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अमेरिका में फिर विवादों में H-1B वीज़ा: फ्लोरिडा गवर्नर ने बताया "पूरी तरह घोटाला", भारतीयों पर उठाई उंगली

 रिपोर्ट:✍🏻 Z S Razzaqi | अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार     

नई दिल्ली, 27 अगस्त 2025 – अमेरिका में रोजगार आधारित इमिग्रेशन और H-1B वीज़ा को लेकर एक बार फिर विवाद गहराता जा रहा है। फ्लोरिडा के गवर्नर रॉन डीसैंटिस ने इस वीज़ा को "पूरी तरह घोटाला" (Total Scam) करार देते हुए दावा किया कि इसकी वजह से अमेरिकी नागरिकों की नौकरियाँ छिन रही हैं और इसका सबसे ज़्यादा लाभ भारतीय ले रहे हैं।

डीसैंटिस ने बुधवार को फॉक्स न्यूज़ से बातचीत में कहा कि कंपनियाँ अमेरिकी कर्मचारियों से जबरन H-1B वर्कर्स को ट्रेनिंग दिलवाती हैं और बाद में उन्हीं अमेरिकियों की नौकरियाँ छीन ली जाती हैं। उनके अनुसार –

"ज़्यादातर H-1B वीज़ा धारक भारत से आते हैं। यह एक तरह का इंडस्ट्री बन चुका है, जहाँ लोग इस सिस्टम से पैसा बना रहे हैं।"

 

एआई और विदेशी मज़दूरों पर सवाल

डीसैंटिस ने आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI) के बढ़ते प्रभाव का ज़िक्र करते हुए कहा कि अमेरिकी युवा पहले ही तकनीक से नौकरियाँ खो रहे हैं, ऐसे में जब घरेलू मज़दूर उपलब्ध हैं तो देश को "विदेशी मज़दूर क्यों आयात" करने चाहिए?

रिपब्लिकन नेताओं का दबाव और ‘ग्रीन कार्ड’ बहस

इस बयान से पहले अमेरिकी वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लटनिक ने भी H-1B और ग्रीन कार्ड प्रणाली को त्रुटिपूर्ण बताते हुए कहा था कि अमेरिका को अपनी ही जनता को नौकरी देनी चाहिए। उन्होंने "गोल्ड कार्ड" योजना का सुझाव दिया, जिसके तहत अगर कोई विदेशी निवेशक अमेरिका में 5 मिलियन डॉलर लगाता है तो उसे स्थायी निवास (Residency) दी जा सकती है।

ट्रंप की डबल पॉलिसी

दिलचस्प बात यह है कि डोनाल्ड ट्रंप का H-1B वीज़ा को लेकर रुख हमेशा विरोधाभासी रहा है। राष्ट्रपति रहते हुए उन्होंने इस पर सख़्त प्रतिबंध लगाए, इसे "अमेरिकियों की नौकरियाँ छीनने वाला" बताया, लेकिन साथ ही अपने होटलों और व्यवसायों में बड़े पैमाने पर H-1B कर्मचारियों को नौकरी भी दी।
जनवरी 2025 में दूसरी बार राष्ट्रपति बनने के बाद ट्रंप ने व्हाइट हाउस में ओरेकल के लैरी एलिसन, सॉफ्टबैंक के मासायोशी सोन और ओपनएआई के सैम ऑल्टमैन के साथ मंच साझा करते हुए H-1B का समर्थन भी किया। उन्होंने कहा –

"हमें अपने देश में सबसे दक्ष लोग चाहिए। अगर इसका मतलब यह है कि वे दूसरों को प्रशिक्षित करें और उन्हें आगे बढ़ाएँ तो इसमें कोई बुराई नहीं।"

ट्रंप ने यहां तक उदाहरण दिए कि "मास्टर शेफ़, वाइन एक्सपर्ट्स, हाई-क्वालिटी वेटर्स से लेकर इंजीनियर्स तक—सभी क्षेत्रों में हमें श्रेष्ठ लोगों की ज़रूरत है।"

भारतीयों पर सीधा असर

अमेरिकी सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 10 लाख से अधिक भारतीय रोजगार-आधारित इमिग्रेशन बैकलॉग में फंसे हुए हैं। वहीं, H-1B वीज़ा धारकों में भारतीयों की हिस्सेदारी सबसे अधिक है। विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि रिपब्लिकन प्रशासन ने इस कार्यक्रम को रोकने या सीमित करने का कदम उठाया, तो इसका सबसे बड़ा असर भारतीय आईटी और टेक प्रोफेशनल्स पर पड़ेगा।

H-1B समर्थकों का तर्क

दूसरी ओर, अमेरिकन इमिग्रेशन काउंसिल और कई टेक कंपनियाँ इस कार्यक्रम का समर्थन करती हैं। उनका कहना है कि H-1B वीज़ा न केवल अमेरिकी लेबर मार्केट की कमी को पूरा करता है बल्कि इमिग्रेंट कर्मचारी अपनी कमाई अमेरिकी अर्थव्यवस्था में खर्च और निवेश करते हैं, नए बिज़नेस शुरू करते हैं और नवाचार (Innovation) लाते हैं।
2024 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, "इमिग्रेंट और नेटिव वर्कर्स अलग-अलग स्किल्स लेकर आते हैं और ज़्यादातर मामलों में वे एक-दूसरे के प्रतिस्पर्धी नहीं बल्कि पूरक साबित होते हैं।"



निष्कर्ष:-
H-1B वीज़ा अमेरिका में लंबे समय से राजनीतिक बहस का केंद्र रहा है। रिपब्लिकन नेता इसे अमेरिकी नौकरियों के लिए खतरा मानते हैं, जबकि टेक कंपनियाँ और इमिग्रेशन विशेषज्ञ इसे नवाचार और विकास का साधन बताते हैं। आने वाले महीनों में ट्रंप प्रशासन के फैसले इस कार्यक्रम का भविष्य तय करेंगे—और इसके सीधे प्रभाव भारतीयों पर पड़ेंगे।

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