✍🏻 Z S Razzaqi | अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार
ट्रम्प की घोषणा ने दुनिया को चौंकाया
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प, जो 2024 के चुनावों में एक बार फिर राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार हैं, ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म Truth Social पर एक चौंकाने वाला बयान जारी किया। उन्होंने कहा कि ईरान और इज़राइल के बीच “पूर्ण और स्थायी युद्धविराम” पर सहमति बन गई है।
ट्रम्प के मुताबिक यह युद्धविराम तीन चरणों में लागू होगा—ईरान तुरंत युद्धविराम लागू करेगा, इज़राइल 12 घंटे बाद, और अगले 24 घंटों के भीतर दोनों पक्ष पूरी तरह युद्धविराम के समझौते पर अमल कर देंगे।
उन्होंने इस युद्ध को "12-Day War" की संज्ञा दी और दावा किया कि यह शांति समझौता उनके व्यक्तिगत हस्तक्षेप और कतर की मध्यस्थता से संभव हुआ।
क्या यह वाकई समझौता हुआ है?
ट्रम्प के दावे के बाद विश्व मीडिया और सरकारें सक्रिय हो गईं। हालांकि इज़राइल सरकार ने शुरुआत में कोई स्पष्ट पुष्टि नहीं की, बाद में प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से यह बयान आया कि वे युद्धविराम की प्रक्रिया में शामिल हैं।
ईरान की ओर से अधिक सतर्क प्रतिक्रिया देखने को मिली। विदेश मंत्री होसैन अमीर अब्दुल्लाहियान ने कहा कि कोई औपचारिक संधि नहीं हुई है, लेकिन यदि इज़राइल हमले बंद करता है तो ईरान भी संघर्ष नहीं बढ़ाएगा।
इससे स्पष्ट है कि ट्रम्प की घोषणा पूर्व-सहमति नहीं, बल्कि संभावित दबाव रणनीति या मध्यस्थता का परिणाम हो सकती है, जिसे उन्होंने चुनावी लाभ के लिए सार्वजनिक किया।
हमलों का विवरण: किसने क्या खोया?
इस संघर्ष की शुरुआत इज़राइल पर ईरान समर्थित हिज़्बुल्लाह और हमास के रॉकेट हमलों से हुई थी। जवाब में इज़राइल ने सीरिया और ग़ज़ा में कई ठिकानों पर बमबारी की। इसके बाद अमेरिका खुलकर इज़राइल के समर्थन में आया।
सबसे बड़ा मोड़ तब आया जब अमेरिका ने 'Operation Midnight Hammer' के तहत ईरान की तीन प्रमुख परमाणु साइटों—नतान्ज़, फ़ोर्डो और इस्फ़हान—पर बी-2 स्टील्थ बॉम्बर्स से हमला किया। इस हमले में बड़ी संख्या में वैज्ञानिकों और सैनिकों के मारे जाने की खबरें आईं। ईरान ने इसे “युद्ध की औपचारिक घोषणा” कहा।
इसके जवाब में ईरान ने इज़राइल के तेल अवीव, बियर शेवा और हाइफ़ा में मिसाइलें दागीं। बियर शेवा में पांच नागरिकों की मौत हुई और दर्जनों घायल हो गए।
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Tel Aviv |
इसके अलावा, ईरान ने कतर में स्थित अमेरिकी वायुसेना बेस अल-उदैद को भी निशाना बनाया, लेकिन अमेरिकी और क़तरी सुरक्षा प्रणालियों ने मिसाइलों को हवा में ही नष्ट कर दिया।
अमेरिका-कतर की भूमिका
इस पूरे संघर्ष के दौरान कतर ने अहम भूमिका निभाई। कतर के रक्षा मंत्रालय ने पुष्टि की कि उन्होंने युद्धविराम वार्ता में मध्यस्थता की। अमेरिकी सेना और कतर की वायुसेना ने साझा रूप से अल-उदैद एयरबेस की सुरक्षा की और कई अमेरिकी नागरिकों को इज़राइल और लेबनान से निकालकर सुरक्षित स्थानों पर पहुँचाया गया।
यह पहली बार नहीं है जब कतर ने क्षेत्रीय शांति वार्ता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हो। 2021 में भी उन्होंने तालिबान-अमेरिका वार्ता में मध्यस्थता की थी।
युद्ध का मानवीय असर
इस 12 दिवसीय युद्ध में अब तक की पुष्टि के अनुसार 974 ईरानी नागरिक मारे गए हैं और लगभग 3000 से अधिक घायल हुए हैं। इज़राइल में कम से कम 28 नागरिकों की मौत और 400 से अधिक घायल होने की खबर है।
गज़ा और लेबनान के सीमावर्ती क्षेत्रों में हजारों लोग विस्थापित हुए हैं। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार लगभग 1.2 लाख लोग अपने घरों को छोड़कर शरणार्थी शिविरों में रहने को मजबूर हैं।
अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने मानवीय सहायता भेजनी शुरू कर दी है, लेकिन ईरान और इज़राइल दोनों के लिए चुनौती अभी खत्म नहीं हुई है।
वैश्विक प्रतिक्रिया
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आपात बैठक में युद्धविराम का स्वागत किया गया लेकिन स्थायित्व को लेकर चिंता भी जताई गई। भारत, चीन, रूस, फ्रांस और ब्रिटेन ने इस युद्ध को “अनावश्यक और विनाशकारी” बताया और दोनों देशों से संयम बरतने की अपील की।
तेल की कीमतों में इस युद्ध के दौरान 15 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई थी, जो अब युद्धविराम की घोषणा के बाद वापस गिरनी शुरू हुई है। अमेरिकी शेयर बाजारों में सुधार के संकेत मिलने लगे हैं।
आगे क्या?
अब सवाल यह है कि क्या यह युद्धविराम स्थायी होगा? क्या इज़राइल और ईरान अपने गहरे वैचारिक और रणनीतिक मतभेदों को पीछे छोड़कर शांति की दिशा में बढ़ेंगे?
विश्लेषकों का मानना है कि यह युद्धविराम अस्थायी राहत तो दे सकता है, लेकिन जब तक ईरान के परमाणु कार्यक्रम और इज़राइल की सुरक्षा चिंताओं पर कोई दीर्घकालिक कूटनीतिक समाधान नहीं निकलता, तब तक संघर्ष की संभावना बनी रहेगी।
निष्कर्ष
ईरान-इज़राइल युद्धविराम फिलहाल दुनिया को एक बड़े युद्ध से बचाने वाला कदम प्रतीत हो सकता है, लेकिन यह कब तक टिका रहेगा, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि दोनों देश भविष्य में उकसावे से कैसे निपटते हैं और क्या अमेरिका जैसे देशों की मध्यस्थता उन्हें स्थायी संवाद की ओर ले जा सकती है।यह कहानी अभी समाप्त नहीं हुई है।
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