महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने हाल ही में एक कार्यक्रम में मुगल सम्राट औरंगज़ेब की कब्र की सुरक्षा को लेकर अपनी नाराजगी जाहिर की। उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सरकार को औरंगज़ेब की कब्र की सुरक्षा करनी पड़ रही है। यह बयान ऐसे समय आया है जब कुछ समूह औरंगज़ेब की कब्र को हटाने की मांग कर रहे हैं, जबकि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) इसे संरक्षित स्थल मानता है।
इतिहास के दो पहलू: औरंगज़ेब का शासन और उनका प्रशासन
औरंगज़ेब का शासन हमेशा से विवादित रहा है। उन्हें कट्टरवादी शासक के रूप में देखा जाता है, लेकिन कई इतिहासकार यह भी मानते हैं कि उनके प्रशासन में 33% से अधिक हिंदू अधिकारी महत्वपूर्ण पदों पर कार्यरत थे। यह आंकड़ा दर्शाता है कि उनकी सत्ता में हिंदू और मुस्लिम दोनों को प्रशासनिक भागीदारी मिली थी।
इतिहास में यह भी दर्ज है कि औरंगज़ेब ने अपने जीवनकाल में कई युद्ध लड़े, लेकिन उन्हें कोई भी प्रतिद्वंद्वी पूरी तरह हरा नहीं सका। उनकी सैन्य रणनीतियां और प्रशासनिक क्षमता उन्हें एक प्रभावशाली शासक बनाती हैं। इसके बावजूद, आधुनिक राजनीति में उन्हें केवल एक धार्मिक कट्टरता के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, जिससे उनके शासन के अन्य पहलुओं को नजरअंदाज किया जा रहा है।
राजनीति और इतिहास का टकराव
आज जिनके पास सत्ता है, वे अपनी मर्जी से इतिहास को दोबारा लिखवा रहे हैं। सत्ता में बैठे लोग अपने एजेंडे के अनुसार ऐतिहासिक तथ्यों को प्रस्तुत कर रहे हैं, जिससे एकतरफा इतिहास जनता के सामने लाया जा रहा है। यह केवल औरंगज़ेब तक सीमित नहीं है, बल्कि कई ऐतिहासिक व्यक्तित्वों को नई व्याख्याओं के तहत पेश किया जा रहा है।
मुख्यमंत्री फडणवीस ने इस विवाद के बीच छत्रपति शिवाजी महाराज के योगदान की सराहना करते हुए कहा कि उनके प्रयासों के कारण आज हम स्वतंत्र रूप से अपने धर्म का पालन कर सकते हैं। हालांकि, यह भी सत्य है कि शिवाजी महाराज और औरंगज़ेब दोनों ऐतिहासिक रूप से महान योद्धा और रणनीतिकार थे।
निष्कर्ष:
इतिहास के साथ छेड़छाड़ से बचना होगा
महाराष्ट्र में औरंगज़ेब की कब्र की सुरक्षा को लेकर उठे विवाद ने फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि इतिहास को किस तरह देखा और प्रस्तुत किया जाना चाहिए। क्या हमें इतिहास को राजनीतिक चश्मे से देखना चाहिए, या फिर ऐतिहासिक तथ्यों को निष्पक्ष रूप से स्वीकार करना चाहिए?
सरकार की प्राथमिकता कानून और शांति बनाए रखना होनी चाहिए, न कि इतिहास को अपने अनुसार ढालना। हमें इतिहास को ज्यों का त्यों स्वीकार करना चाहिए, न कि उसे सत्ता की जरूरतों के मुताबिक मोड़ना चाहिए।
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