भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना द्वारा सोमवार को एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई अब न्यायमूर्ति बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ को सौंप दी गई है। यह निर्णय इसलिए लिया गया क्योंकि CJI खन्ना 13 मई को सेवानिवृत्त होने जा रहे हैं और यह मामला अंतरिम आदेश देने के लिए भी एक लंबी सुनवाई की मांग करता है।
सुनवाई के दौरान CJI खन्ना की अध्यक्षता वाली तीन-न्यायाधीशों की पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति पीवी संजय कुमार और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन भी शामिल थे, ने कहा:
“हमने काउंटर और रिप्लाई पढ़ लिए हैं। कुछ महत्वपूर्ण मुद्दे, जैसे वक्फ की रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया और कुछ विवादास्पद आंकड़े, याचिकाकर्ताओं द्वारा उठाए गए हैं। यह मामला एक ‘रिजनेबल डे’ पर सुना जाना चाहिए, लेकिन यह मेरे समक्ष नहीं होगा।”
CJI ने यह स्पष्ट किया कि वे सेवानिवृत्त होने से पहले इस मामले में कोई आदेश आरक्षित नहीं करना चाहते।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुनवाई के दौरान कहा,
"हम आपके समक्ष अपने तर्क रखना चाहते थे क्योंकि हर आपत्ति का जवाब है, लेकिन समय की कमी को देखते हुए हम आपको असहज नहीं करना चाहते।"
इसके बाद अदालत ने आदेश दिया कि यह मामला 14 मई को न्यायमूर्ति बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाए।
पृष्ठभूमि: वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025 क्या है?
वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025, जिसे 3 अप्रैल को लोकसभा और 4 अप्रैल को राज्यसभा से पारित कर दिया गया था, वक्फ अधिनियम 1995 में संशोधन करता है। राष्ट्रपति की मंज़ूरी इसे 5 अप्रैल को प्राप्त हुई।
यह कानून इस्लामी धर्मार्थ और धार्मिक उद्देश्यों के लिए समर्पित संपत्तियों (वक्फ संपत्तियों) के नियमन से संबंधित है।
क्या हैं विवाद के प्रमुख बिंदु?
इस अधिनियम को कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद और AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी सहित कई याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। उनका तर्क है कि:
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यह संशोधन मुस्लिम समुदाय के धार्मिक अधिकारों में अनुचित हस्तक्षेप करता है।
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"वक्फ बाय यूजर" की परिभाषा को हटाया गया है, जिससे ऐसी धार्मिक और ऐतिहासिक संपत्तियाँ, जिनके पास औपचारिक दस्तावेज़ नहीं हैं, अब वक्फ नहीं मानी जाएंगी।
उनका कहना है कि इससे सैकड़ों साल पुरानी मस्जिदें, कब्रिस्तान, दरगाहें और धर्मार्थ संस्थान अपने धार्मिक दर्जे से वंचित हो सकते हैं।
सरकार की सफाई: वक्फ के दुरुपयोग पर नियंत्रण
केंद्र सरकार ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट को बताया कि यह संशोधन वक्फ की आड़ में निजी और सरकारी जमीनों पर अवैध दावों को रोकने के लिए लाया गया है।
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2013 के संशोधन के बाद वक्फ संपत्तियों के क्षेत्रफल में 116% की वृद्धि दर्ज की गई, जिससे सरकारी और निजी जमीनों पर वक्फ का दावा बढ़ा।
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“वक्फ बाय यूजर” की अवधारणा हटाने से नागरिकों के संपत्ति अधिकारों की रक्षा होगी और सरकारी संपत्ति पर अवैध दावा रोका जा सकेगा।
राज्यों का हस्तक्षेप: बीजेपी शासित 6 राज्य अधिनियम के पक्ष में
हरियाणा, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और असम जैसे 6 भाजपा शासित राज्यों ने सुप्रीम कोर्ट में हस्तक्षेप आवेदन दाखिल कर इस अधिनियम के पक्ष में खड़े होने की मंशा ज़ाहिर की है। इनका कहना है कि यदि संशोधन को अवैध ठहराया गया, तो इससे राज्यों की संपत्तियों और प्रशासन पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा।
विवादित बिंदु: वक्फ परिषद में गैर-मुस्लिम सदस्य
अधिनियम में सेंट्रल वक्फ काउंसिल और राज्य वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने की भी बात है, जिसे याचिकाकर्ताओं ने अनुच्छेद 26 के तहत मुस्लिम समुदाय के धार्मिक अधिकारों के उल्लंघन के रूप में देखा है।
इसके जवाब में केंद्र ने कहा है कि ये संस्थाएं केवल प्रशासनिक कार्य करती हैं, धार्मिक नहीं। साथ ही गैर-मुस्लिम सदस्य “सूक्ष्म अल्पसंख्यक” के रूप में शामिल होंगे, जिससे संस्थाओं में समावेशिता आएगी।
निष्कर्ष: अब क्या आगे होगा?
अब यह मामला 14 मई को न्यायमूर्ति बीआर गवई की पीठ के समक्ष सुना जाएगा। चूंकि मामला व्यापक और संवेदनशील है, इसकी सुनवाई लंबी खिंचने की संभावना है।
सीजेआई संजीव खन्ना की यह स्पष्ट टिप्पणी कि वे सेवानिवृत्त होने से पहले भी अंतरिम आदेश नहीं देना चाहते, यह दर्शाता है कि न्यायपालिका इस संवेदनशील मुद्दे पर बेहद सावधानी से आगे बढ़ रही है।
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