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बीजेपी की दमनकारी राजनीति और विपक्ष की चुनौतियां: एक विश्लेषण

भारतीय राजनीति में बीजेपी का प्रभाव और उसका विपक्ष पर दमनात्मक रुख किसी से छिपा नहीं है। 2014 के बाद के परिदृश्य को देखें तो मायावती, लालू यादव, और कई अन्य विपक्षी नेताओं को राजनीतिक और कानूनी शिकंजे में जकड़ते हुए देखा गया। लालू यादव जेल गए, मायावती की राजनीतिक ठहराव पर आ गई, और अरविंद केजरीवाल की पार्टी को तोड़ने के लिए अनेक प्रयास किए गए।उद्धव ठाकरे की पार्टी को ही छीन लिया गया,चुनाव चिन्ह से लेकर पार्टी तक सब तहस नहस करदिया गया हे 

दिल्ली: बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती

दिल्ली हमेशा बीजेपी के लिए एक मुश्किल क्षेत्र रही है। पढ़ी-लिखी दिल्ली की जनता पर नफरत और धर्म की राजनीति का असर सीमित रहा है। हर बार बीजेपी ने यहां की जनता को अपने एजेंडे में लाने की कोशिश की, लेकिन नाकाम रही। अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी ने हर बार इस चुनौती का मजबूती से सामना किया। हालांकि, बीजेपी ने उनकी पार्टी को कमजोर करने के लिए तमाम रणनीतियां अपनाईं, लेकिन दिल्ली का दिल जीतने में वह सफल नहीं हुई।


मायावती: दलित राजनीति में गिरावट

मायावती की राजनीतिक पकड़ और दलित मसीहा की छवि आज सवालों के घेरे में है। एक समय था जब वे दलितों की आवाज मानी जाती थीं, लेकिन 2014 के बाद उन्होंने न केवल अपनी राजनीतिक जमीन खो दी, बल्कि आंबेडकर जैसे दलित प्रतीकों पर चुप्पी साधकर अपना करिश्मा भी गंवा दिया।

आज दलित समाज के भीतर नई नेतृत्व की मांग उठ रही है। चंद्रशेखर आज़ाद जैसे युवा नेता इस खाली जगह को भरने की क्षमता रखते हैं। मायावती का कमजोर रुख यह संकेत देता है कि दलित और पिछड़े समुदायों को अपने नेतृत्व में बदलाव करने की जरूरत है।

विपक्ष का प्रतिरोध और बीजेपी की नाकामी

बीजेपी की दमनकारी राजनीति के बावजूद, कुछ नेताओं ने यह साबित किया है कि डरना मना है। ममता बनर्जी, तेजस्वी यादव, अरविंद केजरीवाल, उद्धव ठाकरे, अकबरुद्दीन ओवैसी, और अखिलेश यादव जैसे नेताओं ने बीजेपी की नीतियों के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद रखी। ममता बनर्जी ने बंगाल में बीजेपी को पटखनी दी, तो तेजस्वी यादव ने बिहार में विपक्ष की भूमिका को नई धार दी।

संजय सिंह जैसे नेता इस दौर में मिसाल बने हैं। आम आदमी पार्टी के इस नेता ने न केवल जेल और ईडी की कार्रवाईयों का सामना किया, बल्कि अपनी निर्भीक छवि भी बनाई। उनके जैसा साहसिक नेतृत्व यह बताता है कि राजनीति में ताकतवर नेता बनने के लिए धारा के विपरीत तैरने की हिम्मत चाहिए।

निष्कर्ष: दमन की राजनीति बनाम लोकतंत्र की शक्ति

बीजेपी ने दमनकारी रणनीतियों से अल्पकालिक सफलता तो पाई है, लेकिन जनता का भरोसा जीतने में कई बार विफल रही है। विपक्ष के नेताओं की मजबूती और जनता का जागरूक रुख यह बताता है कि भारत में डर का माहौल हमेशा के लिए नहीं टिक सकता। अब सवाल यह है कि विपक्ष इस ऊर्जा को संगठित कर 2025 और आगे की राजनीति में कैसे इस्तेमाल करेगा।

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