24 सितंबर 2025:✍🏻 Z S Razzaqi | अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार
अमेरिका और भारत के बीच बढ़ते भू-रणनीतिक महत्व और व्यापारिक रिश्तों के बीच, दोनों देशों ने एक बार फिर से द्विपक्षीय संवाद को नई गति देने की कोशिश शुरू की है। संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के दौरान विदेश मंत्री एस. जयशंकर और अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो की न्यूयॉर्क में हुई अहम बैठक ने संकेत दिया कि वॉशिंगटन और नई दिल्ली अब व्यापार, ऊर्जा, रक्षा, फार्मा और क्रिटिकल मिनरल्स जैसे रणनीतिक क्षेत्रों में गंभीर साझेदारी की दिशा में आगे बढ़ना चाहते हैं।
अमेरिका का संदेश: "भारत एक अत्यंत महत्वपूर्ण साझेदार"
अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने बैठक के बाद कहा कि “भारत अमेरिका के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण रिश्ता है”। उन्होंने पाँच प्रमुख क्षेत्रों – व्यापार, ऊर्जा, रक्षा, दवाइयाँ और क्रिटिकल मिनरल्स – को सहयोग के स्तंभ बताते हुए इस रिश्ते को और गहरा करने की वकालत की।
अमेरिकी स्टेट डिपार्टमेंट ने भी आधिकारिक बयान में यही दोहराया कि भारत और अमेरिका “मुक्त और खुला हिंद-प्रशांत क्षेत्र” सुनिश्चित करने के लिए साथ काम करेंगे। यह स्पष्ट संकेत था कि दोनों देश चीन की बढ़ती आक्रामक नीतियों का संतुलन साधने के लिए सामरिक साझेदारी पर जोर दे रहे हैं।
मोदी-ट्रंप मुलाकात की संभावना
बैठक के बाद चर्चाओं का केंद्र यह भी रहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मुलाकात कब और कहाँ हो सकती है।
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संभावना जताई जा रही है कि 26 से 28 अक्टूबर को कुआलालंपुर (मलेशिया) में होने वाले आसियान और ईस्ट एशिया समिट के दौरान दोनों नेताओं की द्विपक्षीय बैठक हो सकती है।
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हालांकि यह पूरी तरह इस बात पर निर्भर करेगा कि भारत-अमेरिका व्यापार समझौते की बातचीत किस गति से आगे बढ़ती है। यदि समझौता समय रहते (26 अक्टूबर से पहले) पूरा हो गया तो मोदी-ट्रंप मुलाकात की राह आसान हो जाएगी।
व्यापार वार्ता: अटकी गाड़ी को आगे बढ़ाने की कोशिश
भारत और अमेरिका के बीच पिछले कई महीनों से व्यापार समझौते पर गतिरोध बना हुआ था।
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अमेरिका ने रूस से भारत की तेल खरीद पर नाराज़गी जताते हुए भारतीय आयात पर शुल्क 50% तक बढ़ा दिया था।
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इसके साथ ही, हाल ही में H-1B वीज़ा शुल्क को 1 लाख डॉलर तक कर दिया गया, जिससे भारतीय IT कंपनियों पर बड़ा असर पड़ सकता है।
इन विवादित मुद्दों के बावजूद, वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल और अमेरिकी प्रतिनिधियों के बीच गहन वार्ता जारी है।
यूरोपीय संघ (EU) की भूमिका: संतुलन का प्रयास
जयशंकर ने इस दौरान यूरोपीय संघ के विदेश मंत्रियों से भी मुलाकात की।
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EU ने भारत के साथ व्यापार और रणनीतिक साझेदारी को मज़बूत करने का नया एजेंडा पेश किया है।
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यूरोप खुद को भारत का “भरोसेमंद साझेदार” पेश कर रहा है, विशेषकर ऐसे समय में जब अमेरिका की नीतियाँ भारत को अस्थिर और अप्रत्याशित लग रही हैं।
EU-भारत वार्ता में यूक्रेन संघर्ष, गाज़ा संकट, ऊर्जा आपूर्ति और वैश्विक बहुपक्षवाद जैसे मुद्दों पर चर्चा हुई।
क्वाड और इंडो-पैसिफिक रणनीति
अमेरिका और भारत ने यह भी स्पष्ट किया कि वे क्वाड (Quad) समूह के भीतर मिलकर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता और सुरक्षा सुनिश्चित करेंगे। यह सीधा संदेश था कि दोनों देश चीन की बढ़ती दखलअंदाजी के खिलाफ साझा रणनीति पर काम कर रहे हैं।
भारत का रुख
सूत्रों के मुताबिक, यह बैठक सकारात्मक रही और विवादास्पद मुद्दों पर भी खुलकर चर्चा हुई।
निष्कर्ष:-
स्पष्ट है कि भारत-अमेरिका रिश्ते एक निर्णायक मोड़ पर हैं। आने वाले हफ्तों में यह तय होगा कि क्या दोनों देश अपने मतभेदों को पीछे छोड़कर एक ठोस व्यापारिक समझौते पर पहुँच पाते हैं। यदि ऐसा होता है, तो अक्टूबर में मोदी-ट्रंप मुलाकात न केवल एक राजनयिक प्रतीक होगी, बल्कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र की भू-राजनीति में नया संतुलन भी स्थापित कर सकती है।
