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सच को झूठ साबित करने की साज़िश”: राहुल गांधी के वोट चोरी खुलासों पर मीडिया का दोगलापन बेनकाब

 नई दिल्ली | 9 नवंबर 2025  |✍🏻 Z S Razzaqi | अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार    

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने हाल ही में अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में जो खुलासे किए — हरियाणा की वोटर लिस्ट में 25 लाख फर्जी वोटरों का डेटा, 501 वोटरों का एक ही पते पर दर्ज होना, और एक संगठित वोट चोरी गिरोह के सबूत — ये किसी भावनात्मक भाषण का हिस्सा नहीं थे, बल्कि महीनों की डिजिटल जांच और आंकड़ों की ठोस रिसर्च का परिणाम थे।

लेकिन अफसोस, वही मुख्यधारा का मीडिया, जो सत्ता के आगे झुक चुका है, जिसने पत्रकारिता को व्यवसाय और सच्चाई को सौदे में बदल दिया है — वही मीडिया अब राहुल गांधी को झूठा साबित करने में जुटा है।


संगठित प्रोपेगेंडा: सच्चाई को झूठ बताने का खेल

हरियाणा के होडल कस्बे में जिस “हाउस नंबर 265” को लेकर राहुल गांधी ने सवाल उठाया था, उस पर तुरंत “क्लेरिकल मिस्टेक” का ठप्पा लगा दिया गया।
सवाल यह है — अगर राहुल गांधी झूठ बोल रहे हैं, तो फिर चुनाव आयोग अब घर-घर जाकर सत्यापन अभियान क्यों चला रहा है?
अगर कोई फर्जीवाड़ा नहीं हुआ, तो 25 लाख वोटों के डुप्लिकेशन की जांच आखिर कौन करेगा?

मुख्यधारा की मीडिया रिपोर्टों में तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश किया जा रहा है —
जहाँ राहुल गांधी ने “प्रमाण सहित लोकतंत्र की चोरी” की बात कही, वहाँ मीडिया ने उसे “गलती या ग़लतफहमी” बताकर खारिज करने की ठान ली।


राहुल गांधी: “यह केवल हरियाणा की बात नहीं, लोकतंत्र पर हमला है”

राहुल गांधी ने कहा था,

“यह कोई छोटी गलती नहीं है। यह एक नियोजित साज़िश है — ताकि हरियाणा में, और आने वाले बिहार चुनाव में, मतदाता सूची को बदलकर जनादेश की चोरी की जा सके। हमारे पास डेटा है, वोटर आईडी के स्क्रीनशॉट हैं, और प्रमाण हैं कि एक व्यक्ति कई नामों से अलग-अलग बूथों पर वोटर बना हुआ है।”

उनकी प्रेस कॉन्फ्रेंस में दिखाए गए सबूतों में डेटाबेस विश्लेषण, चुनावी रजिस्टरों की डुप्लीकेशन रिपोर्ट और वोटर आईडी की स्कैन कॉपियाँ शामिल थीं — जो किसी भावनात्मक बयान से कहीं अधिक तकनीकी और साक्ष्य-आधारित खुलासा था।


मीडिया की भूमिका पर गंभीर सवाल

राहुल गांधी के आरोपों के तुरंत बाद ही टीवी स्टूडियो में वही पुराना खेल शुरू हो गया —
“राहुल फिर से झूठ बोल रहे हैं”, “कांग्रेस बौखला गई है”, “यह डेटा एंट्री की गलती है” —
हर चैनल एक ही स्क्रिप्ट पर चल रहा था, मानो किसी ने “ब्रीफिंग पेपर” बाँट दिया हो।

यह वही मीडिया है जिसने नोटबंदी की विफलता को सफलता, महँगाई को ‘ग्लोबल इफ़ेक्ट’, और बेरोज़गारी को ‘युवाओं की पसंद’ बताने का काम किया था।
आज वही मीडिया, वोट चोरी जैसे राष्ट्रीय अपराध पर पर्दा डालने की कोशिश कर रहा है।


चुनाव आयोग की चुप्पी: क्या यह भी मिलीभगत है?

जब राहुल गांधी ने इतने ठोस सबूतों के साथ सवाल उठाया, तो निर्वाचन आयोग की ओर से केवल यह बयान आया कि “कोई अपील दर्ज नहीं हुई है।”
पर सच्चाई यह है कि अगर मीडिया और प्रशासन दोनों सत्ता के दबाव में चुप हैं, तो विपक्ष के पास किस दरवाज़े पर दस्तक दी जाए?

लोकतंत्र का पहला सिद्धांत है — “सत्य की जाँच”
लेकिन यहाँ सत्य की जाँच करने वाले को ही झूठा, विघटनकारी और अराजकतावादी बताने का अभियान चल रहा है।


निष्कर्ष:-

 लोकतंत्र की रक्षा अब जनता के हाथ में

राहुल गांधी का यह संघर्ष केवल कांग्रेस का नहीं, बल्कि हर जागरूक नागरिक का संघर्ष है — उस देश के लिए, जहाँ वोट केवल एक अधिकार नहीं बल्कि जन-सत्ता की आत्मा है।
जब सत्ताधारी व्यवस्था अपने पक्ष में वोटर लिस्ट तक को मोड़ने लगे और मीडिया उस पर पर्दा डाले, तब यह केवल राजनीतिक विवाद नहीं बल्कि लोकतंत्र की हत्या कहलाती है।

सवाल यह है कि क्या भारत अब सच्चाई सुनने को तैयार भी है?

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