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सम्भल: होली और जुमे की नमाज के बीच संतुलन बनाने की चुनौती

सम्भल के सर्कल ऑफिसर (सीओ) अनुज चौधरी का ताजा बयान, जिसमें उन्होंने होली और जुमे की नमाज के बीच तुलना करते हुए विवादास्पद टिप्पणी की, एक बार फिर उनकी छवि और भूमिका पर सवाल खड़े कर दिया है। हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब होली और जुमे की नमाज का दिन एक साथ पड़ा है। पहले भी कई बार ऐसा हुआ है, और अधिकारियों ने बेहतरीन समाधान निकालकर शांति व्यवस्था बनाए रखी है।  

 

पिछले अनुभव और समाधान  

पहले भी कई बार होली और जुमे की नमाज का दिन एक साथ पड़ा है, लेकिन अधिकारियों ने बेहतरीन समाधान निकालकर शांति व्यवस्था बनाए रखी है। सम्भल की अमन समिति और पुलिस ने एक बार हिंदू समुदाय के लोगों से अपील करते हुए कहा था कि "आपकी होली, होली जलाने से शुरू होकर रातभर और सुबह 11-12 बजे तक चलती है। इसमें केवल 25-30 मिनट के लिए डीजे बजाना बंद करना है और रंग खेलना बंद करना है। उसके बाद फिर से आप रंग खेल सकते हैं और डीजे बजा सकते हैं। नमाज का समय 1 बजे से शुरू होकर आधे घंटे में निपट जाता है। जहां कहीं भी नमाज का समय हो, उन्हें केवल उतनी देर के लिए रुकना होगा, जितनी देर में नमाज हो जाए। नमाजी अपने-अपने घर चले जाएं।"  

इस तरह के समाधान निकालकर अधिकारियों ने न केवल शांति व्यवस्था बनाए रखी, बल्कि दोनों समुदायों के बीच सद्भाव भी कायम किया। यह दर्शाता है कि सही दृष्टिकोण और संवेदनशीलता के साथ किसी भी चुनौती का सामना किया जा सकता है।  

अनुज चौधरी का बयान और उसके निहितार्थ  

हालांकि, अनुज चौधरी का यह बयान कि "होली साल में एक बार आती है, जबकि जुमे की नमाज 52 बार होती है," न केवल विवादास्पद है, बल्कि यह उनकी एकतरफा सोच को भी दर्शाता है। यह बयान उन लोगों के लिए चिंता का विषय है जो पुलिस और प्रशासन से निष्पक्षता की उम्मीद करते हैं। अगर एक अधिकारी खुद को किसी एक समुदाय के प्रति झुकाव दिखाता है, तो यह अन्य समुदायों के प्रति उसकी निष्पक्षता पर सवाल खड़ा करता है।  

 क्या है समाधान?  

अनुज चौधरी जैसे अधिकारियों को यह समझना चाहिए कि उनकी भूमिका सभी नागरिकों के प्रति निष्पक्ष होनी चाहिए। उन्हें धार्मिक आयोजनों में शामिल होने से बचना चाहिए, खासकर जब वे पुलिस की वर्दी पहने हों। इससे न केवल उनकी छवि बेहतर होगी, बल्कि यह सभी समुदायों के बीच विश्वास भी बढ़ाएगा।  

 निष्कर्ष :-

अनुज चौधरी का मामला एक बड़े सवाल की ओर इशारा करता है: क्या पुलिस अधिकारियों को धार्मिक आयोजनों में शामिल होना चाहिए? यह सवाल न केवल उनकी व्यक्तिगत छवि के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह पूरे प्रशासनिक तंत्र की विश्वसनीयता के लिए भी जरूरी है। अगर अधिकारी अपनी भूमिका को समझें और निष्पक्षता के साथ काम करें, तो यह देश और समाज के लिए बेहतर होगा।  

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