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नोबेल शांति पुरस्कार: क्यों डोनाल्ड ट्रंप का 'शांतिदूत' बनने का सपना अधूरा रह गया?

 11 अक्टूबर 2025:✍🏻 Z S Razzaqi | अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार    

 दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित सम्मानों में से एक, नोबेल शांति पुरस्कार, डोनाल्ड ट्रंप की पहुँच से हर बार दूर रहा है, बावजूद इसके कि उन्होंने खुद को 'राष्ट्रपति ऑफ पीस' घोषित किया और अब्राहम अकॉर्ड्स जैसी महत्वपूर्ण संधियाँ कराईं। ट्रंप के लिए, जो अक्सर अपने पूर्ववर्ती बराक ओबामा को मिले पुरस्कार पर तंज कसते थे, नोबेल पुरस्कार एक निजी जुनून और राजनीतिक वैधता का प्रतीक बन गया था। हालांकि, नॉर्वेजियन नोबेल समिति (Norwegian Nobel Committee) के फैसले और विशेषज्ञों के गहरे विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि ट्रंप की दावेदारी सिर्फ़ 'उपलब्धियों' के कारण नहीं, बल्कि उनके कूटनीतिक दृष्टिकोण, वैश्विक संस्थाओं के प्रति उनके रवैये और उनकी व्यक्तिगत शैली के कारण ख़ारिज हुई।


1. नोबेल की नैतिक संहिता बनाम ट्रंप की प्रचार शैली

नोबेल शांति पुरस्कार अल्फ्रेड नोबेल की वसीयत में निहित उन आदर्शों पर आधारित है जो "राष्ट्रों के बीच भाईचारे, स्थायी शांति और निरस्त्रीकरण" को बढ़ावा देते हैं। समिति इन आदर्शों को प्राप्त करने के लिए अपनाए गए नैतिक आचरण (Moral Conduct) और तरीके को बहुत महत्व देती है।

A. अत्यधिक स्व-प्रचार (Overt Campaigning)

नोबेल कमेटी खुले तौर पर चलाए गए अभियानों को नापसंद करती है। यह सम्मान मान्यता देता है, माँगा नहीं जाता। ट्रंप ने इसके विपरीत, इस पुरस्कार को एक चुनावी वादे की तरह माना। उन्होंने विदेशी नेताओं और सहयोगियों पर उन्हें नामित करने के लिए दबाव डाला—जैसा कि जापान के शिंजो आबे ने स्वीकार किया था। नोबेल की राजनीति में, अपनी इच्छा का अत्यधिक प्रदर्शन करना ही आपकी अयोग्यता बन जाता है, क्योंकि कमेटी किसी भी राजनीतिक या व्यक्तिगत दबाव के आगे झुकना नहीं चाहती। यह पुरस्कार की रहस्यमयता (mystique) और स्वायत्तता को बनाए रखने के लिए आवश्यक है।

B. ओबामा फैक्टर और ट्रॉफी की चाहत

ट्रंप की नोबेल की खोज का मूल कारण 2009 में बराक ओबामा को उनके कार्यकाल के केवल नौ महीने बाद मिला पुरस्कार था। ट्रंप इस पुरस्कार को व्यक्तिगत अपमान मानते थे। उनकी हर विदेश नीति की चाल, चाहे वह उत्तर कोरिया के साथ हो या मध्य पूर्व में, ओबामा की विरासत को धूमिल करने और उनसे 'अधिक काम' करने की कोशिश के रूप में देखी गई। नोबेल कमेटी व्यक्तिगत प्रतिशोध या अहंकार को पुरस्कृत नहीं करती। पुरस्कार को एक ट्रॉफी या वैधता के हथियार के रूप में देखना ही ट्रंप की दावेदारी को कमज़ोर कर देता है।


2. अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का खंडन और 'संपूर्ण विरासत' का विरोध

नोबेल पुरस्कार वैश्विक सहयोग (International Cooperation) और बहुपक्षीय संस्थानों (Multilateral Institutions) का सम्मान करता है, जबकि ट्रंप की विदेश नीति का आधार "अमेरिका फर्स्ट" और अलगाववाद (Isolationism) था।

A. वैश्विक व्यवस्था को कमज़ोर करना

नोबेल कमेटी द्वितीय विश्व युद्ध के बाद स्थापित वैश्विक व्यवस्था की संरक्षक के रूप में कार्य करती है। ट्रंप ने अपने कार्यकाल में इस व्यवस्था को लगातार कमज़ोर किया:

  • उन्होंने पेरिस जलवायु समझौता से अमेरिका को अलग किया, जिसे कई विशेषज्ञ ग्रह के सामने सबसे बड़ी दीर्घकालिक शांति चुनौती मानते हैं।

  • उन्होंने ईरान परमाणु समझौता (JCPOA) को रद्द कर दिया, जिससे मध्य पूर्व में अस्थिरता बढ़ी।

  • उन्होंने विश्व व्यापार संगठन (WTO) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) को चुनौती दी और नाटो (NATO) जैसे सैन्य गठबंधनों का मज़ाक उड़ाया। पुरस्कार ऐसे व्यक्ति को नहीं दिया जा सकता जिसने उस अंतर्राष्ट्रीय भाईचारे को तोड़ने की कोशिश की हो जिसका सम्मान यह पुरस्कार करता है।

B. शांति एक 'लेनदेन' (Transactional)

ट्रंप ने कूटनीति को एक लेनदेन (Transaction) के रूप में देखा, न कि एक धीमी, सतत प्रक्रिया के रूप में। नोबेल कमेटी त्वरित, हेडलाइन बनाने वाले फोटो-ऑप्स के बजाय स्थायी और संरचनात्मक योगदान को प्राथमिकता देती है। उदाहरण के लिए, अब्राहम अकॉर्ड्स एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी, लेकिन ट्रंप की संपूर्ण विदेश नीति में यह एक अकेला सकारात्मक बिंदु था, जिसके मुकाबले उनके द्वारा पैदा की गई अस्थिरता कहीं अधिक भारी थी।

C. घरेलू मोर्चे पर विभाजन

नोबेल कमेटी उम्मीदवार के वैश्विक योगदान के साथ-साथ उसके घरेलू आचरण को भी देखती है। ट्रंप ने अपने कार्यकाल के दौरान देश में राजनीतिक विभाजन को गहरा किया, विरोधियों पर मुकदमा चलाने के लिए सरकारी तंत्र का इस्तेमाल किया, और सीमा पर कठोर नीतियाँ लागू कीं। कमेटी के लिए ऐसे नेता को शांति पुरस्कार देना अकल्पनीय था, जिसके कार्य देश के अंदर भी सद्भाव और लोकतांत्रिक मूल्यों को चुनौती देते हों।


3. नॉमिनेशन की प्रक्रिया और 'किसिंजर मोमेंट' का डर

ट्रंप को कई बार नामांकन मिले, जिसमें इजरायल के बेंजामिन नेतन्याहू और पाकिस्तान की सरकार से आए प्रस्ताव शामिल थे, लेकिन यह नामांकन भी उनकी मदद नहीं कर पाए।

A. नामांकनों का समय

कई हाई-प्रोफाइल नामांकन (जैसे पाकिस्तान और नेतन्याहू से) नोबेल कमेटी की 1 फरवरी की डेडलाइन के बाद आए थे, जिससे वे उस वर्ष की दौड़ से बाहर हो गए। इसके अलावा, नामांकनों की संख्या उसकी गुणवत्ता को नहीं दर्शाती; नामांकन कौन कर सकता है, इसका दायरा बहुत विस्तृत है, जिसमें कई राजनेता भी शामिल हैं जो अक्सर राजनीतिक कारणों से नामांकन करते हैं।

B. कमेटी का विवेक और सावधानी

2009 में बराक ओबामा को "आकांक्षात्मक पुरस्कार" (Aspirational Prize) दिए जाने के बाद कमेटी को आलोचना का सामना करना पड़ा था। इस "किसिंजर मोमेंट" (या ओबामा मोमेंट) के डर ने कमेटी को और अधिक सतर्क बना दिया। ट्रंप को पुरस्कृत करने से संभावित वैश्विक आक्रोश (Global Backlash) किसी भी तर्कसंगत लाभ से कहीं अधिक होता। इसलिए, कमेटी ने ऐसे उम्मीदवारों को चुना जो निस्संदेह लोकतंत्र, मानवाधिकार और अहिंसक संघर्ष के मूल्यों का प्रतिनिधित्व करते थे (जैसे कि मारिया कोरिनो मचाडो)।

 निष्कर्ष:-

संक्षेप में, डोनाल्ड ट्रंप इसलिए नोबेल शांति पुरस्कार से वंचित रहे क्योंकि नोबेल पुरस्कार केवल कूटनीतिक परिणाम (diplomatic results) नहीं, बल्कि मूल्य (Values) और तरीके (Methods) का सम्मान करता है। ट्रंप का राजनीतिक दर्शन—लेनदेन पर आधारित राष्ट्रवाद और बहुपक्षीय संस्थानों को कमज़ोर करना—नोबेल के शाश्वत आदर्शों के सीधे विपरीत था। नोबेल कमेटी ने बार-बार यह स्पष्ट किया कि पुरस्कार न तो ख़रीदा जा सकता है, न दबाव से जीता जा सकता है, और न ही यह आत्म-प्रशंसा का मंच है; यह उन लोगों को दिया जाता है जो चुपचाप, दृढ़ता से और सहयोग के माध्यम से दुनिया में स्थायी शांति स्थापित करने का प्रयास करते हैं।

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