26 सितंबर 2025:✍🏻 Z S Razzaqi | वरिष्ठ पत्रकार
उत्तर प्रदेश के कानपुर में लगे “I Love Muhammad” पोस्टरों को लेकर शुरू हुए विवाद पर एआईएमआईएम (AIMIM) प्रमुख और हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कड़ा रुख अपनाया है। उन्होंने इस पूरे प्रकरण को धार्मिक आस्था पर हमला बताया और कहा कि किसी भी समुदाय के श्रद्धा-प्रदर्शन को उकसावे या राष्ट्रविरोधी भावना से जोड़ना अनुचित है।
ओवैसी का तर्क: “अगर ‘आई लव महादेव’ हो सकता है तो ‘आई लव मोहम्मद’ क्यों नहीं?”
बिहार के पूर्णिया में पत्रकारों से बात करते हुए ओवैसी ने कहा:
“अगर कोई ‘I Love Mahadev’ लिखता है तो इसमें क्या समस्या है? यह किस तरह का हिंसा भड़काने वाला काम है? अगर लोग ‘Happy Birthday PM Modi’ के पोस्टर लगा सकते हैं तो ‘I Love Prophet Muhammad’ क्यों नहीं लग सकता? आखिर शब्द ‘Love’ से समस्या क्यों हो रही है? लगता है इन लोगों के लिए हमें ‘मोहब्बत ज़िंदाबाद’ गाना बजाना पड़ेगा।”
उन्होंने आगे कहा कि संविधान का अनुच्छेद 25 प्रत्येक नागरिक को धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है। “इसमें राष्ट्रविरोधी क्या है? मुसलमान का ईमान तब तक मुकम्मल नहीं होता जब तक वह हज़रत मोहम्मद ﷺ से अपनी जान-माल से बढ़कर मुहब्बत न करे। ऐसे विरोध से दुनिया को आप क्या संदेश देना चाहते हैं?”
यूपी सरकार पर चयनात्मक कार्रवाई का आरोप
ओवैसी ने उत्तर प्रदेश पुलिस और सरकार पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि एडीजीपी का बयान था कि नए पोस्टर नहीं लगाए जाएंगे, लेकिन प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री के जन्मदिन वाले बैनर-होर्डिंग्स को अनुमति दी जाएगी।
“तो फिर एक कानून बना दीजिए कि इस देश में कोई भी मोहब्बत की बात नहीं करेगा। सिर्फ सत्ता से जुड़ी मोहब्बत ही वैध रहेगी,” ओवैसी ने तीखे अंदाज़ में कहा।
विवाद कैसे शुरू हुआ?
यह मामला 9 सितंबर को तब सामने आया जब कानपुर पुलिस ने 4 सितंबर को हुए बारावफात जुलूस के दौरान लगे ‘I Love Mohammad’ बोर्डों को लेकर नौ नामजद और 15 अज्ञात लोगों पर एफआईआर दर्ज की।
हिंदू संगठनों ने इसे “नया चलन” बताते हुए आपत्ति दर्ज कराई और जानबूझकर की गई उकसावे की कार्रवाई करार दिया।
ओवैसी ने इस कार्रवाई के खिलाफ सोशल मीडिया पर पोस्ट कर कहा था कि “‘I Love Muhammad’ कहना कोई जुर्म नहीं है।” इसके बाद विवाद और गहराता चला गया।
उमर अब्दुल्ला का समर्थन
इस मुद्दे पर जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी ओवैसी की तर्ज़ पर पुलिस कार्रवाई की आलोचना की। उन्होंने कहा कि ‘I Love Muhammad’ जैसे तीन सरल शब्दों को अपराध घोषित करना किसी मानसिक अस्वस्थता से कम नहीं है।
“कोर्ट को तुरंत इस पर संज्ञान लेना चाहिए। आखिर ये तीन शब्द कैसे गैर-कानूनी हो सकते हैं? दूसरी आस्थाओं के लोग भी अपने देवी-देवताओं और गुरुओं के प्रति इसी तरह श्रद्धा व्यक्त करते हैं। तो फिर इसमें आपत्ति क्यों?” अब्दुल्ला ने कहा।
उन्होंने तर्क दिया कि पूरे देश में गाड़ियों, दुकानों और घरों पर विभिन्न देवी-देवताओं की तस्वीरें और नाम लिखे मिलते हैं, जिसे कोई गैर-कानूनी नहीं मानता। “तो फिर ‘I Love Muhammad’ क्यों अपराध है?”
बड़ा सवाल: आस्था या राजनीति?
यह विवाद अब सिर्फ कानपुर तक सीमित नहीं रहा। ओवैसी और उमर अब्दुल्ला के बयानों ने इसे राष्ट्रीय बहस का विषय बना दिया है। एक पक्ष का कहना है कि यह महज़ धार्मिक आस्था का प्रदर्शन है, जबकि दूसरा पक्ष इसे साम्प्रदायिक तनाव बढ़ाने वाला “नया ट्रेंड” बता रहा है।
अब यह मामला न्यायालय और प्रशासन की संवेदनशीलता पर निर्भर करता है कि ‘I Love Muhammad’ को धार्मिक अधिकार के तहत वैध माना जाएगा या भड़काऊ नारेबाज़ी की श्रेणी में रखा जाएगा।
👉 यह पूरा विवाद एक अहम सवाल खड़ा करता है – क्या भारत जैसे बहुलतावादी लोकतंत्र में धार्मिक प्रेम और आस्था व्यक्त करने की आज़ादी को संदेह की नज़र से देखा जाना चाहिए, या फिर इसे लोकतांत्रिक अधिकार के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए?
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