दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 का राजनीतिक रण अब पूरी तरह गर्मा चुका है। एक ओर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने आम आदमी पार्टी (आप) के प्रमुख नेताओं को चुनौती देने के लिए अपने दिग्गज नेताओं को मैदान में उतारा है, तो दूसरी ओर, मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में आप ने अपनी विकास आधारित राजनीति के दम पर जनता का समर्थन बनाए रखने की पूरी तैयारी कर ली है।
भाजपा की रणनीति और उम्मीदवार
भाजपा ने इस बार जमीनी नेताओं, पूर्व सांसदों और दूसरे दलों से आए नेताओं को प्राथमिकता देते हुए मजबूत उम्मीदवारों को टिकट दिया है। पार्टी ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के खिलाफ नई दिल्ली सीट से प्रवेश वर्मा को, जबकि आतिशी के खिलाफ कालकाजी से रमेश बिधूड़ी को उतारा है। इसके अतिरिक्त, मनीष सिसोदिया के खिलाफ जंगपुरा से तरविंदर सिंह मारवाह को और गांधी नगर से अरविंदर सिंह लवली को उम्मीदवार बनाया गया है।
पार्टी का मानना है कि कांग्रेस के उम्मीदवारों के मैदान में होने से विरोधी वोट बंट सकते हैं, जिसका लाभ भाजपा को मिल सकता है। लेकिन रमेश बिधूड़ी को टिकट देने का निर्णय भाजपा के लिए विवाद का कारण बन गया है।
रमेश बिधूड़ी और भाजपा की राजनीति पर सवाल
रमेश बिधूड़ी, जो पूर्व में विधानसभा में आप विधायक अमानतुल्लाह खान के खिलाफ "मुल्ले-कटवे" जैसी सांप्रदायिक भाषा का इस्तेमाल कर चुके हैं, को उम्मीदवार बनाना भाजपा की नीतियों पर गंभीर सवाल खड़े करता है। यह निर्णय दर्शाता है कि भाजपा विकास की राजनीति से दूर रहकर सांप्रदायिकता और नफरत को ही अपनी प्राथमिकता बना रही है।
भाजपा की राजनीति अब "विकास" से हटकर "धर्म और नफरत" पर केंद्रित होती नजर आ रही है। पार्टी का एजेंडा न केवल जनता के बीच धार्मिक ध्रुवीकरण करना है, बल्कि ऐसे विवादास्पद नेताओं को बढ़ावा देना भी है, जो सामाजिक सौहार्द को नुकसान पहुंचाते हैं।
आप की विकास आधारित राजनीति
इसके विपरीत, आम आदमी पार्टी ने अपने विकास कार्यों और ईमानदार नीतियों के दम पर जनता के बीच अपनी अलग पहचान बनाई है। शिक्षा, स्वास्थ्य, पानी, और बिजली जैसे बुनियादी मुद्दों पर आप की सरकार ने जो काम किया है, उसे जनता का भरपूर समर्थन मिला है।
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनकी टीम दिल्ली की पढ़ी-लिखी जनता के बीच एक साफ संदेश देने में सफल रही है कि उनका फोकस केवल विकास और शांति पर है। अरविंद केजरीवाल ने इस बार भी नई दिल्ली से चुनाव लड़ने का निर्णय लिया है, जबकि आतिशी को कालकाजी से मैदान में उतारा गया है। पार्टी ने अपने उम्मीदवारों की सूची में युवा और नए चेहरों को प्राथमिकता देकर नई ऊर्जा का परिचय दिया है।
दिल्ली की जनता का रुझान
दिल्ली की जनता बार-बार यह साबित करती आई है कि वह नफरत और धर्म की राजनीति को नकारते हुए विकास और शांति के लिए वोट करती है। भाजपा के "जुमलों" और "झूठे प्रचार" को जनता ने कई बार खारिज किया है।
इस बार भी जनता भाजपा की नफरत और कट्टरता पर आधारित राजनीति को नजरअंदाज करते हुए आप के विकास कार्यों पर भरोसा जताती नजर आ रही है। जनता का मानना है कि भाजपा के पास दिल्ली के विकास के लिए कोई ठोस एजेंडा नहीं है और वह केवल सांप्रदायिक मुद्दों को भुनाने में लगी हुई है।
चुनावी परिदृश्य और निष्कर्ष
दिल्ली का यह चुनाव केवल सत्ता का संघर्ष नहीं है, बल्कि विचारधाराओं की लड़ाई है। एक ओर भाजपा है, जो नफरत और धार्मिक ध्रुवीकरण के सहारे राजनीति की सीढ़ी चढ़ना चाहती है, और दूसरी ओर आप है, जो विकास और ईमानदारी के सहारे जनता का भरोसा जीतने में लगी है।
यह चुनाव यह तय करेगा कि दिल्ली का भविष्य कैसा होगा – विकास आधारित या सांप्रदायिकता पर आधारित। जनता के फैसले से न केवल दिल्ली की दिशा तय होगी, बल्कि यह चुनाव भारतीय राजनीति में भी एक मिसाल बन सकता है।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि दिल्ली की जनता किसे अपना समर्थन देती है और राजधानी की सत्ता की चाबी किसके हाथ में सौंपती है।