श्रीनगर/लेह, भारत, 27 सितंबर, 2025: ✍🏻 Z S Razzaqi | वरिष्ठ पत्रकार
निःस्वार्थ सेवा बनाम 'चरित्र हनन' का आरोप
सोनम वांगचुक, जिन्होंने अपना पूरा जीवन लगभग बिना किसी व्यक्तिगत लाभ के लद्दाख की शिक्षा, पर्यावरण और स्थानीय संस्कृति के संरक्षण के लिए समर्पित किया है, आज सत्ता के सीधे निशाने पर हैं। उनकी पत्नी और विपक्षी दलों (जैसे कांग्रेस और आम आदमी पार्टी) ने इस गिरफ्तारी की तीखी आलोचना की है।
विपक्ष का आरोप: राजनीतिक विश्लेषकों और वांगचुक के समर्थकों का आरोप है कि सरकार, विरोध को दबाने के लिए, वांगचुक के एनजीओ (SECMOL) का FCRA लाइसेंस रद्द करके और उन पर वित्तीय अनियमितताओं के आरोप लगाकर उनका चरित्र हनन (Character Assassination) कर रही है।
सरकार का पक्ष: गृह मंत्रालय ने हिंसा के लिए सीधे तौर पर वांगचुक के "भड़काऊ बयानों" को ज़िम्मेदार ठहराया है, जिसमें उन्होंने 'अरब स्प्रिंग' और 'नेपाल के Gen-Z विरोध' जैसे आंदोलनों का हवाला दिया था। सरकार ने उनके NGO पर अघोषित बैंक खाते रखने और विदेशी धन के दुरुपयोग का आरोप लगाया है, जिसकी जांच सीबीआई कर रही है।
Gen-Z का आक्रोश: वादा खिलाफी का परिणाम
वांगचुक ने महीनों तक अपनी मांगों को लेकर शांतिपूर्ण अनशन किया और लगातार अहिंसा का आह्वान किया। लेकिन केंद्र सरकार द्वारा लद्दाख के लोगों से किए गए संवैधानिक और राजनीतिक वादों को पूरा न करने के कारण, स्थानीय जनरेशन-जेड (Gen-Z) युवाओं का धैर्य टूट गया।
वांगचुक ने खुद कहा था कि यह हिंसा 'Gen-Z क्रांति' थी, जो बेरोजगारी और लोकतांत्रिक अधिकारों के हनन से उपजी निराशा का नतीजा है। बुधवार को अनशन पर बैठे दो अन्य कार्यकर्ताओं की तबियत बिगड़ने की खबर ने युवाओं के गुस्से को और भड़का दिया, जिसके बाद वे सड़कों पर उतर आए और विरोध हिंसक हो गया।
जनमत की चेतावनी: राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि एक गांधीवादी और पूजनीय व्यक्ति को इस तरह से अपराधी बनाकर फंसाना, भाजपा के लिए और अधिक घातक कदम साबित हो सकता है। यह कार्रवाई लद्दाख के शांत लोगों में अलगाव और अविश्वास की भावना को और मजबूत कर सकती है।
आवश्यक कदम: इस स्थिति को नियंत्रित करने के लिए दमन या बल प्रयोग के बजाय, सरकार को तत्काल सोनम वांगचुक को विश्वास में लेना चाहिए था और लद्दाख के प्रतिनिधियों के साथ संवाद शुरू करना चाहिए था। लद्दाख का भविष्य सुरक्षित करने के लिए, पूर्ण राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची की संवैधानिक सुरक्षा जैसे मूलभूत वादे सरकार को पूरे करने ही पड़ेंगे।
लद्दाख की मुख्य मांगें (CORE DEMANDS)
पूर्ण राज्य का दर्जा (Statehood): विधानसभा के साथ पूर्ण राजनीतिक अधिकार।
छठी अनुसूची में शामिल करना (Sixth Schedule): भूमि, संसाधन और संस्कृति की सुरक्षा के लिए संवैधानिक स्वायत्तता।
नौकरी आरक्षण: सरकारी नौकरियों में स्थानीय निवासियों के लिए कोटा।
अलग लोकसभा सीटें: लेह और कारगिल के लिए अलग संसदीय प्रतिनिधित्व।
इस संकट ने लद्दाख की संवेदनशीलता को उजागर किया है। अब देखना यह है कि 6 अक्टूबर को होने वाली अगली दौर की वार्ता में केंद्र सरकार इन मांगों पर क्या ठोस और विश्वास-उत्पादक कदम उठाती है।
