संभल, उत्तर प्रदेश – देशभर में सांप्रदायिक सद्भाव की बातें की जाती हैं, लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और ही तस्वीर पेश कर रही है। संभल में मुस्लिम समुदाय एक बार फिर प्रशासनिक दमन और राजनीतिक साजिशों का शिकार बनता दिखाई दे रहा है। हाल ही में हुई हिंसक घटना, जिसमें पुलिस की गोलीबारी में पांच मुस्लिम युवाओं की मौत हुई, ने पूरे क्षेत्र को हिला कर रख दिया है। स्थानीय निवासियों और सामाजिक संगठनों का कहना है कि इस घटना के बाद से प्रशासन समुदाय पर तरह-तरह के दबाव डाल रहा है।
कभी बिजली जांच के नाम पर छापेमारी हो रही है, तो कभी अतिक्रमण विरोधी अभियान की आड़ में मुस्लिम बहुल इलाकों में तोड़फोड़ की जा रही है। यह सब एक सुनियोजित रणनीति के तहत किया जा रहा है या फिर प्रशासन की तानाशाही का एक और उदाहरण है? यह सवाल उठना लाज़मी है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर 'सबका साथ, सबका विकास' की बात करते हैं, लेकिन ज़मीनी स्तर पर मुस्लिम समुदाय के खिलाफ होने वाली कार्रवाइयों से उनके वादों की सच्चाई पर सवाल उठने लगे हैं। भाजपा शासित राज्य सरकारें मुसलमानों के प्रति कठोर रुख अपनाए हुए हैं, और केंद्र सरकार इस पर चुप्पी साधे बैठी है। क्या यह चुप्पी किसी विशेष रणनीति का हिस्सा है?
सांसद के अवैध निर्माण पर जांच पूरी, लेकिन रिपोर्ट रोक दी गई
इसी बीच एक और विवाद सामने आया है। संभल से सांसद जियाउर्रहमान बर्क के दीपा सराय स्थित आवास में हुए कथित अवैध निर्माण की जांच पूरी हो चुकी है, लेकिन शुक्रवार को एसडीएम को रिपोर्ट सौंपे जाने की प्रक्रिया अधर में लटक गई। पीडब्ल्यूडी एक्सईएन सुनील प्रकाश के अनुसार, विनियमित क्षेत्र के जेई किसी कारणवश उपस्थित नहीं हो सके, जिससे रिपोर्ट सौंपने में देरी हुई। अब इसे शनिवार को प्रस्तुत किया जाएगा।
यहां गौर करने वाली बात यह है कि 11 दिसंबर 2024 को सांसद को नोटिस जारी किया गया था, जिसमें कहा गया था कि उनके आवास में बिना अनुमति के निर्माण किया गया है और इसका नक्शा पास नहीं कराया गया। प्रशासन का तर्क है कि यह उत्तर प्रदेश रेगुलेशन ऑफ बिल्डिंग ऑपरेशन एक्ट 1958 का उल्लंघन है। इस मामले में 5 अप्रैल को सुनवाई तय की गई है।
क्या यह कार्रवाई निष्पक्ष है, या फिर किसी विशेष उद्देश्य से की जा रही है?
सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या इसी तरह की कार्रवाई हिंदू बहुल इलाकों में भी होगी? क्या इस कानून को हिंदू मकान मालिकों पर भी लागू किया जाएगा, या फिर यह केवल मुस्लिम नेताओं और समुदाय को डराने की रणनीति भर है?
उत्तर प्रदेश में 99.99% मकान बिना नक्शे के बने हुए हैं। आज तक किसी भी सरकार ने इस आधार पर व्यापक स्तर पर कार्रवाई नहीं की। लेकिन अब अचानक यह मुद्दा क्यों उछाला जा रहा है? क्या प्रदेश के 99.99% मकानों को ध्वस्त कर दिया जाएगा?
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट कई बार स्पष्ट कर चुका है कि मकानों पर किसी भी प्रकार की प्रशासनिक कार्रवाई से पहले अदालत की अनुमति आवश्यक है। इसके बावजूद, कुछ अधिकारी और नेता कानून को ताक पर रखकर मनमानी करने से बाज नहीं आ रहे हैं।
निष्पक्षता पर उठते सवाल
जब प्रशासनिक संस्थाएं अपने निर्णयों में निष्पक्षता नहीं रखतीं, तो लोकतंत्र पर सवाल उठने लगते हैं। वर्तमान स्थिति को देखते हुए ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार और प्रशासन की प्राथमिकता विकास और नागरिकों की भलाई नहीं, बल्कि धर्म विशेष के लोगों को निशाना बनाना है।
क्या यह सब योजनाबद्ध तरीके से किया जा रहा है? क्या यह राजनीतिक सत्ता को बनाए रखने का एक तरीका है? यह सवाल अब आम जनता के मन में भी उठने लगे हैं। ऐसे में निष्पक्ष जांच और न्याय की मांग पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गई है।
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