नई दिल्ली | 24 अक्टूबर 2025 |✍🏻 Z S Razzaqi |वरिष्ठ पत्रकार
पृष्ठभूमि: ORSL विवाद ने फिर खड़ा किया खाद्य सुरक्षा पर सवाल
हैदराबाद की जाने-मानी शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. शिवरांजनी संतोष ने भारत की खाद्य सुरक्षा नियामक संस्था FSSAI (Food Safety and Standards Authority of India) पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि “यह राष्ट्र के लिए शर्म की बात है” कि उसने उच्च-शर्करा (High-Sugar) पेय ORSL के स्टॉक के निपटान (disposal) की अनुमति दी।
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हालांकि FSSAI ने तुरंत सफाई देते हुए कहा कि उसने “ऐसी कोई अनुमति नहीं दी है”, और सोशल मीडिया पर फैल रही इस जानकारी को “तथ्यों का गलत प्रतिनिधित्व (misrepresentation of facts)” बताया।
डॉ. शिवरांजनी का आक्रोश: “अमेरिका में होता, तो कंपनी पर लाखों मुकदमे दर्ज होते”
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) पर पोस्ट किए गए एक वीडियो में डॉ. शिवरांजनी ने कहा —
“हम चुप क्यों रहें? अगर यही मामला अमेरिका में होता, तो ORS बेचने वाली कंपनी पर लाखों डॉलर के मुकदमे हो चुके होते। लेकिन यहाँ FSSAI की सहमति से उन्हें स्टे ऑर्डर मिल जाता है — यह शर्म की बात है।”
उन्होंने कहा कि यह मामला सिर्फ एक ब्रांड का नहीं, बल्कि बच्चों की सुरक्षा से जुड़ा है।
“एक हाई-शुगर ड्रिंक को ORS कहकर बेचना जनता को धोखा देना है। और जब नियामक चुप रहे, तो यह सार्वजनिक स्वास्थ्य से समझौता है।”
मामले की जड़: ‘Kenvue’ की भारतीय इकाई JNTL को मिली राहत
डॉ. शिवरांजनी की नाराज़गी दरअसल JNTL कंपनी के खिलाफ है — जो अमेरिकी कंपनी Kenvue (Johnson & Johnson की स्पिन-ऑफ) की भारतीय शाखा है।
14 अक्टूबर 2025 को FSSAI ने एक ऐतिहासिक सलाह (advisory) जारी की थी जिसमें कहा गया था कि कोई भी गैर-चिकित्सकीय पेय (non-medical drink) अब “ORS” नाम का इस्तेमाल नहीं कर सकता।
लेकिन रिपोर्ट्स के अनुसार, JNTL को अपने मौजूदा स्टॉक के निपटान (disposal) की अनुमति मिल गई — जिसे डॉ. शिवरांजनी ने “बच्चों की सेहत के साथ खिलवाड़” बताया।
क्या है ORS और क्यों है विवाद इतना गंभीर?
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, सही ORS (Oral Rehydration Solution) वह होता है जो शरीर में पानी और इलेक्ट्रोलाइट्स की कमी को संतुलित रूप से पूरा करे।
एक मानक WHO फॉर्मूला प्रति लीटर पानी में यह होना चाहिए:
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2.6 ग्राम सोडियम क्लोराइड
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1.5 ग्राम पोटेशियम क्लोराइड
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2.9 ग्राम सोडियम साइट्रेट
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13.5 ग्राम डेक्सट्रोज़ (ग्लूकोज़)
लेकिन भारत में बिक रहे कई तथाकथित “ORS” ड्रिंक्स में पाया गया कि उनमें 120 ग्राम तक चीनी प्रति लीटर थी — यानी WHO की सीमा से 10 गुना अधिक!
ये पेय दिखने में मेडिकल ड्रिंक लगते हैं, पर असल में सॉफ्ट ड्रिंक जैसे मीठे पेय होते हैं जो बच्चों में निर्जलीकरण (Dehydration) और ब्लड शुगर असंतुलन को और बढ़ा सकते हैं।
बच्चों की जान पर खतरा: आंकड़े चिंताजनक
भारत में पाँच साल से कम उम्र के बच्चों में डायरिया (दस्त) अब भी मौत का तीसरा सबसे बड़ा कारण है।
स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार —
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हर 100 मौतों में से 13 मौतें डायरिया से होती हैं।
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गलत ORS या हाई-शुगर पेय से निर्जलीकरण का खतरा बढ़ जाता है।
डॉ. शिवरांजनी कहती हैं —
“यह सिर्फ मार्केटिंग फ्रॉड नहीं, बल्कि बच्चों के जीवन से खिलवाड़ है। जब कंपनियाँ शुगर को दवा की तरह बेचती हैं, तो यह पब्लिक हेल्थ क्राइसिस बन जाता है।”
FSSAI की सफाई: “हमने किसी कंपनी को मंजूरी नहीं दी”
FSSAI ने अपने आधिकारिक सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा —
“कथित दावे कि FSSAI ने ORSL स्टॉक के डिस्पोजल की अनुमति दी है, पूरी तरह गलत हैं। कृपया आधिकारिक न्यायालय आदेश देखें।”
संस्था ने इस मुद्दे को “तथ्यों का गलत चित्रण” बताया और कहा कि वह उपभोक्ताओं को गुमराह करने वाले किसी भी उत्पाद के खिलाफ सख्ती बरत रही है।
डॉ. शिवरांजनी की अपील: “सिर्फ WHO मानक वाला ORS ही बिके”
डॉ. शिवरांजनी ने अपने पोस्ट में स्पष्ट लिखा —
“अब वक्त आ गया है कि भारत में सिर्फ WHO द्वारा अनुमोदित ORS ही अस्पतालों, स्कूलों, मेडिकल स्टोर्स और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर बेचे जाएँ।”
उन्होंने यह भी कहा कि “ORS” शब्द का उपयोग किसी भी फूड या ड्रिंक लेबल पर तभी हो, जब वह मेडिकल मानक पर खरा उतरे।
विवाद के गहराने से क्या संकेत मिलते हैं
इस विवाद ने भारत के हेल्थ ड्रिंक मार्केट के अंधेरे पक्ष को उजागर कर दिया है।
कई वर्षों से बड़ी कंपनियाँ “हाइड्रेशन ड्रिंक” या “एनर्जी ORS” के नाम पर ऐसे उत्पाद बेच रही थीं जो चिकित्सकीय दृष्टि से बेकार या हानिकारक हैं।
FSSAI का यह कदम जहाँ उपभोक्ताओं को भ्रम से बचाने की दिशा में ऐतिहासिक माना जा रहा है, वहीं ORSL स्टॉक के निपटान की अनुमति (यदि सच साबित हुई) तो यह संस्था की साख पर सवाल खड़े कर सकती है।
निष्कर्ष:-
स्वास्थ्य से बड़ा कोई मुनाफा नहीं
डॉ. शिवरांजनी का संदेश स्पष्ट है —
“दवा के नाम पर शक्कर बेचना अपराध है। बच्चों की जान की कीमत पर किसी कंपनी को राहत नहीं दी जानी चाहिए।”
भारत जैसे देश में, जहाँ लाखों बच्चे हर साल डायरिया से पीड़ित होते हैं, वहाँ खाद्य सुरक्षा एजेंसियों का दायित्व सिर्फ नियम बनाना नहीं, बल्कि जनहित में उन्हें ईमानदारी से लागू करना भी है।
इस विवाद ने एक बार फिर यह याद दिलाया है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य बनाम कॉर्पोरेट हित की जंग अब भी जारी है — और इसमें जीत जनता की होनी चाहिए।
