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Trump की वापसी के बाद पहला बड़ा झटका: महमूद खलील ने ठोका $20 मिलियन का केस, जानिए पूरी कहानी

 ✍🏻 Z S Razzaqi | अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार  


भूमिका: जब लोकतंत्र की भूमि पर सवाल उठने लगें

2025 में अमेरिका में फिर से सत्ता में लौटे डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन पर एक बार फिर गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप लगे हैं। इस बार निशाने पर हैं महमूद खलील, एक प्रखर फिलीस्तीन समर्थक छात्र कार्यकर्ता, जिनकी गिरफ्तारी, नजरबंदी और संभावित निर्वासन ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चिंता पैदा कर दी है। अब महमूद खलील ने ट्रंप प्रशासन के खिलाफ $20 मिलियन का मुकदमा दायर किया है, जिसमें गलत तरीके से हिरासत में लेने, झूठे आरोप लगाने और मानहानि की बात कही गई है।



कौन हैं महमूद खलील?

दमिश्क, सीरिया में फिलीस्तीनी माता-पिता के घर जन्मे महमूद खलील अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय में छात्र रहते हुए फिलीस्तीन समर्थक आंदोलन का चेहरा बनकर उभरे। अक्टूबर 2023 में गाज़ा युद्ध के बाद जब पूरी दुनिया में विरोध प्रदर्शन शुरू हुए, तब न्यूयॉर्क स्थित कोलंबिया यूनिवर्सिटी इसका केंद्र बन गई। खलील ने शांतिपूर्ण प्रदर्शनों में हिस्सा लिया और अमेरिका में फिलीस्तीनियों के अधिकारों की आवाज़ बुलंद की।

“मैं उन चंद खुशनसीबों में से हूँ जो फिलीस्तीन के लोगों के लिए बोल सकते हैं, जबकि हमारे अपने लोग मारे जा रहे हैं।” – महमूद खलील (मई 2024, अल जज़ीरा को दिए इंटरव्यू में)


क्या हुआ था महमूद खलील के साथ?

जनवरी 2025 में ट्रंप के फिर से राष्ट्रपति बनने के तुरंत बाद उन्होंने ऐसे विदेशी नागरिकों के खिलाफ कठोर कार्यवाही की घोषणा की जिन्हें “अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा” बताया गया। ट्रंप ने खुलेआम कहा था:

“2025 में हम इन जिहादी समर्थक छात्रों को खोज निकालेंगे और देश से बाहर कर देंगे।”

8 मार्च 2025 को महमूद खलील को उनके न्यूयॉर्क अपार्टमेंट से plain-clothes अधिकारियों ने गिरफ्तार किया। उनकी गर्भवती पत्नी, नूर अब्दल्ला, ने गिरफ्तारी का वीडियो रिकॉर्ड किया। खलील को न्यूयॉर्क से सीधे न्यू जर्सी और फिर लुइसियाना के ला सैले डिटेंशन सेंटर ले जाया गया—जहाँ उन्हें बिना किसी आरोप के तीन महीने से अधिक रखा गया।


कानूनी प्रक्रिया और संविधानिक सवाल

खलील के वकीलों ने उनके डिपोर्टेशन और डिटेंशन दोनों के खिलाफ याचिकाएं दायर कीं। लेकिन चौंकाने वाली बात ये रही कि शुरुआती दिनों में वकील तक नहीं जानते थे कि खलील को कहाँ रखा गया है।

अमेरिकी नागरिकता और आप्रवासन अधिनियम (1952) की एक अस्पष्ट धारा का इस्तेमाल करते हुए विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने खलील को देश से निकालने की प्रक्रिया शुरू की, जिसमें उन्हें अमेरिका के लिए "विदेश नीति में गंभीर बाधा" बताया गया।

हालांकि, 20 जून 2025 को न्यू जर्सी की एक अदालत ने उनकी रिहाई का आदेश दिया, लेकिन तब तक वे अपने पहले बच्चे के जन्म का मौका खो चुके थे।


क्या है खलील की याचिका का आधार?

महामूद खलील ने अपनी याचिका में निम्नलिखित प्रमुख बिंदु उठाए हैं:

  • ट्रंप प्रशासन ने उनकी छवि को 'हम्मास समर्थक' और 'आतंकवादी हमदर्द' कहकर बदनाम किया।

  • गिरफ्तारी राजनीतिक प्रतिशोध थी, जिसका कोई आपराधिक आधार नहीं था।

  • उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Free Speech) का घोर उल्लंघन हुआ।

  • मानवाधिकारों और आव्रजन कानूनों की अनदेखी हुई।


क्या कहता है प्रशासन?

ट्रंप और उनके समर्थकों ने खलील पर यह कहकर निशाना साधा कि उन्होंने हमास जैसे आतंकी संगठन से सहानुभूति जताई। अमेरिकी गृह सुरक्षा विभाग (DHS) और ICE ने भी यही आरोप दोहराया।

“यह पहला गिरफ्तार छात्र है, और बहुत से अभी बाकी हैं।” — ट्रंप ने सोशल मीडिया पर लिखा।


बड़ा सवाल: क्या यह सिर्फ एक व्यक्ति का मामला है?

नहीं। खलील के अलावा दो और विदेशी छात्रों – मोहसिन महदावी और रुमेसा ओज़तुरक – को भी गिरफ्तार किया गया। ओज़तुरक को इसलिए हिरासत में लिया गया क्योंकि उन्होंने अपने यूनिवर्सिटी अखबार में गाज़ा युद्ध के खिलाफ एक लेख लिखा था।


मामले का संभावित असर: ट्रंप प्रशासन के लिए खतरे की घंटी

खलील की यह कानूनी कार्यवाही केवल व्यक्तिगत न्याय की लड़ाई नहीं है, बल्कि यह एक राजनीतिक सिद्धांत और लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा की लड़ाई बन चुकी है। यदि यह मामला Federal Tort Claims Act के तहत आगे बढ़ता है और खलील को मुआवज़ा मिलता है, तो यह उन सभी कार्यकर्ताओं के लिए एक मिसाल बनेगा जो सत्ता की आलोचना करते हैं।

“जब तक उन्हें जवाबदेह नहीं ठहराया जाएगा, सत्ता का दुरुपयोग यूँ ही जारी रहेगा।” – महमूद खलील


निष्कर्ष: यह सिर्फ अमेरिका की कहानी नहीं

महमूद खलील की कहानी आज अमेरिका की, लेकिन कल किसी भी लोकतंत्र की हो सकती है। सवाल सिर्फ एक छात्र की गिरफ्तारी का नहीं, बल्कि उस बुनियादी सिद्धांत का है जिस पर आधुनिक लोकतंत्र टिका है — अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मानव गरिमा।

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