आज के डिजिटल युग में, भारत दुनिया के सबसे बड़े टेलीकॉम उपभोक्ता बाजारों में से एक बन चुका है। लेकिन दुर्भाग्य से, इंटरनेट की गुणवत्ता और गति को लेकर आम जनता लगातार असंतुष्ट है। दिल्ली और उत्तर भारत के 200 किमी के दायरे में, वाई-फाई से लेकर मोबाइल नेटवर्क तक, सभी सेवाएं अत्यधिक धीमी गति से चल रही हैं। उपभोक्ता शिकायत कर-करके थक चुके हैं, लेकिन टेलीकॉम कंपनियां अपनी मनमानी जारी रखे हुए हैं। सवाल यह उठता है कि भारत जैसे तकनीकी रूप से प्रगतिशील देश में इंटरनेट सेवा इतनी खराब क्यों है, और सरकार इस मुद्दे पर कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठा रही?
रिलायंस जियो: मुफ्त की लत के बाद ग्राहकों से अन्याय
जब जियो ने बाजार में कदम रखा था, तो उसने मुफ्त सिम और तेज़ 4G इंटरनेट देकर पूरे भारत में डिजिटल क्रांति ला दी थी। लोग घंटों तक मुफ्त डेटा का आनंद लेते थे, लेकिन यह क्रांति महज एक मार्केटिंग रणनीति थी। अब स्थिति यह है कि 5G फोन रखने वाले ग्राहक भी इंटरनेट की ‘रेंगती’ हुई गति से जूझ रहे हैं। उपभोक्ता महंगे डेटा प्लान खरीद रहे हैं, लेकिन उन्हें उस स्तर की सेवा नहीं मिल रही जिसकी उन्हें उम्मीद थी। इंटरनेट की स्पीड इतनी धीमी हो चुकी है कि कई बार तो सामान्य वेब ब्राउज़िंग भी मुश्किल हो जाती है।
एयरटेल: कभी प्रीमियम सर्विस, अब ‘महंगा लेकिन बेकार’ ब्रांड
एयरटेल कभी भारत की सबसे भरोसेमंद टेलीकॉम कंपनी मानी जाती थी, लेकिन अब स्थिति बिल्कुल उलट चुकी है। न केवल इसके मोबाइल डेटा की गति गिर चुकी है, बल्कि एयरटेल फाइबर ब्रॉडबैंड भी लगातार अस्थिर रहता है। ग्राहक प्रीमियम कीमत चुका रहे हैं, लेकिन सेवा उतनी ही निराशाजनक होती जा रही है।
सबसे बड़ी समस्या यह है कि कंपनियों ने अपने रिचार्ज प्लान इस तरह डिजाइन किए हैं कि अगर आप अपना नंबर सक्रिय रखना चाहते हैं, तो आपको हर महीने रिचार्ज करना ही पड़ेगा—चाहे सेवा अच्छी हो या न हो। उपभोक्ताओं के पास कोई विकल्प ही नहीं बचा है।
अन्य कंपनियां: सब एक जैसे, बस नाम अलग-अलग
वोडाफोन-आइडिया (Vi) और बीएसएनएल जैसी कंपनियां भी किसी से पीछे नहीं हैं। Vi ग्राहकों को लुभाने के लिए कई ऑफर्स तो देती है, लेकिन इंटरनेट की स्पीड इतनी कम होती है कि वीडियो स्ट्रीमिंग और ऑनलाइन मीटिंग्स का सपना भी नहीं देखा जा सकता। दूसरी ओर, BSNL, जो कभी सरकारी क्षेत्र की सबसे मजबूत कंपनी थी, अब तकनीकी पिछड़ापन और धीमी गति की मिसाल बन चुकी है।
सरकार की चुप्पी: उपभोक्ताओं के साथ धोखा
भारत सरकार डिजिटल इंडिया का नारा देती है, लेकिन कभी भी टेलीकॉम कंपनियों की गैर-जिम्मेदाराना हरकतों पर कोई कार्रवाई नहीं करती।
- क्या आपने कभी सुना है कि भारत के टेलीकॉम मंत्री ने इन कंपनियों की मनमानी पर एक भी बयान दिया हो? नहीं!
- क्या आपने कभी देखा है कि टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (TRAI) ने इंटरनेट स्पीड को लेकर कंपनियों पर कोई कड़ी कार्रवाई की हो? नहीं!
सरकार का रवैया ऐसा है जैसे उसे उपभोक्ताओं की दिक्कतों से कोई फर्क ही नहीं पड़ता। हर टेलीकॉम कंपनी धड़ल्ले से मनमाने दाम वसूल रही है, लेकिन ग्राहकों को उनकी कीमत का सही मूल्य नहीं मिल रहा।
समाधान क्या है?
इस समस्या से निपटने के लिए सरकार को नए टेलीकॉम रेगुलेशन्स लागू करने होंगे और इन कंपनियों को ग्राहक-अनुकूल नीति अपनाने के लिए मजबूर करना होगा।
- इंटरनेट स्पीड पर न्यूनतम गारंटी: कंपनियों को वादे के मुताबिक न्यूनतम इंटरनेट स्पीड देनी होगी।
- मनमाने रिचार्ज प्लान पर प्रतिबंध: यदि कोई ग्राहक सेवा का उपयोग नहीं कर रहा, तो उसे अनावश्यक रिचार्ज के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए।
- ग्राहक शिकायत निवारण तंत्र: सरकार को टेलीकॉम कंपनियों पर सख्ती करनी होगी और उपभोक्ता शिकायतों का त्वरित समाधान सुनिश्चित करना होगा।
- प्रतिस्पर्धा बढ़ाने की जरूरत: बाजार में नए टेलीकॉम प्रदाताओं को प्रवेश करने दिया जाए ताकि उपभोक्ताओं के पास अधिक विकल्प हों।
निष्कर्ष
भारत का टेलीकॉम सेक्टर पूरी तरह से कंपनियों के नियंत्रण में है, जहां उपभोक्ता सिर्फ धोखे और मनमानी का शिकार हो रहे हैं।
मोबाइल डेटा और वाई-फाई सेवाओं की गुणवत्ता सुधारने के लिए न केवल सरकार को कठोर कदम उठाने होंगे, बल्कि उपभोक्ताओं को भी अपनी आवाज़ बुलंद करनी होगी। यदि हम चुपचाप मनमाने रिचार्ज और धीमे इंटरनेट को स्वीकार करते रहेंगे, तो ये कंपनियां कभी भी सुधार नहीं करेंगी। समय आ गया है कि हम अपनी शिकायतों को संगठित रूप से उठाएं और बेहतर डिजिटल सेवाओं के लिए दबाव बनाएं।
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