22 अक्टूबर 2025 ✍🏻 Z S Razzaqi | वरिष्ठ पत्रकार
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले “महागठबंधन” (RJD–Congress–Left Alliance) में बढ़ते असंतोष और सीट-बंटवारे को लेकर पैदा हुए मतभेदों को सुलझाने के लिए कांग्रेस ने अपने वरिष्ठ नेता और राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पटना भेजने का फैसला किया है।
कांग्रेस का यह कदम तब उठाया गया है जब बिहार में भारतीय जनता पार्टी (BJP) और जनता दल (यूनाइटेड) (JDU) के गठबंधन के खिलाफ विपक्षी दलों को एकजुट चेहरा और स्पष्ट रणनीति दिखाने में लगातार कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।
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कांग्रेस की सक्रियता: वरिष्ठ नेताओं की अहम बैठक
सूत्रों के अनुसार, कांग्रेस महासचिव के.सी. वेणुगोपाल ने राजद नेता तेजस्वी यादव से विस्तृत चर्चा की, जिसके बाद गहलोत के साथ बिहार प्रभारी कृष्ण अल्लावरु को भी बुधवार को पटना पहुंचने का निर्देश दिया गया है।
उम्मीद है कि बुधवार को कांग्रेस और राजद के शीर्ष नेता बैठक करेंगे और फिर गुरुवार को महागठबंधन के नेता संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस कर एकता का संदेश देंगे।
इस प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिए यह दिखाने की कोशिश होगी कि बिहार में विपक्ष पूरी मजबूती से भाजपा-जेडीयू गठबंधन का मुकाबला करने के लिए तैयार है।
सीट-बंटवारे पर तनाव और देरी से टिकट घोषणा
जानकारी के अनुसार, कांग्रेस और राजद के बीच सीट-बंटवारे को लेकर लंबे समय से चली आ रही बातचीत ने अब नेतृत्व स्तर पर नाराज़गी पैदा कर दी है।
कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि राजद की ओर से सीट आवंटन में देरी के कारण पार्टी अपने प्रत्याशियों की सूची तय नहीं कर सकी।
एक वरिष्ठ नेता के अनुसार,
“सीट-बंटवारे की प्रक्रिया दो महीने पहले शुरू हुई थी, लेकिन अब तक पूरी तरह से स्पष्टता नहीं आई। इससे हमारे चुनावी प्रबंधन में काफी देरी हुई।”
कांग्रेस के भीतर यह भी असंतोष है कि राजद ने अन्य सहयोगी दलों के साथ सहयोगात्मक रुख नहीं अपनाया। उदाहरण के तौर पर, झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) को गठबंधन में जगह नहीं मिली, जबकि वीआईपी (Vikassheel Insaan Party) को कांग्रेस नेतृत्व के हस्तक्षेप के बाद ही कुछ सीटें दी गईं।
‘फ्रेंडली फाइट’ पर चिंता: दस सीटों पर टकराव की नौबत
गठबंधन के भीतर असहमति की सबसे बड़ी वजह यह है कि लगभग 10 सीटों पर सहयोगी दलों के प्रत्याशी एक-दूसरे के खिलाफ खड़े हो गए हैं।
इनमें से चार सीटों पर कांग्रेस और राजद के बीच सीधा मुकाबला बन गया है।
इसे विपक्षी एकता के “ऑप्टिक्स” यानी जनधारणा पर बुरा असर डालने वाला कदम माना जा रहा है।
हालांकि, अब इस स्थिति को संभालने के लिए “फ्रेंडली फाइट्स” को खत्म करने की कोशिशें तेज़ की गई हैं।
कांग्रेस और राजद दोनों ही दल इस बात पर सहमत हैं कि साझा संघर्ष की छवि को बचाना आवश्यक है।
संयुक्त घोषणापत्र और प्रचार रणनीति पर चर्चा
महागठबंधन अब एक संयुक्त घोषणापत्र (Manifesto) जारी करने और साझा प्रचार अभियान शुरू करने की तैयारी कर रहा है।
सूत्रों के मुताबिक, राहुल गांधी और तेजस्वी यादव एक साथ राज्यव्यापी "वोटर अधिकार यात्रा" का अगला चरण शुरू करेंगे, जिससे विपक्षी एकजुटता का संदेश दिया जा सके।
हालांकि, इस बार यह आलोचना भी उठी है कि सीट-बंटवारे और उम्मीदवारों की घोषणा के दौरान कोई संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं हुई, जिससे “एकता की तस्वीर” कमजोर पड़ी।
मुख्यमंत्री चेहरे को लेकर मतभेद
महागठबंधन में मुख्यमंत्री पद के चेहरे को लेकर भी रणनीतिक मतभेद हैं।
कांग्रेस नेताओं का कहना है कि चूंकि राजद पहले ही तेजस्वी यादव को अपने मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में प्रोजेक्ट कर चुकी है, इसलिए गठबंधन के बाकी दलों को इसे स्वीकार करना चाहिए।
हालांकि, कांग्रेस के कुछ नेताओं का मानना है कि अगर यह फैसला “स्पष्ट रूप से घोषित” न किया जाता, तो कुछ राजनीतिक उद्देश्यों को साधने में आसानी होती।
एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने कहा —
“राजद का ज़ोर मुख्यमंत्री उम्मीदवार की खुली घोषणा पर है। अब देखना यह होगा कि गुरुवार की संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में क्या संकेत दिए जाते हैं।”
छोटे दलों की सहमति
महागठबंधन के छोटे घटक दलों — जैसे लेफ्ट पार्टियां, वीआईपी और हम (हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा) — ने संकेत दिए हैं कि उन्हें तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री चेहरे के रूप में पेश किए जाने पर कोई आपत्ति नहीं है।
उनका मानना है कि बिहार में भाजपा-जेडीयू के खिलाफ एक स्पष्ट और मज़बूत नेतृत्व दिखाना ज़रूरी है।
निष्कर्ष:-
एकता की मजबूरी और राजनीतिक संतुलन की खोज
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर कांग्रेस और राजद समय रहते तालमेल बैठा लेते हैं और संयुक्त प्रचार अभियान को प्रभावी ढंग से आगे बढ़ाते हैं, तो बिहार में मुकाबला निश्चित रूप से दिलचस्प और कड़ा होगा।
