भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राजनीतिक खेल में सहयोगी दलों के साथ उसके व्यवहार को लेकर हमेशा सवाल उठते रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की जोड़ी पर यह आरोप अक्सर लगता है कि वे अपने सहयोगियों को केवल सत्ता में बने रहने के लिए उपयोग करते हैं और फिर उन्हें हाशिए पर धकेल देते हैं। महाराष्ट्र, बिहार और आंध्र प्रदेश की हालिया घटनाएं इन आरोपों को और बल देती हैं।
महाराष्ट्र: शिंदे की स्थिति पर सवाल
महाराष्ट्र में शिवसेना में बगावत कराने के बाद भाजपा ने एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री पद का सपना दिखाकर उन्हें चुनाव लड़वाया। हालांकि, चुनाव परिणामों के बाद भाजपा ने शिंदे की राजनीतिक स्थिति को कमजोर कर दिया और उन्हें पार्टी के साथ "असहज साझेदारी" की स्थिति में छोड़ दिया।
नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू पर फोकस
बिहार में भाजपा और जेडीयू के बीच खिंचाव किसी से छिपा नहीं है। नीतीश कुमार की पार्टी को तोड़ने और उनकी राजनीतिक ताकत को खत्म करने की कोशिशें भाजपा के एजेंडे का हिस्सा मानी जाती हैं। आंध्र प्रदेश में भी चंद्रबाबू नायडू की तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) को कमजोर करने की रणनीति के संकेत स्पष्ट दिखाई दिए हैं।
राज्यपाल की भूमिका: आरिफ मोहम्मद खान की नियुक्ति
केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान की नियुक्ति को भी भाजपा की इसी राजनीति का हिस्सा माना जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह कदम केवल केरल तक सीमित नहीं है, बल्कि बिहार जैसे राज्यों में भाजपा के भविष्य के खेल की दिशा को इंगित करता है।
राजनीतिक विशेषज्ञ पुष्पेंद्र का कहना है, "राज्यपाल की भूमिका संवैधानिक रूप से महत्वपूर्ण है, लेकिन हाल के वर्षों में यह पद राजनीतिक संकटों को साधने का उपकरण बन गया है। भाजपा राज्यपालों के माध्यम से न केवल विपक्षी दलों को कमजोर करती है, बल्कि सहयोगी दलों को भी नियंत्रित करती है।"
मुस्लिम वोटों की रणनीति और नीतीश कुमार पर दबाव
भाजपा की रणनीति केवल अपने सहयोगियों को कमजोर करने तक सीमित नहीं है। राजनीतिक विश्लेषक हिलाल अहमद का कहना है कि आरिफ मोहम्मद खान की नियुक्ति के जरिए भाजपा मुस्लिम वोटों में विभाजन की कोशिश कर रही है। बिहार में मुस्लिम मतदाता लंबे समय से महागठबंधन का मजबूत आधार रहे हैं। भाजपा इस आधार को तोड़कर नीतीश कुमार पर दबाव बनाने की रणनीति पर काम कर रही है।
ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज के संस्थापक अली अनवर ने इसे भाजपा का बहुआयामी कदम बताया। उनका कहना है, "यह नियुक्ति एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश है। इसमें मुस्लिम समुदाय को लुभाना, नीतीश कुमार को बांधकर रखना और चुनावी नतीजों के बाद राज्यपाल के माध्यम से राजनीतिक संतुलन साधना शामिल है।"
भाजपा की रणनीति का व्यापक प्रभाव
भाजपा की इस राजनीति का असर न केवल उसके सहयोगी दलों पर पड़ रहा है, बल्कि यह विपक्षी गठबंधनों के समीकरणों को भी प्रभावित कर रहा है। राज्यपाल जैसे संवैधानिक पदों का राजनीतिक इस्तेमाल भारतीय लोकतंत्र में गंभीर सवाल खड़े करता है।
भविष्य में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि भाजपा की यह रणनीति बिहार और अन्य राज्यों में किस हद तक सफल होती है और भारतीय राजनीति पर इसके क्या व्यापक प्रभाव पड़ते हैं।