राज्यसभा उपसभापति हरिवंश ने कहा, “संवैधानिक पद की गरिमा को ठेस पहुंचाने का प्रयास”
नई दिल्ली | 20 दिसंबर 2024
राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के खिलाफ विपक्ष के INDIA गठबंधन द्वारा दायर अविश्वास प्रस्ताव को खारिज कर दिया है। प्रस्ताव को “गंभीर रूप से त्रुटिपूर्ण” और “संवैधानिक संस्थानों को बदनाम करने का प्रयास” बताया गया। विपक्ष ने 10 दिसंबर को यह प्रस्ताव दायर किया था, जिसमें धनखड़ पर “स्पष्ट पक्षपातपूर्ण” आचरण का आरोप लगाया गया था।
हालांकि इस फैसले ने सत्तारूढ़ दल को राहत दी है, लेकिन देश में धनखड़ की छवि को लेकर गहराते विवाद ने एक बार फिर राजनीतिक और सामाजिक चर्चाओं को गरमा दिया है। विपक्ष का कहना है कि धनखड़ का भाजपा समर्थक दृष्टिकोण अब किसी से छिपा नहीं है। हरियाणा और देश के अन्य हिस्सों में किसानों का बड़ा वर्ग, जो उनके अपने समुदाय का हिस्सा है, भी उन्हें सम्मान की नजर से नहीं देखता।
हरियाणा के किसान और धनखड़ की छवि
धनखड़, जो हरियाणा के झुंझुनू क्षेत्र से आते हैं, को कभी किसान समुदाय का प्रतिनिधि माना जाता था। लेकिन हाल के वर्षों में उनकी छवि में भारी गिरावट आई है। किसान आंदोलन के दौरान उपराष्ट्रपति के रुख और उनके सरकार समर्थक बयानों ने किसानों के बीच नाराजगी को और बढ़ा दिया।
हरियाणा के किसान संगठनों का कहना है कि धनखड़ ने कभी भी किसानों के मुद्दों पर खुलकर समर्थन नहीं किया। इसके बजाय, उन्हें सत्तारूढ़ पार्टी के पक्ष में बोलते देखा गया। एक किसान नेता ने कहा, “धनखड़ का व्यवहार अब साफ तौर पर भाजपा समर्थक हो गया है। एक संवैधानिक पद पर रहते हुए उनका इस तरह का पक्षपात अस्वीकार्य है। किसान उन्हें अब सम्मान की नजर से नहीं देखते।”
विपक्ष का आरोप: धनखड़ भाजपा के प्रवक्ता बन गए हैं
विपक्ष ने अपनी याचिका में धनखड़ पर सरकार की नीतियों को बढ़ावा देने और संवैधानिक मर्यादाओं का उल्लंघन करने का आरोप लगाया। विपक्षी नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा, “धनखड़ भाजपा के प्रवक्ता की तरह व्यवहार कर रहे हैं। उनका संवैधानिक पद से हटना जरूरी है, वरना पक्षपात जारी रहेगा।”
धनखड़ पर लगाए गए आरोपों में यह भी कहा गया है कि उन्होंने संसद के सत्रों में विपक्ष की आवाज दबाने और सरकार की आलोचना को नजरअंदाज करने की प्रवृत्ति अपनाई है। विपक्षी नेताओं का कहना है कि उपराष्ट्रपति का कर्तव्य एक तटस्थ मध्यस्थ का होता है, लेकिन धनखड़ ने बार-बार इस भूमिका को तोड़ा है।
हरिवंश का बचाव और प्रस्ताव की खामियां
उपसभापति हरिवंश ने विपक्ष की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि यह “जल्दबाजी में तैयार” किया गया और इसमें “प्रक्रियागत खामियां” थीं। उन्होंने यह भी कहा कि प्रस्ताव में तथ्यों की कमी थी और इसे केवल उपराष्ट्रपति की छवि खराब करने के उद्देश्य से तैयार किया गया था।
हरिवंश ने अपने फैसले में प्रस्ताव में प्रमुख खामियों का उल्लेख किया:
- प्रस्ताव का कोई स्पष्ट प्राप्तकर्ता या प्रस्तावित पाठ नहीं था।
- उपराष्ट्रपति के नाम की गलत वर्तनी की गई थी।
- आधारहीन मीडिया रिपोर्टों और असंगत संदर्भों का सहारा लिया गया।
उन्होंने कहा, “इस प्रस्ताव का उद्देश्य केवल प्रचार प्राप्त करना और संवैधानिक संस्थानों को कमजोर करना है। इसे खारिज किया जाना चाहिए।”
संवैधानिक पद की गरिमा और राजनीतिक पक्षपात
देश में संवैधानिक संस्थानों की भूमिका और उनकी गरिमा को लेकर पहले भी सवाल उठते रहे हैं। धनखड़ के खिलाफ यह प्रस्ताव एक बड़ी बहस का हिस्सा है कि क्या संवैधानिक पदाधिकारी राजनीति से ऊपर रह सकते हैं।
एक राजनीतिक विशेषज्ञ ने कहा, “धनखड़ जैसे संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति जब स्पष्ट रूप से सत्तारूढ़ पार्टी का समर्थन करता हुआ दिखाई देता है, तो यह केवल उनकी छवि को ही नहीं, बल्कि उस पद की प्रतिष्ठा को भी नुकसान पहुंचाता है।”
निष्कर्ष: विपक्ष का संदेश और भविष्य की राह
भले ही यह प्रस्ताव खारिज कर दिया गया हो, लेकिन विपक्ष ने एक स्पष्ट संदेश दिया है कि वह उपराष्ट्रपति के आचरण पर सवाल उठाना जारी रखेगा। विपक्षी गठबंधन का कहना है कि संवैधानिक संस्थानों की निष्पक्षता को बचाने के लिए यह लड़ाई जरूरी है।
हरियाणा और देशभर के किसानों की नाराजगी, विपक्ष के आरोप, और संवैधानिक संस्थानों की भूमिका पर हो रही बहस से यह स्पष्ट है कि धनखड़ की भूमिका पर सवाल अभी समाप्त नहीं हुए हैं।