अक्टूबर 31, 2025 |✍🏻 Z S Razzaqi | अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार
ख़ान यूनिस में बमबारी: सीज़फायर का भ्रम
इज़राइल के लड़ाकू विमानों और टैंकों ने पिछले 24 घंटों में ख़ान यूनिस और उसके आसपास के इलाक़ों पर कई हमले किए। गाज़ा के स्थानीय पत्रकारों का कहना है कि सुबह से अब तक कई इलाक़ों में गोलाबारी जारी है, और इमारतें एक-एक कर ज़मीन में समा रही हैं।
हालांकि इज़राइल ने दावा किया था कि दो दिन पहले सीज़फायर लागू किया गया है, मगर ज़मीनी हक़ीक़त कुछ और कहती है।
लोगों में यह डर घर कर गया है कि कहीं यह "सीज़फायर" किसी बड़े हमले की प्रस्तावना न हो। हर धमाके के बाद गाज़ा के निवासी दहशत में सड़कों पर निकल आते हैं, बच्चों की चीखें और माओं की सिसकियाँ इस "शांति" की सच्चाई बयान कर रही हैं।
‘एक बोरी हड्डियों की’: तबाह परिवारों की दर्दनाक कहानी
गाज़ा के नुसेरत शरणार्थी शिविर में वसीम अल-यज़ीजी की कहानी गाज़ा की उस त्रासदी का प्रतीक है जो हर घर में दोहराई जा रही है।
वसीम बताते हैं — "मैं अपने चाचा के घर जाने निकला ही था कि हमारा इलाक़ा कार्पेट बॉम्बिंग में तबाह हो गया। लौटकर आया तो सिर्फ़ एक बोरी में अपने 13 परिजनों की हड्डियाँ मिलीं।"
यही वह "मानवीय विराम" है, जिसमें लोग अपने प्रियजनों के शव ढूँढने के लिए मलबे में खुदाई कर रहे हैं।
गाज़ा की अर्थव्यवस्था का पतन: बैंक खुले, मगर नक़दी ग़ायब
गाज़ा में सीज़फायर के बाद उम्मीद थी कि राहत की सांस मिलेगी। 16 अक्टूबर को बैंक खुले तो लोगों की लंबी कतारें दिखीं — लेकिन बैंक में नकदी नहीं थी।
61 वर्षीय वाएल अबू फ़ारेस, जो छह बच्चों के पिता हैं, बैंक के बाहर कहते हैं — "यहाँ सिर्फ़ काग़ज़ी काम होता है, पैसे नहीं मिलते।"
इमान अल-जाबरी, सात बच्चों की माँ, कहती हैं — "पहले बैंक जाना एक घंटे का काम था, अब दो-तीन दिन लग जाते हैं और अंत में मुश्किल से 400-500 शेकेल मिलते हैं। इतने में हम क्या खरीदें जब हर चीज़ की कीमत आसमान छू रही है?"
गाज़ा के बाज़ारों में महँगाई चरम पर है, और लोगों के पास जो थोड़े बहुत पैसे हैं, वे भी इस्तेमाल नहीं कर पा रहे।
बालपन का भय: गाज़ा के बच्चों पर युद्ध के गहरे निशान
गाज़ा के बच्चों पर यह युद्ध गहरे मनोवैज्ञानिक घाव छोड़ गया है।
ख़लील अल-शरीफ़ की बेटी लाना उस बमबारी में बची थी जब उनके घर की छत विस्फोट से गिर गई। अब लाना हर धमाके पर कांप जाती है — उसे विटिलिगो नामक त्वचा रोग भी हो गया है, जो तनाव और रासायनिक झटकों से जुड़ा माना जाता है।
एक और बच्चा, अबेद अल-अज़ीज़ अबू हविशल, बताता है — "एक इज़राइली सिपाही ने बंदूक मेरे सिर पर तानी थी। मैंने अपने मोहल्ले में लाशें उड़ती देखीं, एक औरत का सिर नहीं था... मैं लाशों पर से भागता हुआ निकला।"
यह बयान गाज़ा के उस मासूमपन की गवाही है, जो अब धुएं में खो गया है।
वेस्ट बैंक और लेबनान तक फैला तनाव
गाज़ा की आग अब सीमाओं से बाहर फैल चुकी है। वेस्ट बैंक में भी हालात बिगड़ते जा रहे हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, रामल्ला के सिलवाड में इज़राइली सेना ने 15 वर्षीय लड़के यामिन सैमद हमेद को गोली मार दी।
नब्लुस और जेनिन में कई छापेमार कार्रवाइयों में युवाओं को गिरफ्तार किया गया है, जबकि चरमपंथी यहूदी बस्तिवासियों ने फिलिस्तीनी वाहनों को आग के हवाले कर दिया।
लेबनान में राष्ट्रपति जोसेफ औन ने सेना को आदेश दिया है कि इज़राइल की किसी भी नई घुसपैठ का डटकर जवाब दिया जाए।
मानवीय संकट: एक ‘शांति समझौता’ जो सिर्फ़ नाम का है
हक़ीक़त यह है कि इस समय गाज़ा में जो कुछ भी हो रहा है, वह “युद्धविराम” नहीं बल्कि “धीमी गति से चल रहा नरसंहार” है।
इज़राइल और हमास के बीच कैदियों के शवों की अदला-बदली तो जारी है, मगर ज़मीनी स्तर पर बमबारी, छापेमारी और गोलीबारी का सिलसिला नहीं थमा।
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट बताती है कि सिर्फ़ ऑलिव हार्वेस्ट सीज़न के दौरान वेस्ट बैंक में 125 से ज़्यादा हमले हुए — यह साबित करता है कि ‘सीज़फायर’ एक राजनीतिक शब्द भर रह गया है, ज़मीनी सच्चाई नहीं।
