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सरदार वल्लभभाई पटेल की 150वीं जयंती पर श्रद्धांजलि: एकता के लोहे से गढ़ा गया भारत और RSS पर लगे ऐतिहासिक प्रतिबंध की गाथा

अक्टूबर 31, 2025 |✍🏻 Z S Razzaqi |वरिष्ठ पत्रकार  

प्रस्तावना

भारत का आधुनिक इतिहास कुछ ऐसे व्यक्तित्वों की वजह से खड़ा है, जिन्होंने अपनी दूरदर्शिता, संगठन क्षमता और अदम्य साहस से इस देश को टूटने से बचाया। सरदार  वल्लभभाई पटेल उन व्यक्तित्वों में सबसे अग्रणी थे — एक ऐसे नेता जिन्होंने आज़ादी के बाद बिखरे हुए भारत को जोड़कर एक राष्ट्र बनाया।
आज, जब देश उनके 150वें जन्म वर्ष का उत्सव मना रहा है, यह आवश्यक है कि हम केवल श्रद्धांजलि न दें, बल्कि उनकी सोच, निर्णयों और नीतियों को गहराई से समझें — विशेषकर वह निर्णय जिसने भारत के राजनीतिक इतिहास में गहरी छाप छोड़ी: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) पर प्रतिबंध।


प्रारंभिक जीवन और संघर्ष की पृष्ठभूमि

सरदार वल्लभभाई झवेरभाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नडियाद गाँव में हुआ था। एक सामान्य किसान परिवार में जन्मे इस बालक ने प्रारंभिक जीवन में कठिनाइयाँ झेली। लेकिन यही संघर्ष उनकी सबसे बड़ी पूँजी बन गया।
उन्होंने लंदन से बैरिस्टर की पढ़ाई पूरी की और भारत लौटकर वकालत शुरू की। किंतु जब महात्मा गांधी ने उन्हें स्वतंत्रता आंदोलन में बुलाया, तो उन्होंने अपने जीवन की दिशा बदल दी।

बारडोली सत्याग्रह (1928) में किसानों के अधिकारों के लिए उनके संघर्ष ने उन्हें “सरदार ” की उपाधि दिलाई। यह वही आंदोलन था जिसने उन्हें जनता का नेता बनाया — और आगे चलकर स्वतंत्र भारत का निर्माता भी।


भारत का एकीकरण: “लोह पुरुष” की सबसे बड़ी उपलब्धि

1947 में भारत की आज़ादी के साथ ही देश में 565 से अधिक रियासतें थीं — जिनमें से कई स्वतंत्र रहना चाहती थीं। अगर इन्हें एकीकृत न किया जाता, तो भारत कई टुकड़ों में बंट जाता।
लेकिन सरदार पटेल ने अद्भुत रणनीति, कूटनीति और दृढ़ता से इन रियासतों को भारत में शामिल किया।

उन्होंने एक ओर संवाद और विश्वास का मार्ग अपनाया, तो दूसरी ओर यह स्पष्ट संदेश भी दिया कि कोई भी रियासत “भारत के संविधान से ऊपर” नहीं होगी।
हैदराबाद, जूनागढ़ और कश्मीर जैसी जटिल रियासतों का विलय उनकी राजनीतिक कौशल और प्रशासनिक दृष्टि का परिणाम था।
यह वही समय था जब पटेल ने यह सिद्ध कर दिया कि नेतृत्व केवल भाषणों से नहीं, बल्कि निर्णयों से पहचाना जाता है।


सच्चा राष्ट्रनिर्माता

सरदार पटेल केवल एक राजनीतिक नेता नहीं थे, वे एक “राष्ट्र-निर्माता” थे।
उनका दृष्टिकोण केवल सीमाओं तक सीमित नहीं था, बल्कि एक ऐसे भारत की कल्पना करता था जो विविधताओं के बावजूद एकजुट हो।
वे मानते थे कि अगर भारत को टिकाऊ बनाना है, तो प्रशासन, कानून और नागरिक अनुशासन को सबसे ऊपर रखना होगा।

उन्होंने नौकरशाही को नई दिशा दी, भारतीय सिविल सेवा को “स्टील फ्रेम ऑफ इंडिया” कहा और सुनिश्चित किया कि प्रशासनिक ढांचा देश की एकता को बनाए रखे।


RSS पर प्रतिबंध: एक कठिन लेकिन निर्णायक निर्णय

गांधी जी की हत्या 30 जनवरी 1948 को हुई। इसके कुछ ही दिनों बाद, 4 फरवरी 1948 को भारत सरकार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) पर प्रतिबंध लगा दिया।
उस समय सरदार पटेल देश के गृह मंत्री थे — और यही निर्णय उनके नाम से इतिहास में दर्ज हुआ।

प्रतिबंध के कारण

गांधी हत्या के बाद देश में सांप्रदायिक तनाव चरम पर था। कई स्थानों पर हिंसा, आगज़नी और अव्यवस्था फैल गई थी।
सरकार को यह लगा कि कुछ चरमपंथी तत्व राष्ट्र की शांति और एकता को खतरे में डाल रहे हैं।
RSS पर यह आरोप लगाया गया कि उसके कुछ सदस्य हिंसक गतिविधियों में शामिल थे और उन्होंने सरकार की नीतियों के विरोध में असहयोग दिखाया।

सरदार पटेल ने स्पष्ट कहा था कि “देश की एकता किसी भी विचारधारा से ऊपर है। कोई भी संगठन, चाहे वह कितना भी देशभक्त क्यों न हो, अगर वह राष्ट्र की एकता और संविधान के खिलाफ कार्य करेगा, तो उस पर कार्रवाई होगी।”

पटेल का दृष्टिकोण

हालाँकि पटेल RSS के विचारों को पूरी तरह खारिज नहीं करते थे। उन्होंने माना कि संगठन में अनुशासन, संगठनशक्ति और देशभक्ति की भावना है, लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि “अगर यह संगठन संवैधानिक ढांचे के खिलाफ खड़ा होगा, तो इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।”

गृह मंत्री के रूप में उन्होंने RSS प्रमुख को बातचीत के लिए बुलाया और स्पष्ट किया कि संगठन को तभी पुनः मान्यता मिलेगी जब वह राजनीति से दूर रहेगा, संविधान और राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान करेगा, और लोकतांत्रिक व्यवस्था के भीतर कार्य करेगा।

1949 में, जब RSS ने अपना संविधान लिखित रूप में स्वीकार किया और यह भरोसा दिलाया कि वह लोकतांत्रिक प्रणाली के अंतर्गत काम करेगा, तब पटेल ने प्रतिबंध हटाने की मंजूरी दी।

यह निर्णय भारत के लोकतंत्र की बुनियाद में एक ऐतिहासिक उदाहरण बन गया — जहाँ सरकार ने किसी विचारधारा को नहीं, बल्कि असंवैधानिक व्यवहार को रोका।


एकता का दर्शन और आज का भारत

सरदार पटेल का विचार था कि भारत को एक मज़बूत और समरस राष्ट्र के रूप में खड़ा होना चाहिए।
उनका कहना था — “हमारा देश केवल एक भूगोल नहीं है, यह एक विचार है। यह विचार तभी जीवित रहेगा जब हम भेदभाव, नफ़रत और विभाजन से ऊपर उठेंगे।”

आज, जब भारत अनेक जातीय, धार्मिक और भाषायी विविधताओं के बीच अपनी पहचान मजबूत कर रहा है, पटेल की एकता की परिकल्पना पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक है।
उनकी सोच थी कि “राजनीति में मतभेद हो सकते हैं, पर देश के प्रति समर्पण में नहीं।”

उनके सम्मान में आज विश्व की सबसे ऊँची प्रतिमा “स्टैच्यू ऑफ यूनिटी” खड़ी है, जो केवल एक मूर्ति नहीं बल्कि उस विचार का प्रतीक है — कि भारत की ताकत उसकी एकता में है, न कि विभाजन में।


150वीं जयंती की सार्थकता

भारत सरकार द्वारा सरदार पटेल की 150वीं जयंती को राष्ट्रीय उत्सव के रूप में मनाया जा रहा है। देशभर में “एकता दिवस”, “युवा मार्च”, और “सांस्कृतिक समारोहों” के माध्यम से लोगों को यह संदेश दिया जा रहा है कि सच्ची श्रद्धांजलि केवल फूल चढ़ाने में नहीं, बल्कि उनके सिद्धांतों को अपनाने में है।

आज जब भारत आर्थिक, सामाजिक और वैचारिक रूप से एक नए दौर में प्रवेश कर रहा है, पटेल का संदेश हमें याद दिलाता है —

“राष्ट्र की शक्ति उसकी एकता में है। विभाजन, चाहे वह जाति, धर्म या भाषा के आधार पर हो, राष्ट्र की आत्मा को कमजोर करता है।”


निष्कर्ष

सरदार वल्लभभाई पटेल केवल “भारत के लौह पुरुष” नहीं थे, बल्कि वे भारत की आत्मा के संरक्षक थे।
उन्होंने जो भारत हमें सौंपा, वह भौगोलिक रूप से ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और संवैधानिक रूप से भी एकीकृत था।

RSS पर प्रतिबंध जैसा कठिन निर्णय उन्होंने इसलिए लिया क्योंकि उनके लिए राष्ट्र की अखंडता सर्वोपरि थी। यह उनका साहस था कि उन्होंने विचारधाराओं के ऊपर कानून और संविधान को रखा।

आज, जब उनकी 150वीं जयंती पर पूरा देश उन्हें नमन कर रहा है, हमें यह याद रखना चाहिए कि सरदार पटेल का जीवन हमें केवल इतिहास नहीं, बल्कि भविष्य की दिशा भी देता है।
उनकी सोच, उनकी नीतियाँ और उनकी दृढ़ता आज भी भारत के हर नागरिक के लिए प्रेरणा हैं।

“भारत को एक करने वाले हाथ आज भी हमें बुलाते हैं —
एकता, अनुशासन और राष्ट्रप्रेम ही सच्ची श्रद्धांजलि है।”


लेखक का विश्लेषणात्मक निष्कर्ष:-
सरदार पटेल की विरासत सिर्फ अतीत की गौरवगाथा नहीं, बल्कि आधुनिक भारत की आधारशिला है।
उनके निर्णयों में विवेक, न्याय और राष्ट्रहित की स्पष्टता थी।
RSS पर प्रतिबंध हो या रियासतों का विलय — हर निर्णय इस बात का प्रमाण था कि उनके लिए ‘भारत पहले’ सर्वोच्च सिद्धांत था।
150 वर्ष बाद भी, उनका भारत जीवित है — उसी एकता, उसी दृढ़ता और उसी संकल्प के साथ।


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