चंडीगढ़/नई दिल्ली/22 नवंबर 2025 |✍🏻 Z S Razzaqi | वरिष्ठ पत्रकार
केंद्र सरकार द्वारा चंडीगढ़ को अनुच्छेद 240 के दायरे में लाने और इसके लिए एक अलग उपराज्यपाल (Lt. Governor) नियुक्त करने की नई प्रस्तावित व्यवस्था ने पंजाब की राजनीति में एक तीव्र हलचल पैदा कर दी है।
वर्तमान में चंडीगढ़ का प्रशासन पंजाब के राज्यपाल संभालते हैं, लेकिन नए प्रावधान से यह अधिकार राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त एक स्वतंत्र प्रशासक को सौंपा जा सकता है।
इस प्रस्ताव को लेकर आम आदमी पार्टी, कांग्रेस, और शिरोमणि अकाली दल (SAD) सहित लगभग सभी विपक्षी दलों ने गहरी आपत्ति जताई है। उनके अनुसार यह कदम न केवल पंजाब के ऐतिहासिक अधिकारों को कमजोर करेगा, बल्कि राज्य की राजधानी पर उसके संवैधानिक दावे को और अधिक क्षीण करेगा।
क्या है प्रस्तावित बिल?
केंद्र सरकार आगामी शीतकालीन सत्र (1 दिसंबर 2025 से शुरू) में संविधान (131वां संशोधन) विधेयक, 2025 पेश करने वाली है।
राज्यसभा की वेबसाइट पर जारी बुलेटिन के अनुसार इस विधेयक का उद्देश्य चंडीगढ़ को अनुच्छेद 240 के अंतर्गत लाना है—जो केंद्रशासित प्रदेशों हेतु राष्ट्रपति को सीधे प्रशासनिक अधिकार देता है।
यदि यह संशोधन पारित हो जाता है, तो:
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चंडीगढ़ पर पंजाब राज्यपाल का नियंत्रण समाप्त हो सकता है।
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केंद्र द्वारा नियुक्त अलग प्रशासक (Lt. Governor) सीधे शासन संभालेंगे।
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पंजाब के “अपनी राजधानी पर स्वामित्व” के दावे पर गंभीर असर पड़ सकता है।
“पंजाब के अधिकार को छीनने की कोशिश”—मुख्यमंत्री भगवंत मान
पंजाब मुख्यमंत्री भगवंत मान ने प्लेटफ़ॉर्म X पर लिखा:
“हम प्रस्तावित 131वें संविधान संशोधन का कड़ा विरोध करते हैं। चंडीगढ़ पंजाब की है—हम इसे यूं ही किसी के हाथ में नहीं जाने देंगे। हम जो भी आवश्यक कदम होंगे, उठाएँगे।”
मान ने याद दिलाया कि चंडीगढ़ पंजाब की अनेक बस्तियों को उजाड़कर बनाई गई थी और इसके इतिहास, भावना और भूगोल में पंजाब का अधिकार सर्वोपरि है।
कांग्रेस का तीखा हमला: ‘पंजाब की राजधानी पर डाका’
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग ने केंद्र से स्पष्ट जवाब मांगा।
उन्होंने कहा:
“चंडीगढ़ पंजाब की राजधानी है। इसे हमसे छीनने की हर कोशिश के गम्भीर परिणाम होंगे।”
वहीं नेता प्रतिपक्ष प्रताप सिंह बाजवा ने सभी राजनीतिक दलों से एकजुट होने की अपील करते हुए कहा:
“यह बिल पंजाब के ऐतिहासिक, संवैधानिक और भावनात्मक अधिकारों पर सीधा हमला है। अब समय आ गया है कि सभी पंजाबी दलगत राजनीति से ऊपर उठकर अपनी राजधानी की रक्षा करें।”
बाजवा ने केंद्र पर लगातार पंजाब के अधिकारों को चोट पहुँचाने का आरोप लगाया—चाहे वह नदी जल विवाद, पंजाब विश्वविद्यालय, या अब चंडीगढ़ प्रशासन का मामला हो।
अकाली दल का रुख: ‘1970 से अब तक किए गए सभी वादों की अवहेलना’
SAD के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने बिल को पेश न करने की अपील करते हुए कहा कि:
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1970 में केंद्र ने चंडीगढ़ को पंजाब को सौंपने पर सहमति दी थी,
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राजीव-लोंगोवाल समझौते (1985) में चंडीगढ़ के हस्तांतरण की स्पष्ट समयसीमा—जनवरी 1986 तय की गई थी,
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संसद ने उस समझौते की पुष्टि भी की थी, पर उसे लागू नहीं किया गया।
उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र पिछले कई दशकों से पंजाब के अधिकारों को क्रमिक रूप से कम कर रहा है—
विशेषकर 60:40 कर्मचारी अनुपात (पंजाब : हरियाणा) को लागू न करके, और AGMUT कैडर के अधिकारियों की नियुक्ति करके।
बादल ने कहा:
“यह बिल पंजाबियों के विश्वास के साथ विश्वासघात है। जिन लोगों ने देश के लिए सबसे अधिक त्याग किए, उनकी राजधानी को उनसे दूर किया जा रहा है।”
AAP के राज्यसभा सांसद साहनी की चेतावनी
आप सांसद विक्रमजीत सिंह साहनी ने कहा कि पंजाब के सभी सांसदों को तुरंत गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात करनी चाहिए:
“यदि यह बिल आया, तो पंजाब के अधिकार पर गंभीर प्रहार होगा। चंडीगढ़ पर हरियाणा भी दावा करता है—ऐसे में केंद्र का यह कदम और तनाव बढ़ाएगा।”
समय-समय पर जारी होता रहा ‘अधिकारों का क्षरण’
यह विवाद तब और बढ़ गया जब कुछ दिन पहले ही केंद्र ने पंजाब यूनिवर्सिटी की शासन व्यवस्था में परिवर्तन से जुड़े एक विवादित नोटिफिकेशन को वापस लिया था।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि:
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चंडीगढ़ मुद्दा पंजाब की राजनीति में हमेशा भावनात्मक और संवेदनशील रहा है,
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राज्य की पहचान और स्वाभिमान से यह मुद्दा गहरे तौर पर जुड़ा है,
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इस नए बिल से केंद्र–राज्य संबंधों में तनाव बढ़ना तय है।
