नई दिल्ली: वक्फ (संशोधन) बिल 2025 को लेकर देश में एक नया विवाद खड़ा हो गया है। कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद और एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने इस बिल के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। संसद में बिल के पारित होते ही दोनों नेताओं ने इसे मुस्लिम समुदाय की धार्मिक और संपत्ति संबंधी स्वतंत्रता पर खतरा बताते हुए न्यायालय की शरण ली है।
क्या वक्फ संपत्तियों पर सरकारी नियंत्रण बढ़ा रहा है?
कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद, जो इस बिल पर बनी संयुक्त संसदीय समिति (JPC) के सदस्य थे, ने अपनी याचिका में कहा कि यह कानून वक्फ संपत्तियों पर मनमाने प्रतिबंध लगाकर मुस्लिम समुदाय की धार्मिक स्वायत्तता को कमजोर करता है। उन्होंने तर्क दिया कि यह कानून अनुच्छेद 300A के तहत संपत्ति अधिकारों का उल्लंघन करता है और सरकार को वक्फ संपत्तियों पर अनुचित नियंत्रण देता है।
ओवैसी का आरोप: इस्लामिक धार्मिक परंपराओं पर हमला
असदुद्दीन ओवैसी ने इस बिल को मुस्लिम समुदाय के धार्मिक अधिकारों के खिलाफ बताते हुए चुनौती दी है। उन्होंने कहा कि वक्फ, उसका प्रबंधन और प्रशासन इस्लामिक परंपराओं का अभिन्न अंग है और इसे संवैधानिक संरक्षण प्राप्त है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से अपील की कि वह बहुसंख्यकवाद की राजनीति से प्रभावित कानूनों के खिलाफ अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करे।
क्या वक्फ अधिनियम में भेदभाव बढ़ा रहा है?
याचिका में कहा गया कि इस कानून में किए गए संशोधन मुसलमानों के साथ भेदभाव करते हैं, क्योंकि अन्य धार्मिक संस्थानों पर ऐसे प्रतिबंध लागू नहीं होते। उदाहरण के लिए, हिंदू और सिख धार्मिक ट्रस्टों को अब भी स्वायत्तता प्राप्त है, जबकि वक्फ अधिनियम में किए गए संशोधन मुस्लिम वक्फ संपत्तियों पर सरकारी हस्तक्षेप को बढ़ाते हैं।
संविधान के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन?
मोहम्मद जावेद ने अपनी याचिका में कहा कि यह बिल अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 25 (धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन करता है। इसमें मनमाने वर्गीकरण शामिल हैं, जो किसी तार्किक उद्देश्य से मेल नहीं खाते। याचिका में यह भी कहा गया कि इस्लामिक परंपराओं में वक्फ का कोई निश्चित समय नहीं होता, लेकिन इस कानून में इसकी अवधि निर्धारित कर दी गई है, जो अनुचित है।
नव-धर्मांतरित मुस्लिमों के अधिकारों पर चोट
याचिका में एक और महत्वपूर्ण तर्क दिया गया कि यह कानून उन लोगों के लिए भेदभावकारी है, जो हाल ही में इस्लाम धर्म अपना चुके हैं और अपनी संपत्ति को धार्मिक या दान के उद्देश्य से वक्फ करना चाहते हैं। यह अनुच्छेद 15 का उल्लंघन करता है, जो धर्म के आधार पर भेदभाव को प्रतिबंधित करता है।
वक्फ ट्रिब्यूनल की शक्तियों में कटौती
इस बिल में वक्फ ट्रिब्यूनल की संरचना और शक्तियों में बदलाव किए गए हैं, जिससे इसमें इस्लामिक कानून के जानकारों की भागीदारी घटा दी गई है। इसका सीधा असर वक्फ से जुड़े विवादों के न्यायिक समाधान पर पड़ेगा।
वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति पर विवाद
याचिका में इस संशोधन पर भी आपत्ति जताई गई है कि वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने का प्रावधान किया गया है। यह एक अनावश्यक हस्तक्षेप है, क्योंकि हिंदू धार्मिक संस्थाओं का प्रबंधन केवल हिंदू ही करते हैं।
सरकारी हस्तक्षेप से धार्मिक स्वतंत्रता पर असर
याचिका के अनुसार, सरकार ने वक्फ संपत्तियों पर नियंत्रण बढ़ाकर मुस्लिम समुदाय के धार्मिक संस्थानों की स्वायत्तता को प्रभावित किया है। इसमें वक्फ संपत्तियों की प्रकृति तय करने का अधिकार वक्फ बोर्ड से हटाकर जिला कलेक्टर को दे दिया गया है। यह धार्मिक संस्थानों पर सरकारी नियंत्रण को बढ़ाने का प्रयास है, जो स्थापित कानूनी सिद्धांतों के खिलाफ जाता है।
क्या सुप्रीम कोर्ट करेगा इस बिल को खारिज?
वक्फ संशोधन बिल 2025 को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है, जो इस कानून की संवैधानिकता पर गंभीर सवाल खड़े करती है। अब यह देखना होगा कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में क्या रुख अपनाता है और क्या यह बिल वास्तव में धार्मिक स्वतंत्रता और संपत्ति के अधिकारों के खिलाफ जाता है।
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