नई दिल्ली, 31 जनवरी 2025:
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को लेकर सोनिया गांधी के 'थका हुआ' बयान ने देश की राजनीति में हलचल मचा दी है। जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे देश की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति का अपमान करार दिया, वहीं विपक्ष ने राष्ट्रपति के कामकाज और उनके स्वतंत्र फैसलों पर सवाल उठाए हैं।
सोनिया गांधी का बयान और विपक्ष के तंज
कांग्रेस नेता सोनिया गांधी ने कहा कि देश को एक सक्रिय और सशक्त राष्ट्रपति चाहिए, लेकिन वर्तमान राष्ट्रपति 'थके हुए' लगते हैं। विपक्ष का कहना है कि राष्ट्रपति मुर्मू अब तक उन मुद्दों पर चुप रही हैं, जो देशहित के लिए बेहद अहम हैं।
एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने कहा, "हमने राष्ट्रपति को मणिपुर हिंसा, चीन के अतिक्रमण, और देश के भीतर बढ़ती समस्याओं पर कभी खुलकर बोलते नहीं देखा। यहां तक कि हाल ही में कुंभ मेले में हुए बड़े हादसे पर भी राष्ट्रपति की कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई।"
'रबर स्टांप' का आरोप
कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों का आरोप है कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू भाजपा के पक्ष में बयान देती हैं, और उनका स्वतंत्र विवेक देश में दिखाई नहीं देता। एक नेता ने तंज कसते हुए कहा, "यदि कभी राष्ट्रपति ने कोई बयान दिया भी है, तो वह भाजपा के पक्ष में ही रहा है। उनकी भूमिका अब तक केवल रबर स्टांप जैसी ही नजर आई है।"
पीएम मोदी का जवाब
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोनिया गांधी के बयान पर कड़ी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा, "यह बयान सिर्फ राष्ट्रपति का नहीं, बल्कि पूरे आदिवासी समाज का अपमान है। कांग्रेस ने बार-बार यह दिखाया है कि उन्हें आदिवासी और दलित समुदाय का नेतृत्व स्वीकार नहीं है।"
पीएम मोदी ने यह भी कहा कि राष्ट्रपति मुर्मू का चुनाव भारतीय लोकतंत्र में एक ऐतिहासिक कदम था, जिसे कांग्रेस पचा नहीं पा रही है।
भाजपा और विपक्ष के बीच बढ़ा टकराव
भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने कांग्रेस पर हमला बोलते हुए कहा, "सोनिया गांधी का यह बयान उनकी मानसिकता को दर्शाता है। राष्ट्रपति जैसे सर्वोच्च पद पर आसीन आदिवासी महिला का अपमान देश के संविधान और लोकतंत्र का अपमान है।"
वहीं, विपक्ष के नेताओं का कहना है कि राष्ट्रपति के कर्तव्य केवल औपचारिक नहीं होते, बल्कि उन्हें देशहित के लिए अपनी आवाज बुलंद करनी चाहिए। उन्होंने सवाल किया कि मणिपुर हिंसा, चीन के अतिक्रमण, और देश के भीतर बड़े हादसों पर राष्ट्रपति क्यों चुप रहीं?
जनता की नज़र में राष्ट्रपति की भूमिका
सामाजिक संगठनों और विश्लेषकों का कहना है कि राष्ट्रपति पद को स्वतंत्र और निष्पक्ष माना जाता है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में ऐसा लगा है कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू अपने संवैधानिक कर्तव्यों को निभाने के बजाय सत्तारूढ़ दल के विचारों को आगे बढ़ा रही हैं।
एक राजनीतिक विशेषज्ञ ने कहा, "देश की जनता राष्ट्रपति को 'रबर स्टांप' के रूप में देखती है। जब मणिपुर हिंसा और चीन के अतिक्रमण जैसे गंभीर मुद्दों पर उनकी चुप्पी टूटनी चाहिए थी, तब भी कोई प्रतिक्रिया नहीं आई।"
विवाद के राजनीतिक मायने
इस विवाद के राजनीतिक निहितार्थ गहरे हैं। 2024 के आम चुनाव से पहले भाजपा इस मुद्दे को अपनी पक्षधरता दिखाने के लिए भुनाएगी, जबकि कांग्रेस इसे राष्ट्रपति की स्वतंत्रता और संवैधानिक गरिमा का मुद्दा बनाकर चुनावी प्रचार में इस्तेमाल कर सकती है।
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