11 अक्टूबर 2025:✍🏻 Z S Razzaqi | अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार
मरिया कोरीना मचादो — संघर्ष, साहस और विवाद की प्रतीक
साल 2025 का नोबेल शांति पुरस्कार लैटिन अमेरिकी देश वेनेज़ुएला की प्रमुख विपक्षी नेता मरिया कोरीना मचादो को दिया गया है। यह सम्मान उन्हें उस “असाधारण साहस” के लिए दिया गया है, जिसके ज़रिए उन्होंने वर्षों से अधिनायकवादी शासन के अंधकार में लोकतंत्र की मशाल जलाए रखी।
लेकिन, इस पुरस्कार के ऐलान के बाद मरिया कोरीना मचादो न केवल वैश्विक सुर्खियों में हैं, बल्कि तीखे राजनीतिक विवादों के केंद्र में भी आ गई हैं।
“मैं यह सम्मान वेनेज़ुएला के लोगों और ट्रंप को समर्पित करती हूँ” — मचादो का बयान
नोबेल शांति पुरस्कार की घोषणा के कुछ ही घंटे बाद मचादो ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा —
“मैं यह पुरस्कार वेनेज़ुएला के पीड़ित और संघर्षरत लोगों को समर्पित करती हूँ। साथ ही राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को भी, जिन्होंने हमारी आज़ादी की लड़ाई में निर्णायक समर्थन दिया।”
उनके इस बयान ने अमेरिकी और लैटिन अमेरिकी राजनीति में नई बहस छेड़ दी है, क्योंकि मचादो लंबे समय से ट्रंप प्रशासन की समर्थक रही हैं।
नोबेल कमेटी का बयान — “अंधकार में लोकतंत्र की लौ”
नोबेल कमेटी ने अपने आधिकारिक बयान में कहा कि,
“मरिया कोरीना मचादो लैटिन अमेरिका में साहस और निडरता की मिसाल हैं। उन्होंने बढ़ते दमन और भय के बीच स्वतंत्रता, मानवाधिकार और लोकतंत्र की लौ को जलाए रखा है।”
वेनेज़ुएला पिछले एक दशक से आर्थिक संकट, भ्रष्टाचार और अधिनायकवाद की मार झेल रहा है। राष्ट्रपति निकोलस मदुरो के शासन के दौरान देश में राजनीतिक दमन, मीडिया सेंसरशिप और मानवाधिकार उल्लंघनों के आरोप लगातार लगते रहे हैं।
इसराइल समर्थन और मुस्लिम-विरोधी संगठनों से जुड़ी आलोचना
मचादो के नोबेल पुरस्कार जीतने के बाद सोशल मीडिया पर उनके इसराइल समर्थन वाले पुराने पोस्ट फिर से वायरल हो गए हैं। उन्होंने 2021 में लिखा था —
“मैं इसराइल को स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं देती हूँ। हम आपके साथ मिलकर स्वतंत्रता, प्रगति और भविष्य के विज़न का जश्न मनाते हैं।”
उन्होंने हमास द्वारा 7 अक्टूबर 2023 को किए गए हमले की निंदा करते हुए कहा था —
“मैं इसराइल के साथ खड़ी हूँ और आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में शामिल हूँ।”
हालाँकि, उनके इन बयानों की आलोचना भी हो रही है। काउंसिल ऑन अमेरिकन-इस्लामिक रिलेशन्स (CAIR) ने कहा —
“मचादो इसराइल की लिकुड पार्टी और यूरोपीय मुस्लिम-विरोधी फासीवादी समूहों की समर्थक हैं। नोबेल शांति पुरस्कार देने का यह फ़ैसला शांति के मूल सिद्धांतों के विपरीत है।”
CAIR ने मचादो से अपील की है कि वे फासीवाद और मुस्लिम-विरोधी नीतियों से खुद को अलग करें।
राजनीतिक पृष्ठभूमि — अमेरिका से गहरे रिश्ते
द न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, मचादो और अमेरिकी प्रशासन के बीच संबंध दो दशक पुराने हैं।
उन्होंने 2000 के दशक की शुरुआत में एक वोटर्स राइट्स संगठन की स्थापना की थी, जिसे अमेरिकी सरकार से वित्तीय सहायता मिली थी।
साल 2005 में उन्होंने व्हाइट हाउस में तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू. बुश से मुलाक़ात की थी।
बाद में, उन्होंने अमेरिकी सीनेटर मार्को रूबियो के साथ भी कई बार मुलाक़ात की और ट्रंप शासन के दौरान वे वेनेज़ुएला में सत्ता परिवर्तन की प्रमुख समर्थक बनीं।
द इंडिपेंडेंट ने अपनी रिपोर्ट में लिखा —
“मचादो ट्रंप को दूरदर्शी नेता मानती हैं और उनके राष्ट्रपति काल को वेनेज़ुएला में लोकतंत्र बहाली का सबसे बड़ा अवसर बताती हैं।”
ट्रंप का बयान — “असल में यह नोबेल मुझे मिला है”
नोबेल पुरस्कार घोषणा के बाद डोनाल्ड ट्रंप ने मीडिया से कहा —
“जिन्हें असल में पुरस्कार मिला है, उन्होंने मुझे फोन किया और कहा कि ‘मैं इसे आपके सम्मान में स्वीकार कर रही हूँ, क्योंकि असल में आप इसके हकदार थे।’ यह बहुत अच्छा लगा।”
ट्रंप ने मचादो को “साहसी और दृढ़ नेता” बताते हुए कहा कि वह वेनेज़ुएला की आज़ादी की लड़ाई में उनकी मदद करते रहेंगे।
वेनेज़ुएला का संकट — लोकतंत्र बनाम दमन
वेनेज़ुएला आज दुनिया के उन देशों में शामिल है जो आर्थिक पतन, राजनीतिक अस्थिरता और मानवीय संकट से जूझ रहे हैं।
एमनेस्टी इंटरनेशनल और ह्यूमन राइट्स वॉच जैसी संस्थाएँ मदुरो सरकार पर यातना, हत्याओं और चुनावी धांधली के आरोप लगाती रही हैं।
मचादो, जो विपक्ष की प्रमुख आवाज़ हैं, कई बार गिरफ़्तारी, नजरबंदी और धमकियों का सामना कर चुकी हैं।
उनके समर्थक उन्हें “लोकतंत्र की लौ” कहते हैं, जबकि आलोचक उन्हें “अमेरिकी हस्तक्षेप की प्रवक्ता” बताते हैं।
क्या नोबेल कमेटी ने राजनीतिक गलती की है?
कई विश्लेषकों का मानना है कि मचादो को नोबेल शांति पुरस्कार देना एक राजनीतिक निर्णय है, जो भविष्य में नोबेल की साख को प्रभावित कर सकता है।
कोडपिंक की लैटिन अमेरिका कोऑर्डिनेटर मिशेल ईलेनर ने लिखा —
“मचादो लोकतंत्र की नहीं, अमेरिकी वर्चस्व की समर्थक हैं। उन्होंने वेनेज़ुएला में विदेशी हस्तक्षेप को वैधता दी है।”
वहीं, मचादो के समर्थक इसे “स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक संघर्ष की वैश्विक मान्यता” बताते हैं।
निष्कर्ष
एक पुरस्कार, अनेक व्याख्याएँ
नोबेल कमेटी के शब्दों में —
“मरिया ने अंधकार में प्रकाश जलाए रखा।”लेकिन आलोचकों का कहना है —“वह उस प्रकाश की दिशा तय करने वालों में से हैं।”
सच यही है कि मचादो की कहानी अब केवल एक महिला की कहानी नहीं रही — यह लैटिन अमेरिका के लोकतंत्र, विचारधारा और वैश्विक राजनीति के नए संघर्ष की कहानी बन चुकी है।
