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अफगान मंत्री का बयान: महिला पत्रकारों की गैर-मौजूदगी पर बवाल के बाद दी सफाई, राहुल गांधी ने पीएम मोदी पर साधा निशाना

 नई दिल्ली | 12 अक्टूबर 2025 ✍🏻 Z S Razzaqi | अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार 

अफगानिस्तान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी को उस समय भारी आलोचना का सामना करना पड़ा जब उनकी प्रेस कॉन्फ़्रेंस में एक भी महिला पत्रकार मौजूद नहीं थी। यह घटना दो दिन पहले दिल्ली स्थित अफगानिस्तान दूतावास में हुई थी, जिसने मीडिया और राजनीतिक गलियारों में विवाद खड़ा कर दिया। अब मुत्ताकी ने इस पर सफाई देते हुए कहा है कि महिला पत्रकारों को प्रेस कॉन्फ़्रेंस में आमंत्रित न करने के पीछे कोई "जानबूझकर किया गया भेदभाव" नहीं था, बल्कि यह “सिर्फ़ एक तकनीकी त्रुटि” थी।


“सिर्फ़ तकनीकी गलती थी, कोई प्रतिबंध नहीं” — मुत्ताकी की सफाई

रविवार को आयोजित अपनी दूसरी प्रेस कॉन्फ़्रेंस में अफगान विदेश मंत्री ने कहा,

“प्रेस कॉन्फ़्रेंस अचानक तय की गई थी। जिन पत्रकारों को बुलाया गया, वह एक सीमित सूची थी। यह एक तकनीकी मुद्दा था, किसी तरह का जानबूझकर किया गया निर्णय नहीं था। हमारे सहयोगियों ने एक विशेष सूची के आधार पर निमंत्रण भेजा था, इसमें किसी को बाहर रखने की मंशा नहीं थी।”

उन्होंने आगे कहा कि अफगानिस्तान में शिक्षा के क्षेत्र में महिलाएँ भी शामिल हैं और यह धारणा गलत है कि वहां महिला शिक्षा पूरी तरह प्रतिबंधित है।

“हमारे यहाँ लगभग 1 करोड़ विद्यार्थी पढ़ रहे हैं, जिनमें 28 लाख से अधिक महिलाएँ और बालिकाएँ शामिल हैं। मदरसों में भी शिक्षा जारी है। कुछ सीमाएँ ज़रूर हैं, लेकिन हमने कभी महिला शिक्षा को धार्मिक रूप से हराम घोषित नहीं किया, बस कुछ मामलों में इसे ‘अगले आदेश तक स्थगित’ किया गया है।”


NDTV की रिपोर्ट के बाद उठा विवाद

यह विवाद तब शुरू हुआ जब NDTV ने यह रिपोर्ट प्रकाशित की कि मुत्ताकी की प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कोई भी महिला पत्रकार नहीं थी। इस खबर के सामने आते ही विपक्षी दलों ने इसे महिलाओं का “अपमान” करार दिया।
कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तीखा हमला करते हुए कहा —

“जब प्रधानमंत्री ऐसे आयोजनों में महिलाओं की भागीदारी को सुनिश्चित नहीं कर पाते, तो वे देश की हर महिला को यह संदेश देते हैं कि वे उनके अधिकारों के लिए खड़े होने में बहुत कमजोर हैं।”

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम ने भी इस घटना पर नाराज़गी जताई। उन्होंने कहा,

“मैं हैरान हूँ कि महिला पत्रकारों को प्रेस कॉन्फ़्रेंस से बाहर रखा गया। मेरा मानना है कि पुरुष पत्रकारों को उसी वक्त वॉक-आउट कर देना चाहिए था।”


लेफ्ट पार्टियों और मीडिया संगठनों की कड़ी प्रतिक्रिया

सीपीआई(एम) के महासचिव एम. ए. बेबी ने इसे “निंदनीय और शर्मनाक” बताया। उन्होंने कहा कि भारतीय सरकार ने “तालिबान के फरमान” को चुपचाप स्वीकार कर लिया, जो लोकतंत्र और लैंगिक समानता के सिद्धांतों के खिलाफ़ है।

एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और इंडियन वीमेन प्रेस कॉर्प्स (IWPC) ने भी इस घटना को “लैंगिक भेदभावपूर्ण” बताते हुए तीखी आलोचना की। दोनों संगठनों ने कहा कि वियना कन्वेंशन के तहत राजनयिक छूट का हवाला देकर इस तरह के भेदभाव को जायज़ नहीं ठहराया जा सकता।


भारत सरकार ने दी सफाई: ‘हमारा इसमें कोई रोल नहीं’

बढ़ते विवाद के बीच विदेश मंत्रालय (MEA) ने स्पष्टीकरण जारी किया कि प्रेस कॉन्फ़्रेंस के आयोजन में भारत सरकार की कोई भूमिका नहीं थी। मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि पत्रकारों को आमंत्रण अफगानिस्तान के मुंबई स्थित वाणिज्य दूतावास की ओर से भेजे गए थे, जो दूतावास क्षेत्र के प्रशासनिक अधिकार क्षेत्र में आता है — न कि भारत सरकार के अधीन।

PTI की रिपोर्ट के अनुसार, पत्रकारों को आमंत्रित करने का निर्णय सीधे तालिबान अधिकारियों ने लिया था, जो मुत्ताकी के साथ भारत यात्रा पर आए थे।


तालिबान पर अंतरराष्ट्रीय दबाव

गौरतलब है कि तालिबान सरकार को महिलाओं के अधिकारों पर पाबंदियों को लेकर संयुक्त राष्ट्र समेत कई देशों से लगातार आलोचना झेलनी पड़ रही है।
अफगानिस्तान में महिलाओं की शिक्षा, रोजगार और सार्वजनिक जीवन में भागीदारी पर कड़े प्रतिबंधों के कारण, वहाँ की स्थिति अंतरराष्ट्रीय चिंता का विषय बनी हुई है।

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