मूवी रिव्यू: Girls Will Be Girls
एक सूक्ष्म और प्रभावशाली कहानी का अद्वितीय अनुभव
शूचि तलाटी की डेब्यू फिल्म Girls Will Be Girls एक गहन और विचारोत्तेजक कथा प्रस्तुत करती है, जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता, सामाजिक पाबंदियों और रिश्तों के जटिल ताने-बाने को बारीकी से उकेरती है। अमेज़न प्राइम वीडियो पर उपलब्ध यह इंडो-फ्रेंच सह-निर्माण Sundance Film Festival में दो पुरस्कार जीतने के साथ, दर्शकों और आलोचकों के बीच अपनी खास जगह बनाने में सफल रही है।
कहानी: प्रतिबंधों में फंसी स्वतंत्रता की खोज
फिल्म का फोकस मीरा प्रकाश (प्रीति पनिग्रही) पर है, जो एक होनहार स्कूल छात्रा है। मीरा न केवल अपनी कक्षा की टॉपर है बल्कि पहली बार अपने बोर्डिंग स्कूल की हेड प्रीफेक्ट बनने वाली छात्रा भी है। परंतु उसका जीवन उसकी शैक्षणिक सफलता से कहीं अधिक जटिल है।
मीरा अपने सहपाठी श्रीनिवास (केशव बिनॉय किरण) के साथ एक कोमल प्रेम कहानी में उलझती है। वहीं, उसकी मां अनीला (कानी कुश्रुति) लगातार उसकी निगरानी करती रहती है। एक ओर मीरा अपने भीतर उमड़ते भावनाओं और इच्छाओं को समझने की कोशिश करती है, तो दूसरी ओर उसे स्कूल के सख्त नियमों और अपनी मां की पाबंदियों का सामना करना पड़ता है।
लेखन और निर्देशन: बारीकी और गहराई का मेल
शूचि तलाटी का निर्देशन उनकी संवेदनशीलता और सूक्ष्म दृष्टि का प्रमाण है। उन्होंने कहानी को न केवल एक विशिष्ट महिला दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया है, बल्कि इसमें सामाजिक संरचनाओं और पितृसत्तात्मक सोच की तीखी आलोचना भी शामिल है।
कहानी मां-बेटी के संबंधों के माध्यम से यह दिखाती है कि कैसे एक पीढ़ी की अनुभवजनित कुंठाएं अगली पीढ़ी की आज़ादी पर बंधन बन जाती हैं।
फिल्म की पटकथा सामाजिक मानकों, महिला-पुरुष संबंधों और युवावस्था की पहली भावनाओं की खोज के विषयों को बेहद परिष्कृत तरीके से पेश करती है। यह कहानी कहीं भी अधिक नाटकीय नहीं होती, बल्कि अपने धीमे, लेकिन अर्थपूर्ण कथानक के जरिए दर्शकों को बांधे रखती है।
अभिनय: दो पीढ़ियों का टकराव
प्रीति पनिग्रही ने मीरा के किरदार में बेहतरीन काम किया है। उन्होंने एक युवा लड़की की जिज्ञासा, असुरक्षा और विद्रोह को बेहद सजीवता से प्रस्तुत किया है। कानी कुश्रुति, जो अनीला की भूमिका में हैं, हर दृश्य में अपने किरदार की जटिलता को बखूबी उभारती हैं।
मां-बेटी के बीच का रिश्ता फिल्म का केंद्र बिंदु है। अनीला जहां अपनी बेटी को अपने अनुभवों के आधार पर नियंत्रित करना चाहती है, वहीं मीरा अपनी इच्छाओं के जरिए स्वतंत्रता की तलाश करती है। दोनों के बीच के ये क्षण फिल्म को गहराई प्रदान करते हैं।
तकनीकी पहलू: सटीक और प्रभावी प्रस्तुति
फिल्म का तकनीकी पक्ष भी उतना ही मजबूत है। सिनेमैटोग्राफर जिह-ई पेंग ने हिमालय की पृष्ठभूमि को कहानी का एक जीवंत हिस्सा बना दिया है। फ्रेम में हर डिटेल कहानी के साथ मेल खाती है।
एडिटर अमृता डेविड का काम फिल्म की लय और प्रवाह को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाता है। संगीत और साउंड डिज़ाइन भी कहानी को और प्रभावी बनाते हैं, जो दर्शकों को भावनात्मक रूप से जोड़ते हैं।
कमज़ोरियां: धीमा कथानक और सीमित अपील
फिल्म की धीमी गति हर दर्शक के लिए उपयुक्त नहीं हो सकती। यह कहानी कुछ ऐसे बिंदुओं पर थोड़ी खिंची हुई महसूस होती है, जहां अधिक प्रभावी संपादन इसे और सटीक बना सकता था। साथ ही, फिल्म का अत्यधिक सूक्ष्म दृष्टिकोण इसे सीमित दर्शकों के लिए ही आकर्षक बनाता है।
फाइनल वर्डिक्ट
Girls Will Be Girls एक परिपक्व और विचारशील सिनेमा का बेहतरीन उदाहरण है। यह फिल्म समाज और परिवार के भीतर महिलाओं के संघर्षों को बारीकी से दर्शाती है। हालांकि, इसकी धीमी गति और सीमित अपील इसे मास ऑडियंस के लिए थोड़ा कठिन बना सकती है। फिर भी, गहराई और संवेदनशीलता को सराहने वाले दर्शकों के लिए यह एक अनिवार्य अनुभव है।
रेटिंग: ⭐⭐⭐⭐⭐ (3.6/5)