नई दिल्ली, 7 अप्रैल 2025 — देश की सर्वोच्च न्यायालय में सोमवार को वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं की तत्काल सुनवाई की मांग उठाई गई। वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने जमीयत उलेमा-ए-हिंद की ओर से मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति पीवी संजय कुमार की पीठ के समक्ष इस मामले का उल्लेख किया।
“हम वक्फ संशोधन अधिनियम को चुनौती दे रहे हैं। कृपया इसे शीघ्र सूचीबद्ध करें।”— कपिल सिब्बल, वरिष्ठ अधिवक्ता
मुख्य न्यायाधीश खन्ना ने उत्तर दिया,
“मैं दोपहर में आपके मेंशन लेटर की समीक्षा कर निर्णय लूंगा। इसे सूचीबद्ध किया जाएगा।”
इस मुद्दे पर वरिष्ठ अधिवक्ता एएम सिंहवी और अधिवक्ता नज़ीम पाशा समेत अन्य वकील भी याचिकाकर्ताओं की ओर से उपस्थित रहे। अब तक सात याचिकाएँ इस अधिनियम के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर की जा चुकी हैं।
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🔍 क्या है वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025?
यह अधिनियम 5 अप्रैल 2025 को राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त कर आधिकारिक रूप से लागू हो चुका है। इसका उद्देश्य वक्फ अधिनियम, 1995 में व्यापक बदलाव कर वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन, पारदर्शिता, और जवाबदेही को सुदृढ़ करना है।
प्रमुख संशोधन बिंदु:
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अधिनियम का नाम परिवर्तन:
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अब यह “Unified Waqf Management, Empowerment, Efficiency, and Development Act” कहलाएगा, जिससे प्रशासनिक दक्षता और व्यापकता का संकेत मिलता है।
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वक्फ की परिभाषा में संशोधन:
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केवल वही व्यक्ति वक्फ घोषित कर सकता है जो कम से कम पाँच वर्षों से इस्लाम का अनुयायी हो और संबंधित संपत्ति का वैध स्वामी हो।
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‘वक्फ बाय यूज़र’ की अवधारणा समाप्त कर दी गई है — अब केवल लंबे धार्मिक प्रयोग के आधार पर संपत्ति को वक्फ नहीं माना जा सकेगा।
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वक्फ अलाल औलाद के अधिकार सीमित:
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अब वंशानुगत वक्फ से किसी महिला या अन्य उत्तराधिकारियों को उनका कानूनी उत्तराधिकार नहीं छीना जा सकेगा।
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वक्फ बोर्ड की शक्तियाँ सीमित:
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अब वक्फ बोर्ड किसी संपत्ति की वक्फ स्थिति निर्धारित करने की स्वतंत्र जांच नहीं कर सकेगा।
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वक्फ परिषद में गैर-मुस्लिम सदस्य:
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केंद्रीय वक्फ परिषद में अब दो गैर-मुस्लिम सदस्य अनिवार्य रूप से होंगे।
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संसद सदस्य, पूर्व न्यायाधीश, और अन्य प्रतिष्ठित व्यक्तियों के लिए मुस्लिम होना अब आवश्यक नहीं।
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मुस्लिम सदस्यों में कम से कम दो महिलाएं अनिवार्य होंगी।
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लेखा परीक्षण एवं निगरानी की शक्ति केंद्र के पास:
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पहले राज्य सरकारें लेखा परीक्षण करवाती थीं, अब यह अधिकार केंद्र सरकार को स्थानांतरित कर दिया गया है, जो कैग या नामित अधिकारी से ऑडिट करवा सकेगी।
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⚖️ संविधानिक चिंताएँ: क्यों उठा विरोध?
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धार्मिक अधिकारों का अतिक्रमण: याचिकाकर्ताओं का दावा है कि संशोधन से धार्मिक अल्पसंख्यकों की संपत्ति और धार्मिक स्वतंत्रता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
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विरासत में हस्तक्षेप: 'वक्फ अलाल औलाद' में महिलाओं के अधिकार सुनिश्चित करने की मंशा स्वागतयोग्य है, परंतु इसके कार्यान्वयन में विवाद की आशंका बनी हुई है।
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‘वक्फ बाय यूज़र’ को हटाना: इससे ग्रामीण भारत में ऐसी संपत्तियाँ प्रभावित हो सकती हैं जो सदियों से धार्मिक उपयोग में हैं, परंतु वैधानिक रूप से वक्फ के रूप में दर्ज नहीं हैं।
⚖️ सुप्रीम कोर्ट की भूमिका और अगला कदम:
मुख्य न्यायाधीश द्वारा याचिका को उचित समय पर सूचीबद्ध करने का आश्वासन, इस बात का संकेत है कि न्यायालय इस संवेदनशील और संवैधानिक महत्व के विषय को हल्के में नहीं ले रहा। आने वाले दिनों में इस पर विस्तृत सुनवाई की संभावना है, जो भारत में धार्मिक संपत्ति प्रबंधन और संवैधानिक अधिकारों की परिभाषा को एक नया आयाम दे सकती है।
📌 निष्कर्ष:-
वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 को लेकर उत्पन्न संवैधानिक विवाद भारत में धार्मिक समुदायों की प्रशासनिक स्वायत्तता और केंद्रीय निगरानी के बीच संतुलन की एक जटिल बहस को जन्म दे रहा है। सुप्रीम कोर्ट में इस पर होने वाली सुनवाई न केवल क़ानूनी दृष्टि से बल्कि सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता की कसौटी पर भी निर्णायक मानी जाएगी।
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