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कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी ने मोदी को G7 सम्मेलन में बुलाया, निज्जर हत्याकांड पर मौन से भड़का सिख समुदाय

 ✍🏻 Z S Razzaqi | अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार

टोरंटो, कनाडा | 6 जून 2025
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी द्वारा आगामी G7 शिखर सम्मेलन (15–17 जून, कनानास्किस, अल्बर्टा) में आमंत्रित किए जाने पर तीखी प्रतिक्रिया सामने आ रही है। यह आमंत्रण उस समय आया है जब कनाडा की संघीय पुलिस ने सिख नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या को “भारतीय सरकार के उच्चतम स्तर” से जोड़ने का दावा किया है।

Symbolic Image 

इस घटना ने कनाडा में बसे लाखों सिखों के बीच एक गहरा असंतोष और अविश्वास पैदा कर दिया है। उनका मानना है कि कनाडा की लोकतांत्रिक प्रतिष्ठा और मानवाधिकारों के प्रति प्रतिबद्धता को अंतरराष्ट्रीय कूटनीति की वेदी पर बलिदान कर दिया गया है।


लोकतंत्र बनाम कूटनीति: क्या मोदी के भारत को लोकतंत्र कहना पर्याप्त है?

प्रधानमंत्री कार्नी ने पत्रकारों से बातचीत में इस आमंत्रण को एक “रणनीतिक निर्णय” बताया। उन्होंने कहा:

“भारत दुनिया की सबसे बड़ी आबादी और पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं, ऊर्जा, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और क्रिटिकल मिनरल्स के मुद्दों पर भारत की भूमिका केंद्रीय है।”

लेकिन यहीं से विवाद की शुरुआत होती है। भारत की लोकतांत्रिक छवि, जो दशकों तक उसकी वैश्विक पहचान रही है, अब गहरे सवालों के घेरे में है।

नरेंद्र मोदी की सरकार पर मीडिया पर नियंत्रण, अल्पसंख्यकों पर दमन, असहमति को देशद्रोह कहने और संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर करने जैसे गंभीर आरोप लगते रहे हैं। यही कारण है कि भारत को ‘इलेक्ट्रोरल ऑटोकरेसी’ कहने वाले वैश्विक संस्थानों की संख्या बढ़ रही है।


हरदीप सिंह निज्जर की हत्या: एक लोकतांत्रिक देश में विदेशी साज़िश?

18 जून 2023 को हरदीप सिंह निज्जर की हत्या कनाडा के सरे शहर में एक गुरुद्वारे के बाहर गोली मारकर कर दी गई थी। कनाडा की संघीय जांच एजेंसी RCMP ने बाद में चार भारतीय मूल के लोगों को गिरफ्तार किया और जांच में पाया कि इस हत्या के पीछे भारतीय खुफिया एजेंसियों की भूमिका थी।

प्रधानमंत्री कार्नी ने जब इस विषय पर मोदी की भूमिका को लेकर सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा:

"एक कानूनी प्रक्रिया चल रही है और उस पर टिप्पणी करना इस समय उचित नहीं होगा।"

यह चुप्पी अब राजनीतिक संयम नहीं बल्कि नैतिक चूक मानी जा रही है, विशेषकर तब जब कनाडा और भारत ने एक-दूसरे के शीर्ष राजनयिकों को निष्कासित कर दिया है और संबंधों में तीखा तनाव बना हुआ है।


World Sikh Organization की तीखी प्रतिक्रिया: "यह शर्मनाक और विश्वासघात है"

World Sikh Organization (WSO) ने प्रधानमंत्री कार्नी के निर्णय पर कड़ा ऐतराज़ जताया। संगठन के अध्यक्ष दानिश सिंह ने अपने बयान में लिखा:

"जब कनाडा के ही एक नागरिक की हत्या के पीछे एक विदेशी सरकार की भूमिका मानी जा रही हो, तब उस सरकार के प्रमुख को रेड कारपेट पर बुलाना हमारी न्याय व्यवस्था और राष्ट्रीय अस्मिता का अपमान है।”

उन्होंने आगे सवाल उठाया कि:

“क्या हम रूस, चीन या ईरान के नेताओं को ऐसे ही आमंत्रित करते, यदि उन पर कनाडाई ज़मीन पर हत्या का आरोप होता?”

WSO का आरोप है कि भारत कनाडा में न केवल राजनीतिक हत्याओं में संलिप्त रहा है, बल्कि उसने गैंग हिंसा, डराने-धमकाने और निर्वासित कार्यकर्ताओं को चुप कराने जैसी गतिविधियाँ भी की हैं।


नरेंद्र मोदी और लोकतंत्र: एक विरोधाभास?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा:

“भारत और कनाडा जीवंत लोकतंत्र हैं। हम साझा हितों और परस्पर सम्मान के आधार पर सहयोग करेंगे।”

परंतु भारत का “लोकतंत्र” किस रूप में जीवंत है, यह सवाल बार-बार उठता रहा है।

  • प्रेस की स्वतंत्रता में भारत 180 देशों में 159वें स्थान पर है (RSF, 2025)

  • घृणा अपराधों, अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न, और लोकतांत्रिक संस्थाओं के क्षरण की घटनाओं में वृद्धि हुई है

  • EVM से लेकर अदालतों तक, सवाल उठाने वालों को “टुकड़े-टुकड़े गैंग” कहकर चुप कराने की प्रवृत्ति बढ़ी है

G7 जैसे मंचों पर भारत की भागीदारी तब तक सार्थक नहीं मानी जा सकती जब तक भारत के भीतर लोकतांत्रिक मूल्यों और मानवाधिकारों का वास्तविक सम्मान न हो।


कूटनीति की मजबूरी या नैतिकता का परित्याग?

प्रधानमंत्री मार्क कार्नी हाल ही में चीन के प्रधानमंत्री ली क़ियांग से बातचीत कर चुके हैं, जिसमें व्यापारिक तनाव, फेंटानिल जैसे ड्रग्स की तस्करी और निवेश बाधाओं पर चर्चा हुई। वहीं, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ भी स्टील और एल्युमिनियम टैरिफ को लेकर सीधी बातचीत चल रही है।

कनाडा इस समय विश्व स्तर पर आर्थिक पुनर्निर्माण और रणनीतिक संतुलन साधने के प्रयास में है। परंतु क्या इस प्रयास में मानवाधिकार, नैतिकता और न्याय जैसे मूलभूत सिद्धांत पीछे छूटते जा रहे हैं?


निष्कर्ष:-

 क्या G7 वैश्विक नैतिकता का मंच है या कूटनीतिक व्यापार मंडी?

प्रधानमंत्री मोदी को G7 में आमंत्रित करना केवल एक राजनीतिक निर्णय नहीं, बल्कि यह लोकतंत्र की परिभाषा पर अंतरराष्ट्रीय सहमति की परीक्षा भी है।

क्या लोकतंत्र केवल चुनाव और बहुमत तक सीमित है?
या फिर यह संविधान, स्वतंत्र प्रेस, नागरिक अधिकारों और जवाबदेही की एक समग्र संस्कृति है?

यदि बाद वाला सच है, तो भारत के प्रधानमंत्री को G7 जैसे मंचों पर आमंत्रित करना केवल एक राजनयिक तर्क नहीं, बल्कि वैश्विक दोहरे मापदंडों का उद्घाटन भी है।

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