हो रही है। भारत, जो खुद को एक उभरती हुई वैश्विक शक्ति बताता है, उसने इस मुद्दे पर अमेरिका के खिलाफ कोई ठोस कूटनीतिक कार्रवाई नहीं की।
वरिष्ठ सामरिक मामलों के विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी ने इस पूरे मामले पर टिप्पणी करते हुए कहा कि "मेक्सिको और कोलंबिया ने अपने प्रवासियों को सैन्य विमान में हथकड़ी लगाकर भेजने की अमेरिकी नीति को अस्वीकार कर दिया। लेकिन भारत ने इसे स्वीकार कर लिया और इसे एक 'सामान्य प्रक्रिया' बताकर अपना बचाव किया। यह भारत की कमजोरी को दर्शाता है।"
क्या भारत अमेरिका से डरता है? जेएनयू की एसोसिएट प्रोफेसर अपराजिता कश्यप का मानना है कि भारत की चुप्पी अमेरिका के साथ उसके संबंधों की वजह से है। "भारत, अमेरिका के साथ अपने कूटनीतिक संबंधों को खराब नहीं करना चाहता, इसलिए उसने कोलंबिया जैसा कड़ा रुख नहीं अपनाया। लेकिन सवाल यह है कि क्या किसी देश के साथ अच्छे संबंध रखने का मतलब यह होता है कि हम अपने नागरिकों का अपमान सहते रहें?"
भारत सरकार के लिए सवाल:
- जब कोलंबिया ने अपने नागरिकों को बेड़ियों में जकड़ने से इनकार किया, तो भारत ने क्यों नहीं किया?
- क्या भारत के नागरिकों के सम्मान की कोई कीमत नहीं है?
- क्या मोदी सरकार अमेरिका के खिलाफ कार्रवाई करने से डरती है?
- विदेश मंत्री ने अमेरिकी सरकार के इस अमानवीय व्यवहार के खिलाफ क्या ठोस कदम उठाए?
निष्कर्ष:
इस पूरे घटनाक्रम ने भारत की विदेश नीति की गंभीर विफलता को उजागर कर दिया है। यह मोदी सरकार के लिए एक चेतावनी है कि अगर वह अपने नागरिकों के सम्मान की रक्षा नहीं कर सकती, तो जनता उन्हें कभी माफ नहीं करेगी। कोलंबिया जैसे छोटे देश ने जो साहस दिखाया, क्या भारत सरकार भी वैसा कर सकती थी? अगर नहीं, तो यह मोदी सरकार की सबसे बड़ी कूटनीतिक असफलताओं में से एक होगी, जिसे इतिहास कभी नहीं भूलेगा।
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