प्रयागराज, 1 फरवरी 2025 – महाकुंभ 2025 में हुई भगदड़ के दो दिन बाद भी स्थिति पूरी तरह स्पष्ट नहीं हो पाई है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, अब तक 30 लोगों की मौत और 60 के घायल होने की पुष्टि की गई है। लेकिन स्थानीय नागरिकों, प्रत्यक्षदर्शियों और स्वतंत्र पत्रकारों का दावा है कि वास्तविक संख्या इससे कहीं अधिक हो सकती है।
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प्रशासन की पारदर्शिता पर उठ रहे सवाल
स्थानीय नागरिकों और स्वतंत्र पत्रकारों का मानना है कि प्रशासन हादसे की भयावहता को कम करने का प्रयास कर रहा है। उनका आरोप है कि सरकार केवल 30 मृतकों की संख्या दिखाकर इस त्रासदी के प्रभाव को सीमित करने की कोशिश कर रही है। राज्य सरकार द्वारा सभी पुलिस थानों में केवल 30 शवों की तस्वीरें भेजी गई हैं, जबकि हजारों लोग अभी भी अपने लापता परिजनों को खोज रहे हैं।
घटनास्थल और आसपास के इलाकों में भय का माहौल व्याप्त है। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, सरकार और पुलिस के डर से लोग खुलकर बोलने से कतरा रहे हैं। यहां तक कि कुछ वरिष्ठ मीडिया संस्थानों को महाकुंभ स्थल पर जाने से भी रोका जा रहा है। वहीं, लापता लोगों के परिवार जब पुलिस के पास पहुंचते हैं, तो उन्हें कोई स्पष्ट जानकारी नहीं दी जा रही।
क्या हादसे के वास्तविक आंकड़े छुपाए जा रहे हैं?
प्रत्यक्षदर्शियों और सोशल मीडिया पत्रकारों का दावा है कि मृतकों की संख्या सरकारी दावों से कहीं अधिक हो सकती है। कुछ स्वतंत्र पत्रकारों ने यह आरोप लगाया है कि भगदड़ के बाद प्रशासन ने हजारों जूते-चप्पलों को एकत्र कर गंगा में बहा दिया, ताकि हादसे के वास्तविक पैमाने को छुपाया जा सके।
कई रिपोर्ट्स के अनुसार, स्थानीय अस्पतालों और शवगृहों में मृतकों की संख्या आधिकारिक आंकड़ों से कहीं ज्यादा हो सकती है। यहां तक कि कुछ पत्रकारों का दावा है कि मृतकों की संख्या 5000 से अधिक हो सकती है।
अब सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या प्रशासन इन शवों को गुप्त रूप से निपटाने की कोशिश कर रहा है? क्या इन हजारों शवों को गंगा में बहा दिया गया, या फिर कोई अन्य गुप्त तरीका अपनाया गया?
सरकार की चुप्पी और जनता का आक्रोश
यह मामला काफी संवेदनशील और गंभीर होता जा रहा है। सरकार की चुप्पी और जनता का बढ़ता आक्रोश इसे और अधिक तूल दे रहा है। राज्य प्रशासन का कहना है कि घटना की जांच जारी है और सीसीटीवी फुटेज का विश्लेषण किया जा रहा है, लेकिन सवाल यह है कि अगर मौतों की संख्या वास्तव में कम है, तो पुलिस और सरकार इस मामले में पूरी पारदर्शिता क्यों नहीं बरत रही?
स्वतंत्र पत्रकारों और स्थानीय लोगों का कहना है कि यह घटना महाकुंभ के इतिहास की सबसे भीषण त्रासदियों में से एक हो सकती है। सरकार पर इसे दबाने का आरोप लगाया जा रहा है, जिससे जनता का गुस्सा और बढ़ता जा रहा है। जनता अब पुलिस और सत्ता पक्ष पर सीधा निशाना साध रही है और ऐसा लग रहा है कि इस बार वे माफ करने के मूड में नहीं हैं।
अब देखना यह होगा कि क्या सरकार सच को सामने लाने के लिए कदम उठाएगी या यह मामला भी अन्य दबे हुए मामलों की तरह रहस्यमय तरीके से खत्म हो जाएगा।
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