रिपोर्ट: सरफ़राज़ ज़हूरी
उत्तर प्रदेश प्रशासन में हलचल: संवेदनशील कार्रवाई पर योगी सरकार की त्वरित प्रतिक्रिया
फतेहपुर (उत्तर प्रदेश), जुलाई 2025 — उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले में एक दलित और दिव्यांग व्यक्ति के मकान को बुलडोजर से ढहाए जाने के मामले ने राज्य सरकार को कठोर कार्रवाई के लिए विवश कर दिया। घटना में संलिप्त पाई गईं उपजिलाधिकारी (SDM) अर्चना अग्निहोत्री को प्रशासनिक लापरवाही और पर्यवेक्षणीय विफलता के आधार पर तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया है।
यह कार्रवाई मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा न्यायिक जिम्मेदारियों के प्रति संवेदनशीलता और जवाबदेही के सिद्धांत पर की गई एक ठोस मिसाल के रूप में देखी जा रही है।
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📌 घटना का पृष्ठभूमि
घटना फतेहपुर जिले के हथगांव तहसील अंतर्गत ग्राम समाज की भूमि को लेकर एक विवाद के संदर्भ में सामने आई।
आरोप है कि बिना समुचित नोटिस, दस्तावेजी प्रक्रिया और न्यायिक सुनवाई के एक दलित दिव्यांग व्यक्ति के घर पर प्रशासन ने बुलडोजर चलवा दिया, जिससे न केवल उसका आशियाना उजड़ गया बल्कि उसकी गरिमा और अधिकारों का भी घोर उल्लंघन हुआ।
⚖️ राज्य सरकार का एक्शन: SDM पर गिरी गाज
उत्तर प्रदेश के कार्मिक एवं नियुक्ति विभाग के प्रमुख सचिव एम. देवराज द्वारा जारी आदेश के अनुसार:
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SDM अर्चना अग्निहोत्री को पर्यवेक्षणीय कर्तव्यों में घोर लापरवाही बरतने, पीड़ित की सामाजिक स्थिति को दरकिनार करने और बिना उच्चाधिकारियों से समुचित मार्गदर्शन लिए अत्यधिक कठोर कार्रवाई को अंजाम देने के लिए तत्काल प्रभाव से निलंबित किया गया है।
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निलंबन अवधि में उन्हें राजस्व परिषद, लखनऊ से संबद्ध रखा गया है।
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मामले की विस्तृत जांच के लिए लखनऊ मंडल के आयुक्त को जांच अधिकारी नियुक्त किया गया है, जो पूरे घटनाक्रम की पड़ताल कर शासन को अपनी रिपोर्ट सौंपेंगे।
👨💼 पहले भी हुए थे अधिकारी सस्पेंड
यह पहला मौका नहीं जब इस मामले में कार्रवाई हुई हो। इससे पूर्व:
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कानूनगो जितेंद्र सिंह और
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ट्रेनी लेखपाल आराधना देवी
को भी इसी मामले में निलंबित किया जा चुका है। अब मामले में तहसीलदार, नायब तहसीलदार और पुलिस प्रशासन की भूमिका पर भी जांच की जा रही है, जिन पर भविष्य में कठोर अनुशासनात्मक कार्रवाई की संभावनाएं जताई जा रही हैं।
🤝 जनप्रतिनिधियों की सक्रियता
घटना के बाद बरमतपुर ब्लॉक प्रमुख सुशीला देवी ने स्वयं दिव्यांग पीड़ित से मुलाकात कर मानवीय सहायता, आर्थिक मदद और न्यायिक राहत दिलाने का आश्वासन दिया। उन्होंने कहा कि,
"दबंगई और संवेदनहीनता के साथ किसी भी गरीब या दलित का घर गिराना बेहद निंदनीय है। दोषियों पर कार्रवाई होनी चाहिए, और पीड़ित को शीघ्र पुनर्वास मिलना चाहिए।"
📚 कानूनी और मानवाधिकार पहलुओं पर उठे सवाल
इस घटना ने न केवल प्रशासनिक कार्यप्रणाली पर बल्कि मानवाधिकारों, सामाजिक न्याय और प्रशासनिक जवाबदेही जैसे अहम मुद्दों पर भी गंभीर सवाल खड़े किए हैं:
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क्या बिना सुनवाई और वैधानिक प्रक्रिया के किसी का घर गिराया जा सकता है?
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क्या दलितों और दिव्यांगों के संवैधानिक अधिकारों की पर्याप्त रक्षा हो रही है?
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क्या प्रशासन की कार्रवाई कानून के शासन (Rule of Law) के तहत थी?
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) और अनुसूचित जाति आयोग जैसी संस्थाओं द्वारा इस प्रकरण का स्वतः संज्ञान लेने की संभावनाएं भी जताई जा रही हैं।
📉 सामाजिक विश्वास और प्रशासनिक संरचना पर असर
इस प्रकार की घटनाएँ प्रशासन की विश्वसनीयता को कमजोर करती हैं और आम नागरिकों में भय एवं असुरक्षा की भावना उत्पन्न करती हैं। जब कोई वंचित वर्ग का व्यक्ति न्याय की आस में प्रशासन की ओर देखता है, और वहां से उसे अन्याय मिले — यह स्थिति लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए गंभीर चुनौती बन जाती है।