✍🏻 Z S Razzaqi | अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार
टोक्यो | जापान की राजनीति में एक ऐतिहासिक मोड़ उस समय आया जब प्रधानमंत्री शिगेरु इशिबा के नेतृत्व वाले सत्ताधारी गठबंधन को ऊपरी सदन (हाउस ऑफ काउंसिलर्स) में बहुमत खोना पड़ा। इस हार के बाद प्रधानमंत्री की स्थिति न केवल पार्टी के भीतर बल्कि पूरे राजनीतिक परिदृश्य में डावांडोल हो गई है।
यह जापान की लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (LDP) के 70 वर्षों के इतिहास में पहली बार है कि पार्टी एक ऐसे गठबंधन की अगुवाई कर रही है, जो संसद के दोनों सदनों में बहुमत नहीं रखती।
क्या हुआ इस चुनाव में?
जापान में ऊपरी सदन की कुल 248 सीटें होती हैं, जिनमें से हर तीन साल पर आधी सीटों के लिए चुनाव कराए जाते हैं। इस बार 124 नियमित सीटों के साथ एक अतिरिक्त सीट पर भी उपचुनाव हुआ।
चुनाव में:
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75 सीटें पहले से ही बिना मुकाबले जीत चुकी थीं,
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50 सीटें प्रोपोर्शनल रिप्रजेंटेशन (अनुपातिक प्रतिनिधित्व) के जरिए भरी जानी थीं,
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बाकी सीटें सीधे निर्वाचन क्षेत्रों से चुनी जानी थीं।
सत्तारूढ़ गठबंधन — LDP और इसकी सहयोगी कोमेटो — को बहुमत पाने के लिए कुल 125 सीटें चाहिए थीं। पहले से मौजूद 75 सीटों को मिलाकर उन्हें कम से कम 50 और सीटों की दरकार थी, लेकिन NHK के अनुमान के मुताबिक वे केवल 47 सीटें ही ला सके।
राजनीतिक समीकरण: कौन कहां खड़ा है?
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LDP + Komeito गठबंधन: 47 सीटें (बहुमत से चूक)
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मुख्य विपक्षी पार्टी – कंस्टीट्यूशनल डेमोक्रेटिक पार्टी: 22 सीटें
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नवोदित दक्षिणपंथी पार्टी — सान्सेइतो: 14 सीटें (पिछली बार सिर्फ 1 सीट थी)
सान्सेइतो पार्टी ने "Japanese First" जैसे राष्ट्रवादी और प्रवासी विरोधी एजेंडे के साथ ज़ोरदार उभार दिखाया है, लेकिन पार्टी प्रमुख कामिया सोहेई ने स्पष्ट कर दिया कि वे फिलहाल सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल नहीं होंगे।
सान्सेइतो का उभार: जापान की राजनीति में नया तूफान
2020 में कोविड महामारी के दौरान यूट्यूब से जन्मी यह पार्टी साजिश सिद्धांतों, टीकाकरण विरोधी प्रचार और वैश्विक ‘एलिट कैबाल’ के विरुद्ध नारों के ज़रिये तेजी से लोकप्रिय हुई। इस बार इसने अप्रत्याशित सफलता पाई और 14 सीटों के साथ ऊपरी सदन में ठोस उपस्थिति दर्ज की।
अमेरिका स्थित जापान सोसाइटी के प्रमुख जोशुआ वॉकर के अनुसार, “सान्सेइतो का उभार दरअसल LDP और इशिबा की कमजोरी का प्रमाण है, न कि उनकी शक्ति का।”
इशिबा के नेतृत्व पर संकट के बादल
प्रधानमंत्री शिगेरु इशिबा पहले ही अक्टूबर 2024 के निचले सदन चुनावों में खराब प्रदर्शन का सामना कर चुके हैं। अब जब ऊपरी सदन भी हाथ से निकल गया है, तो उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव और आंतरिक नेतृत्व परिवर्तन की मांगें ज़ोर पकड़ सकती हैं।
हालांकि, इशिबा ने NHK को दिए साक्षात्कार में कहा, “यह एक कठोर परिणाम है, जिसे हम गंभीरता से लेते हैं। मैं प्रधानमंत्री और पार्टी नेता के रूप में अपने पद पर बना रहूंगा।” उन्होंने अमेरिका के साथ जारी व्यापार वार्ताओं को प्राथमिकता देने की बात दोहराई, जिनमें 1 अगस्त से पहले कोई समझौता न होने की स्थिति में जापानी वस्तुओं पर भारी अमेरिकी शुल्क लगाए जा सकते हैं।
आगे क्या? नया प्रधानमंत्री या गठबंधन में बदलाव?
अगर इशिबा को हटाया गया तो सवाल यह उठता है कि उनका उत्तराधिकारी कौन होगा? यूनिवर्सिटी ऑफ त्सुकुबा के राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर हिदेहिरो यामामोटो के मुताबिक, “यह स्पष्ट नहीं है कि अगला प्रधानमंत्री कौन होगा। LDP अब बिना किसी सदन में बहुमत के चल रही है, और विपक्ष के समर्थन के बिना सरकार चलाना मुश्किल होगा।”
निष्कर्ष: जापान में अस्थिरता की शुरुआत?
इस चुनाव परिणाम ने जापान की राजनीतिक स्थिरता को गंभीर चुनौती दी है। जहां एक ओर सत्तारूढ़ दल अपनी ऐतिहासिक ताकत खोता नजर आ रहा है, वहीं एक दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी दल तेजी से उभर रहा है, जो भविष्य में राजनीति की दिशा ही बदल सकता है।
प्रधानमंत्री इशिबा की अग्नि परीक्षा अभी समाप्त नहीं हुई है — बल्कि यह शुरुआत है उस राजनीतिक तपिश की, जो अब टोक्यो की गलियों में महसूस की जा रही है।
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