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सम्भल मस्जिद प्रमुख को हिरासत में लिया गया: न्यायिक आयोग की सुनवाई से एक दिन पहले पुलिस कार्रवाई

सम्भल, उत्तर प्रदेश उत्तर प्रदेश पुलिस ने सम्भल के एक विवादित मस्जिद के प्रमुख को हिरासत में ले लिया है, जिससे क्षेत्र में तनाव बढ़ गया है। यह कार्रवाई न्यायिक आयोग की सुनवाई से ठीक एक दिन पहले की गई है, जिसमें मस्जिद से जुड़े विवाद की जांच होनी है।


मामले की पृष्ठभूमि

सम्भल की इस मस्जिद को लेकर स्थानीय हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच लंबे समय से विवाद चल रहा है। हिंदू संगठनों का दावा है कि यह स्थल एक प्राचीन मंदिर के अवशेषों पर बना है, जबकि मुस्लिम समुदाय इसे एक ऐतिहासिक मस्जिद मानता है। इस मुद्दे पर पहले भी कई बार साम्प्रदायिक तनाव देखने को मिल चुका है।

यह विवाद तब और गहरा गया जब कुछ हिंदू संगठनों ने मस्जिद के ऐतिहासिक दस्तावेजों की जांच की मांग उठाई। वहीं, मुस्लिम समुदाय ने इसे धार्मिक स्थलों की पवित्रता के खिलाफ बताते हुए विरोध जताया।

पुलिस की कार्रवाई और आधिकारिक बयान

पुलिस ने मस्जिद प्रमुख को "शांति भंग" और "साम्प्रदायिक सौहार्द को खतरा" जैसे आरोपों में हिरासत में लिया है। पुलिस अधिकारियों का कहना है कि यह कदम कानून-व्यवस्था को बनाए रखने के लिए उठाया गया है, क्योंकि न्यायिक आयोग की सुनवाई से पहले स्थिति विस्फोटक हो सकती थी।

सम्भल के पुलिस अधीक्षक (SP) ने बयान दिया कि, "हमारी प्राथमिकता क्षेत्र में शांति बनाए रखना है। यह कार्रवाई किसी एक समुदाय को लक्षित करने के लिए नहीं बल्कि संभावित अशांति को रोकने के लिए की गई है।" पुलिस का कहना है कि हाल ही में सोशल मीडिया पर कुछ भड़काऊ संदेश वायरल हुए थे, जिससे स्थिति और तनावपूर्ण हो गई थी।

न्यायिक आयोग की भूमिका

उत्तर प्रदेश सरकार ने इस विवाद की जांच के लिए एक न्यायिक आयोग का गठन किया है, जो इस सप्ताह अपनी सुनवाई करने वाला था। आयोग को यह जांच करनी है कि मस्जिद और उसके आसपास का क्षेत्र ऐतिहासिक रूप से किस समुदाय का रहा है और क्या किसी भी धार्मिक स्थल के प्रति कोई अतिक्रमण हुआ है।

पुलिस का कहना है कि हिरासत की कार्रवाई सुनवाई से पहले किसी भी अप्रिय घटना को रोकने के लिए की गई है। वहीं, आयोग के सूत्रों के अनुसार, "इस मामले में सभी पक्षों को निष्पक्ष रूप से सुना जाएगा, ताकि न्याय संगत समाधान निकाला जा सके।"

राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ

इस घटना पर विपक्षी दलों ने सरकार पर "मुस्लिम नेताओं को टारगेट करने" का आरोप लगाया है। विपक्षी नेताओं का कहना है कि सरकार केवल एक समुदाय को दबाने का प्रयास कर रही है और धार्मिक मामलों को राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल कर रही है।

वहीं, सत्तारूढ़ पार्टी के नेताओं का कहना है कि यह कार्रवाई केवल कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए की गई है। एक मंत्री ने कहा, "सरकार सभी धार्मिक स्थलों का सम्मान करती है, लेकिन अगर किसी भी स्थान पर कानून-व्यवस्था भंग होने का खतरा है, तो प्रशासन को कार्रवाई करनी ही होगी।"

स्थानीय लोगों की प्रतिक्रिया

स्थानीय निवासियों का कहना है कि पुलिस की यह कार्रवाई अचानक और अप्रत्याशित थी। कुछ लोगों ने इसे "साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण बढ़ाने वाला कदम" बताया है, जबकि अन्य का मानना है कि यह कानून-व्यवस्था के लिए जरूरी था।

एक स्थानीय निवासी ने कहा, "हम चाहते हैं कि इस मामले का समाधान जल्दी हो, ताकि हमारे क्षेत्र में शांति बनी रहे।" वहीं, एक अन्य निवासी ने आरोप लगाया कि, "पुलिस प्रशासन केवल एकतरफा कार्रवाई कर रहा है और धार्मिक भावना को आहत करने का प्रयास किया जा रहा है।"

स्थानीय निवासी की आलोचना

एक स्थानीय निवासी, जिन्होंने नाम न बताने की शर्त पर बात की, ने कहा, "भारत में न्यायपालिका और पुलिस का सांप्रदायिक रुख दुनिया देख ही रही है। क्या न्यायपालिका और सरकार से किसी नए की उम्मीद की जा सकती है? शासन ही धार्मिक भावनाओं को भड़काने का खेल दिखाकर वोट बटोर रहा है। सैकड़ों साल पुरानी मस्जिदों पर कोई भी ऐरा-गैरा मंदिर बताकर विवाद शुरू कर देता है, और फिर सांप्रदायिक पुलिस और जज सर्वे की अनुमति देकर विवाद को लंबा खींचने की कोशिश करते हैं, जिससे एक खास राजनीतिक पार्टी को फायदा पहुंचाने का प्रयास किया जाता है। ये साजिशें अब भारत में आम हो चुकी हैं, और इन सरकारी साजिशों को मुस्लिम अच्छी तरह जानता है। किंतु भारत का मुस्लिम बहुत शांतिप्रिय है, कभी कोई दंगा मुसलमानों की तरफ से नहीं होता है।"

मस्जिद प्रमुख के भाई का बयान

मस्जिद प्रमुख जफर अली के भाई ताहिर अली ने अपने भाई की अचानक हुई गिरफ्तारी के बाद बयान दिया कि, "उन्हें अगले दिन ही आयोग के समक्ष अपना बयान देना था। पुलिस ने उन्हें मनाने की बहुत कोशिश की कि वे अपना बयान बदल दें, मगर जफर अली साहब ने गिरफ्तारी के समय भी कहा कि गोली पुलिस ने ही चलाई थी और पाँचों मुस्लिम लड़के पुलिस की गोलियों से ही मारे गए थे। जफर अली अपना बयान बदलने को न तब राजी थे, न अब हैं, और मजबूती से अपने बयान पर डटे रहे, इसलिए पुलिस ने साजिश करके उन्हें गिरफ्तार कर लिया।"


सुरक्षा के कड़े इंतजाम

सरकार ने सम्भल में अतिरिक्त सुरक्षा बल तैनात कर दिए हैं ताकि किसी भी अप्रिय स्थिति से बचा जा सके। अर्धसैनिक बलों की भी तैनाती की गई है, और संवेदनशील क्षेत्रों में कड़ी निगरानी रखी जा रही है। प्रशासन ने धारा 144 लागू कर दी है, जिससे चार या उससे अधिक लोगों के इकट्ठा होने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।

पुलिस के अनुसार, सोशल मीडिया पर भी कड़ी नजर रखी जा रही है, और भड़काऊ पोस्ट करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।

आगे की कार्रवाई

अब न्यायिक आयोग की सुनवाई के बाद ही स्पष्ट होगा कि इस मामले में आगे क्या कदम उठाए जाएंगे। प्रशासन ने संकेत दिया है कि मामले के समाधान के लिए सभी पक्षों से चर्चा की जाएगी।

निष्कर्ष:-

सम्भल मस्जिद मामले में पुलिस की यह कार्रवाई एक बार फिर से धार्मिक विवादों और कानून-व्यवस्था के बीच संवेदनशील संतुलन को उजागर करती है। अब सभी की निगाहें न्यायिक आयोग की सुनवाई पर टिकी हैं, जो इस मामले में निर्णायक भूमिका निभा सकती है।

विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह के विवादों को सुलझाने के लिए सभी समुदायों को एकसाथ आकर शांति और सौहार्द बनाए रखने की दिशा में काम करना चाहिए। न्यायिक आयोग की सुनवाई का परिणाम ही यह तय करेगा कि इस विवाद का स्थायी समाधान कैसे निकलेगा।

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