रिपोर्ट:✍🏻 Z S Razzaqi | अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार
नई दिल्ली, 12 अगस्त 2025 — बिहार में Election Commission of India (ECI) द्वारा चलाए जा रहे Special Intensive Revision (SIR) को लेकर सुप्रीम कोर्ट में आज एक अहम सुनवाई हुई। राजनीतिक विश्लेषक और कार्यकर्ता योगेंद्र यादव ने अदालत में दावा किया कि यह प्रक्रिया दुनिया के इतिहास का सबसे बड़ा मताधिकार छीनने का अभियान है, जिसके तहत करीब 1 करोड़ लोगों को मतदाता सूची से बाहर किया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है, जो कल भी जारी रहेगी।
योगेंद्र यादव की सनसनीखेज प्रस्तुति — जीवित लोगों को मृत दिखाया
सुनवाई के दौरान यादव ने अदालत में दो ऐसे व्यक्तियों को पेश किया, जिन्हें निर्वाचन आयोग की ड्राफ्ट सूची में “मृत” घोषित कर दिया गया था, जबकि वे जीवित हैं।
ECI के वकील, वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी, ने इस पर आपत्ति जताते हुए कहा कि यादव को “ड्रामा” करने के बजाय प्रभावित व्यक्तियों की प्रविष्टि सुधारने में मदद करनी चाहिए। अदालत ने भी माना कि यह संभवतः “अनजाने में हुई त्रुटि” है, जिसे सुधारा जा सकता है।
मुख्य आरोप और आंकड़े — योगेंद्र यादव की विस्तृत दलीलें
योगेंद्र यादव ने अदालत में कई बिंदुओं पर गंभीर सवाल उठाए और आंकड़ों के साथ विश्लेषण पेश किया।
1. मतदाताओं का सामूहिक बहिष्कार
-
यादव ने कहा कि अदालत ने पहले आश्वासन दिया था कि बड़े पैमाने पर मतदाता विलोपन की स्थिति में वह हस्तक्षेप करेगी।
-
उन्होंने दावा किया कि 65 लाख से अधिक लोग पहले ही बाहर हो चुके हैं और यह संख्या 1 करोड़ तक पहुंच सकती है।
-
उनके अनुसार, यह SIR की प्रक्रिया का “कार्यान्वयन में असफल होना” नहीं है, बल्कि इसकी डिज़ाइन में ही खामी है, जो हर जगह वही नतीजे देगी।
2. वयस्क जनसंख्या के आंकड़ों में विसंगति
-
जनगणना आधारित प्रक्षेपण के अनुसार, बिहार की वयस्क जनसंख्या 8.18 करोड़ है, जबकि ECI इसे 7.9 करोड़ मान रहा है।
-
इसका मतलब यह है कि शुरुआत में ही लगभग 29 लाख लोगों की कमी थी, जिसे इस संशोधन में सुधारा जाना चाहिए था।
3. मतदाता सूची के तीन मानक और SIR की असफलता
यादव ने कहा कि किसी भी मतदाता सूची को Completeness (पूर्णता), Accuracy (शुद्धता) और Equity (समानता) के आधार पर परखा जाता है, लेकिन SIR इन तीनों पर विफल रहा है।
-
जब मतदाता पंजीकरण की जिम्मेदारी राज्य से हटाकर नागरिकों पर डाल दी जाती है, तो कुल मतदाताओं का लगभग 25% हिस्सा सूची से बाहर हो जाता है, विशेषकर गरीब, हाशिए के और अल्पसंख्यक समुदाय।
-
बिहार की मतदाता पात्रता दर 97% से घटकर 88% हो गई है, और आगे भी विलोपन जारी रहेगा।
4. 2003 के संशोधन से मौजूदा SIR की तुलना
-
2003 में बिहार में SIR नहीं बल्कि Intensive Revision हुआ था, जिसमें किसी से दस्तावेज़ या फॉर्म नहीं मांगे गए थे।
-
अधिकारी प्रिंटआउट लेकर घर-घर जाते थे और प्रविष्टियां सीधे सुधारते थे।
-
मौजूदा SIR में दो विवादित शर्तें हैं —
-
Enumeration Form भरना अनिवार्य
-
ग़ैर-नागरिक होने की पूर्वधारणा
-
-
यादव ने इन दोनों को “अभूतपूर्व” और “ग़ैरकानूनी” बताया।
5. ‘शून्य जोड़, बड़े पैमाने पर विलोपन’
-
यादव के अनुसार, यह भारत के इतिहास में पहली बार है कि मतदाता सूची संशोधन में नई प्रविष्टियां लगभग शून्य हैं, जबकि बड़े पैमाने पर नाम हटाए जा रहे हैं।
-
उन्होंने ECI के 2003 के आंकड़ों को भी चुनौती दी, जिसमें कहा गया था कि उस समय 4.6 करोड़ मतदाता पहले से सूची में थे, जबकि असल संख्या 2.5 करोड़ थी।
लोकतांत्रिक और संवैधानिक असर
विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि यह प्रक्रिया बिना सुधार जारी रही, तो इसके गंभीर परिणाम होंगे —
-
चुनावी प्रतिनिधित्व में असंतुलन
-
गरीब और हाशिए के समुदायों का राजनीतिक हाशियाकरण
-
लोकतंत्र में विश्वास की कमी
यह मामला केवल बिहार तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक राष्ट्रीय उदाहरण बन सकता है, जिससे भविष्य में अन्य राज्यों में भी बड़े पैमाने पर मतदाता विलोपन हो सकता है।
ये भी पढ़े
2 -प्रीमियम डोमेन सेल -लिस्टिंग
