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CJI गवई अटैक केस: आरोपी राकेश किशोर ने कहा ‘मुझे अफसोस नहीं’, परिवार ने जताई शर्मिंदगी

 07 अक्टूबर 2025:✍🏻 Z S Razzaqi | वरिष्ठ पत्रकार   

नई दिल्ली। सोमवार को सुप्रीम कोर्ट के कोर्ट नंबर 1 में उस वक्त हंगामा मच गया जब 72 वर्षीय अधिवक्ता राकेश किशोर ने देश के मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई (CJI BR Gavai) पर जूता फेंकने की कोशिश की। सुरक्षा कर्मियों ने तुरंत कार्रवाई करते हुए आरोपी को काबू में कर लिया और कोर्ट से बाहर ले जाया गया। यह घटना पूरे देश में कानूनी प्रणाली और न्यायपालिका की गरिमा पर गंभीर सवाल खड़े कर रही है।


🔹 आरोपी ने पुलिस से कहा — “मैं जो किया, उसका मुझे अफसोस नहीं”

दिल्ली पुलिस की पूछताछ में राकेश किशोर ने अपने कृत्य पर कोई पछतावा नहीं जताया। उसने कहा —

“मैं तैयार था जेल जाने के लिए। जो किया, सोच-समझकर किया। मेरे परिवार वाले बहुत नाखुश हैं, उन्हें समझ नहीं आ रहा कि मैंने ऐसा क्यों किया।”

किशोर ने दावा किया कि उसका किसी राजनीतिक दल या संगठन से कोई संबंध नहीं है। उसने बताया कि वह “दैवीय प्रेरणा” (divine force) से प्रेरित होकर यह कदम उठा बैठा।


🔹 विवाद की जड़ : खजुराहो के जवारि मंदिर मामले का फैसला

राकेश किशोर ने पूछताछ में बताया कि उसकी नाराज़गी सुप्रीम कोर्ट के एक हालिया निर्णय से जुड़ी है। यह फैसला खजुराहो के यूनेस्को विश्व धरोहर जवारि मंदिर परिसर में देव प्रतिमा की पुनर्स्थापना और पुनर्निर्माण से संबंधित याचिका पर था।

उस याचिका को सुनने से इनकार करते हुए सीजेआई गवई की पीठ ने कहा था कि यह मामला भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के अधिकार क्षेत्र में आता है। इस पर न्यायालय ने व्यंग्य में कहा था —

“अगर देवता को कुछ करना है, तो वही कुछ कर लें।”

यही टिप्पणी राकेश किशोर को अत्यधिक आपत्तिजनक लगी। उसने पुलिस को बताया —

“मैं उस रात के बाद सो नहीं सका। भगवान मुझसे हर रात पूछ रहे थे कि इतने अपमान के बाद तुम चैन से कैसे सो सकते हो?”


🔹 मॉरिशस में CJI के बयान से और भड़का आरोपी

किशोर ने यह भी कहा कि उसे सीजेआई गवई के मॉरिशस भाषण से और अधिक क्रोध आया, जिसमें उन्होंने कहा था —

“भारत की न्याय प्रणाली ‘Rule of Law’ पर चलती है, न कि ‘Rule of Bulldozer’ पर।”
उन्होंने आगे कहा था — “सिर्फ किसी चीज़ का वैधानिक होना, उसे न्यायसंगत नहीं बना देता।”

किशोर का कहना था कि यह बयान हिंदू परंपरा और सनातन मूल्यों पर कटाक्ष जैसा लगा, जिससे उसकी भावनाएं आहत हुईं।


🔹 कोर्ट में हुआ जूता फेंकने का प्रयास

सोमवार सुबह 11:35 बजे, जब सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही चल रही थी, तभी राकेश किशोर ने अचानक जूता निकालकर सीजेआई गवई की ओर फेंकने की कोशिश की।
सुरक्षा अधिकारियों ने तुरंत उसे पकड़ लिया और कोर्ट से बाहर ले जाया गया।

मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई ने शांति बनाए रखते हुए कोर्ट अधिकारियों से कहा —

“इसे नज़रअंदाज़ करें। बस चेतावनी देकर छोड़ दें।”

हालाँकि बाद में दिल्ली पुलिस ने उसे हिरासत में लेकर पूछताछ शुरू कर दी।


🔹 बार काउंसिल ने सदस्यता निलंबित की

राकेश किशोर के पास सुप्रीम कोर्ट में प्रवेश के लिए मान्य बार काउंसिल कार्ड और SCBA की अस्थायी सदस्यता थी।
घटना के बाद बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) ने तत्काल प्रभाव से उसकी सदस्यता निलंबित कर दी।

किशोर ने मीडिया से कहा —

“मुझे निलंबन पत्र मिल गया है। मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, मैं परिणाम भुगतने को तैयार हूं।”


🔹 परिवार और साथियों की प्रतिक्रिया

सूत्रों के अनुसार, राकेश किशोर का परिवार उसकी हरकत से बेहद शर्मिंदा और दुखी है। उन्होंने सार्वजनिक रूप से कोई बयान देने से इनकार किया।
उनके सहयोगियों ने उन्हें “अलग-थलग पड़ा व्यक्ति” बताया, जो कानूनी पेशे से वर्षों से लगभग निष्क्रिय था।


🔹 राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रिया

यह घटना राजनीतिक गलियारों में भी तेज प्रतिक्रियाओं का कारण बनी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सीजेआई गवई से फोन पर बात कर घटना की निंदा की और कहा —

“यह घटना हर भारतीय को आहत करती है। न्यायपालिका पर हमला देश के लोकतंत्र पर हमला है।”

वहीं, सोनिया गांधी, राहुल गांधी, ममता बनर्जी सहित कई विपक्षी नेताओं ने भी इसे “निंदनीय” और “लोकतंत्र की गरिमा के विपरीत” बताया।


🔹 आरोपी का नारा : “सनातन का अपमान नहीं सहेगा हिंदुस्तान”

घटना के दौरान जब सुरक्षा कर्मी राकेश किशोर को बाहर ले जा रहे थे, तो उसने ज़ोर से नारा लगाया —

सनातन का अपमान नहीं सहेगा हिंदुस्तान!

यह नारा सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुआ और इस पर देशभर में बहस छिड़ गई।


🔹 निष्कर्ष : न्यायपालिका पर हमला नहीं, असहमति का सम्मान ज़रूरी

यह मामला सिर्फ एक व्यक्ति की हरकत नहीं, बल्कि भारत के लोकतांत्रिक ताने-बाने में असहमति की अभिव्यक्ति की सीमाओं पर बड़ा सवाल है।
कानून व्यवस्था और न्यायपालिका की आलोचना का अधिकार सभी को है, लेकिन हिंसक व्यवहार और प्रतीकात्मक आक्रोश की सीमा पार करना न केवल दंडनीय है, बल्कि लोकतंत्र की आत्मा के भी विरुद्ध है।
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