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लाल क़िला विस्फोट: साक्ष्यों और सामाजिक संदर्भ में भारत के भीतर गहराता अविश्वास

 

नई दिल्ली | 11 नवंबर 2025  |✍🏻 Z S Razzaqi |वरिष्ठ पत्रकार    

सोमवार शाम लगभग सात बजे लाल क़िला मेट्रो स्टेशन के पास हुई एक ज़बरदस्त विस्फोटक घटना ने देश को झकझोर दिया।
आग और धुएँ से घिरी उस रात ने केवल ऐतिहासिक दिल्ली की सड़कों को नहीं, बल्कि भारतीय सुरक्षा व्यवस्था की नींव को भी हिला दिया।
अब जबकि घटना के लगभग 24 घंटे बाद भी जांच एजेंसियाँ ठोस निष्कर्ष तक नहीं पहुँची हैं, चार ऐसे सवाल हैं जिनके जवाब अभी तक अधूरे हैं — और कुछ नए तथ्य इन सवालों को और गहरा बना रहे हैं।



पहला सवाल — विस्फोट आखिर हुआ कैसे?

दिल्ली पुलिस कमिश्नर सतीश गोलचा ने बताया कि धमाके के कारण आसपास की कई गाड़ियाँ क्षतिग्रस्त हुईं।
एफ़एसएल, एनआईए और एनएसजी की टीमें घटनास्थल पर मौजूद हैं और सैंपल लैब भेजे जा चुके हैं।
फिर भी — विस्फोट का स्रोत अब तक स्पष्ट नहीं हुआ है।

क्या यह धमाका कार में रखे गए किसी विस्फोटक पदार्थ (IED) से हुआ था, या CNG/Fuel टैंक के ब्लास्ट से?
क्या कार में बैठे लोगों को इसकी जानकारी थी या यह एक बाहरी रिमोट-ट्रिगर हमला था?
इन सवालों का कोई ठोस उत्तर अभी नहीं मिला है।

प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार — विस्फोट इतना तीव्र था कि आसपास के दुकानों के शीशे टूट गए और सड़क पर भगदड़ मच गई।
लेकिन पुलिस अब तक यह नहीं बता सकी कि विस्फोट कार के अंदर से हुआ या बाहर से किसी उपकरण द्वारा ट्रिगर किया गया।


दूसरा सवाल — क्या यह ‘टेरर अटैक’ था या आकस्मिक विस्फोट?

घटनास्थल से फ़ोरेंसिक साक्ष्य इकट्ठे किए गए हैं।
एफ़एसएल अधिकारी मोहम्मद वाहिद ने बताया कि —

“सैंपल लैब भेजे गए हैं, परीक्षण के बाद ही किसी निष्कर्ष पर पहुँचा जा सकेगा।”

फिर भी, मंगलवार सुबह दिल्ली नॉर्थ के डीसीपी राजा बंथिया ने कहा कि मामला
UAPA (Unlawful Activities Prevention Act), Explosive Act और भारतीय न्याय संहिता की धाराओं में दर्ज किया गया है —
यानी प्रशासन ने इसे संभावित आतंकी हमले के रूप में लेना शुरू कर दिया है।

लेकिन यही वह बिंदु है जिस पर विशेषज्ञ और नागरिक समाज सवाल उठा रहे हैं —
क्योंकि अब सामने आए साक्ष्य आत्मघाती (फिदायीन) हमले की परिकल्पना से मेल नहीं खाते।


तीसरा सवाल — कार का मालिक कौन था और किसके कब्जे में थी?

यह मामला और भी जटिल तब हो गया जब जांच में पता चला कि विस्फोटक कार गुरुग्राम निवासी सलमान के नाम पर रजिस्टर्ड थी,
परंतु उसने करीब 18 महीने पहले यह कार एक व्यक्ति  "देवेंद्र सिंह" को बेच दी थी

पुलिस ने सलमान को हिरासत में लिया है और पूछताछ जारी है,
लेकिन यह सवाल अब और बड़ा हो गया है —
अगर सलमान ने कार बेच दी थी, तो वह अब किसके पास थी, और वास्तविक उपयोगकर्ता कौन था?

मामले की गंभीरता बढ़ गई जब CCTV फुटेज में विस्फोट से ठीक पहले
कार के अंदर तीन लोग बैठे हुए दिखाई दिए

यह दृश्य पूरे "फिदायीन हमले" के सिद्धांत को चुनौती देता है —
क्योंकि यदि यह आत्मघाती हमला था, तो तीनों लोग एक साथ क्यों अपनी जान देंगे?
या फिर — क्या उनमें से कोई बाहर निकल गया था और विस्फोट किसी रिमोट-ट्रिगर या टाइमर-डिवाइस से हुआ?

इन विरोधाभासों के कारण जांच में नई दिशाएँ खुल रही हैं, और
कई विशेषज्ञ मान रहे हैं कि “दिल्ली पुलिस अभी हवा में तीर चला रही है।”


चौथा सवाल — निशाना कौन था?

अगर यह जानबूझकर किया गया विस्फोट था, तो सवाल उठता है —
टारगेट कौन था?

क्या यह भीड़भाड़ वाले इलाके में अंधाधुंध दहशत फैलाने की कोशिश थी,
या किसी विशिष्ट व्यक्ति या स्थान को निशाना बनाया गया था?
क्या यह दिल्ली के किसी स्थानीय गिरोह, राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता, या अंतरराज्यीय नेटवर्क से जुड़ा मामला हो सकता है?

फ़िलहाल कोई एजेंसी इन सवालों का ठोस जवाब नहीं दे पा रही।


नए साक्ष्य जो जांच को जटिल बना रहे हैं

  1. कार रजिस्ट्रेशन और बिक्री का विरोधाभास:

    • सलमान के नाम पंजीकरण, लेकिन 18 महीने पहले देवेन्द्र को बिक्री का दावा।

    • बिक्री का कोई आधिकारिक transfer record (RC change) अभी तक सार्वजनिक नहीं हुआ।

    • यदि ट्रांसफर हुआ था, तो "देवेंद्र सिंह" ने वाहन का पुनःपंजीकरण क्यों नहीं कराया?

  2. CCTV फुटेज में तीन सवार:

    • फुटेज दिखाता है कि विस्फोट से कुछ क्षण पहले कार में तीन लोग सवार थे।

    • किसी भी “फिदायीन” घटना में एक साथ तीन आत्मघाती हमलावरों का होना असामान्य है।

    • इससे संकेत मिलता है कि यह आत्मघाती नहीं बल्कि मैनुअल या रिमोट ट्रिगर से जुड़ा विस्फोट हो सकता है।

  3. फोरेंसिक विसंगतियाँ:

    • प्रारंभिक रिपोर्ट में यह स्पष्ट नहीं कि विस्फोट कार के ईंधन तंत्र से हुआ या विस्फोटक पदार्थ से।

    • यदि यह CNG ब्लास्ट था, तो फ्यूल रेजिड्यू, मेटल फ्रैगमेंट्स और थर्मल पैटर्न को फोरेंसिक रूप से स्पष्ट किया जाना चाहिए।

  4. अति-शीघ्र “UAPA” का प्रयोग:

    • जांच पूरी हुए बिना ही UAPA जैसी कठोर धारा लगाना गंभीर कानूनी प्रश्न उठाता है।

    • इससे यह आशंका पैदा होती है कि पुलिस पहले निष्कर्ष पर पहुंचकर जांच को उसी दिशा में मोड़ सकती है।


सामाजिक और कानूनी संदर्भ — क्यों आवश्यक है पारदर्शिता

भारतीय इतिहास में कई बार ऐसे मामले देखे गए हैं जहाँ शुरुआती स्तर पर
‘आतंकी हमला’ कहे गए घटनाक्रम बाद में फोरेंसिक त्रुटि, तकनीकी खराबी या गैस रिसाव साबित हुए।
इसलिए नागरिक समाज, पत्रकार और अदालतें अब इस मामले में साक्ष्य-आधारित पारदर्शी जांच की मांग कर रहे हैं।

विशेषज्ञों के अनुसार, यदि CCTV फुटेज, RC दस्तावेज़ और फोरेंसिक रिपोर्ट को
सार्वजनिक (या न्यायिक निगरानी में) रखा जाए तो जांच की विश्वसनीयता बनी रह सकती है।
अन्यथा — निर्दोषों के साथ अन्याय और असली दोषियों के बच निकलने का खतरा बढ़ जाएगा।


निष्कर्ष — जवाबदेही और विवेक की आवश्यकता

लाल क़िले के साये में हुआ यह विस्फोट केवल एक सुरक्षा घटना नहीं,
बल्कि हमारी संस्थागत पारदर्शिता और जवाबदेही की परीक्षा है।

तीन मुख्य बातें अब निर्णायक हैं —
1️⃣ वास्तविक विस्फोटक का स्वरूप क्या था
2️⃣ कार में मौजूद तीन व्यक्तियों की पहचान क्या है
3️⃣ गाड़ी के स्वामित्व और ट्रांसफर के कानूनी प्रमाण क्या हैं

इन प्रश्नों का निष्पक्ष और साक्ष्य-आधारित उत्तर ही यह तय करेगा कि
क्या यह आत्मघाती हमला था, या फिर इसके पीछे कोई गहरी चाल,
राजनीतिक लाभ, या जांच की जल्दबाज़ी छिपी हुई है।

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