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बेल्जियम कोर्ट ने मेहुल चोकसी के प्रत्यर्पण पर सुनाया भारत के पक्ष में फैसला, लेकिन क्या सरकारें वाकई ईमानदार हैं भगोड़ों को लाने में?

 18 अक्टूबर 2025 ✍🏻 Z S Razzaqi | अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार   

पंजाब नेशनल बैंक घोटाले के आरोपी और लंबे समय से फरार हीरा व्यापारी मेहुल चोकसी को लेकर बेल्जियम की Antwerp Court of Appeals ने भारत के पक्ष में एक अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने शुक्रवार को सीबीआई द्वारा दाखिल प्रत्यर्पण याचिका पर चोकसी की अपील को खारिज करते हुए कहा कि वह “फ्लाइट रिस्क” यानी भागने का खतरा रखता है, इसलिए उसे जेल से रिहा नहीं किया जा सकता।

PNB ka lootera Mehul Chowksi

यह फैसला भारत के लिए इस बहुचर्चित मामले में पहली कानूनी सफलता मानी जा रही है। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि चोकसी के पास अब भी बेल्जियम के Supreme Court में अपील का रास्ता खुला है, जिसके लिए उसे 15 दिनों की मोहलत दी गई है।


पृष्ठभूमि: आठ साल पुराना घोटाला और अंतहीन प्रत्यर्पण की कहानी

सीबीआई ने मेहुल चोकसी और उसके भांजे नीरव मोदी के खिलाफ वर्ष 2018 में ₹13,578 करोड़ के पीएनबी घोटाले के मामले दर्ज किए थे। दोनों पर आरोप है कि उन्होंने बैंकिंग सिस्टम में फर्जी लेटर ऑफ अंडरटेकिंग के ज़रिए भारी वित्तीय धोखाधड़ी की।

मेहुल चोकसी 2018 की शुरुआत में देश छोड़कर एंटीगुआ भाग गया था, जहाँ उसने 2017 में ही नागरिकता प्राप्त कर ली थी। बाद में उसकी पत्नी के बेल्जियम नागरिक होने के आधार पर उसने 2023 में बेल्जियम रेज़िडेंसी परमिट हासिल कर लिया। वहीं, नीरव मोदी यूके की जेल में है और वह भी प्रत्यर्पण के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ रहा है।


सीबीआई की कोशिशें और चोकसी की कानूनी चालें

चोकसी को 11 अप्रैल 2025 को एंटवर्प में अस्थायी रूप से गिरफ्तार किया गया था। तब से उसकी कई जमानत याचिकाएँ खारिज की जा चुकी हैं। सीबीआई ने अदालत में यह भी बताया कि आरोपी खुद को “बीमार” बताकर प्रत्यर्पण प्रक्रिया को लंबा खींचने की कोशिश कर रहा है।
उसने मुंबई की विशेष अदालत में chronic lymphocytic leukemia (blood cancer) से पीड़ित होने के मेडिकल दस्तावेज़ भी जमा किए थे।

सीबीआई और ईडी ने संयुक्त रूप से उसकी संपत्तियों की जांच करते हुए भारत, अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात और जापान में सैकड़ों करोड़ की संपत्तियाँ जब्त की हैं।


क्या भगोड़ों के पीछे सत्ता का साया है? जनता के मन में उठते सवाल

भारत में लंबे समय से यह सवाल उठता रहा है कि इतने बड़े आर्थिक अपराधी देश छोड़कर इतनी आसानी से कैसे निकल जाते हैं, और उनके प्रत्यर्पण में इतनी सुस्ती क्यों बरती जाती है।

कई राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यह केवल कानूनी जटिलताओं का नहीं, बल्कि सत्ता-संरचना के भीतर मौजूद “साइलेंट प्रोटेक्शन नेटवर्क” का परिणाम है।
देश के नागरिकों में यह भावना गहराई से जमी हुई है कि हर भगोड़े के पीछे कहीं न कहीं ताकतवर राजनीतिक या आर्थिक रिश्तों का हाथ होता है

विपक्ष कई बार संसद में यह मुद्दा उठाता रहा है कि सरकारों की दिलचस्पी इन भगोड़ों को वापस लाने में कम और राजनीतिक छवि बचाने में ज़्यादा दिखती है। लेकिन सरकारें प्रायः तब सक्रिय होती हैं जब विपक्ष या मीडिया का दबाव बढ़ता है।


विश्लेषण: प्रतीकात्मक जीत या वास्तविक कार्रवाई की शुरुआत?

बेल्जियम कोर्ट का यह निर्णय भारत के लिए निश्चित रूप से एक कानूनी और कूटनीतिक उपलब्धि है, परंतु इसे “अंतिम सफलता” कहना जल्दबाज़ी होगी।
यह एक ऐसा मामला है जो केवल चोकसी के नहीं, बल्कि उन सभी भगोड़ों के लिए मिसाल बन सकता है जिन्होंने भारतीय बैंकों को लूटा और विदेशी नागरिकता के कवच में छिप गए।

हालांकि सवाल यह भी है —
क्या भारत की एजेंसियाँ वाक़ई इतनी कमज़ोर हैं कि हर बड़ा आर्थिक अपराधी उनसे बच निकलता है?
या फिर कहीं यह सब एक बड़े राजनीतिक मौन की कीमत पर हो रहा है?


निष्कर्ष:-

 न्याय की दिशा में एक कदम, पर भरोसे की दूरी बाकी

मेहुल चोकसी के प्रत्यर्पण पर बेल्जियम का फैसला भारत के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ है, लेकिन यह तभी सार्थक होगा जब सरकार इस अवसर का उपयोग कर अन्य भगोड़ों — नीरव मोदी, विजय माल्या, संजय भंडारी जैसे मामलों — में भी दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाए।

आज जनता यह नहीं चाहती कि अदालतें सालों तक फैसले सुनाती रहें; जनता चाहती है कि जो देश को लूटे, वह देश लौटे
सवाल सिर्फ़ कानून का नहीं, बल्कि उस नैतिक ज़िम्मेदारी का है जो सत्ता में बैठे हर शख्स पर है।

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