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खाड़ी में शांति का मुखौटा, घर में नफ़रत की राजनीति: मोदी-योगी की दोहरी रणनीति का पर्दाफाश

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हालिया कुवैत दौरा और वहां उन्हें सर्वोच्च नागरिक सम्मान से नवाज़ा जाना उनकी वैश्विक छवि को मजबूत करने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। कुवैत जैसे इस्लामिक देश में मोदी को दिए गए इस सम्मान का संदेश स्पष्ट है—भारत को एक सहिष्णु, बहुसांस्कृतिक और आर्थिक रूप से मजबूत देश के रूप में पेश करना। लेकिन इस छवि के पीछे की सच्चाई बेहद स्याह और चिंताजनक है।

भारत में मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में लगातार बढ़ती सांप्रदायिक नफरत और मुस्लिम समुदाय के खिलाफ हिंसा उनकी कथनी और करनी के बीच गहरी खाई को उजागर करती है।


खाड़ी देशों में मोदी का "दोस्ताना चेहरा"

कुवैत में मोदी ने भारत और खाड़ी देशों के "सदियों पुराने रिश्तों" की बात की। कुवैत टाइम्स, अरब न्यूज़ और अन्य खाड़ी मीडिया में मोदी के दौरे की जमकर सराहना हुई। विशेषज्ञों ने भारत-कुवैत के बीच 10 अरब डॉलर से अधिक के व्यापार और प्रवासी भारतीयों के योगदान को रेखांकित किया। कुवैत में एक मिलियन से अधिक भारतीय रहते हैं, जो खाड़ी देशों में भारत की गहरी पैठ को दर्शाता है।

मोदी ने कुवैत न्यूज़ एजेंसी को दिए इंटरव्यू में भारत और खाड़ी के संबंधों को "इतिहास के डीएनए" का हिस्सा बताया। उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि भारत से खाड़ी देशों के संबंध ऊर्जा, व्यापार और प्रवासी भारतीयों के योगदान से आगे बढ़कर रक्षा और निवेश तक फैल गए हैं।

कुवैत में मोदी को "मजबूत नेता" और "विश्वसनीय साझेदार" बताया गया। यह छवि तब बन रही है, जब खाड़ी देशों ने मोदी को अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान देकर भारत के साथ अपने रिश्तों को और गहरा किया है।

भारत में नफ़रत और उत्पीड़न की राजनीति

वहीं दूसरी ओर, भारत में स्थिति बिल्कुल विपरीत है। मोदी और योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में भारतीय मुसलमानों को निशाना बनाया जा रहा है। उत्तर प्रदेश में, खासकर संभल जैसे इलाकों में, पुलिसिया दमन और सांप्रदायिक उत्पीड़न की घटनाएं आम हो गई हैं।

संभल में अतिक्रमण के नाम पर मुस्लिम बस्तियों को उजाड़ा जा रहा है। बिजली चेकिंग और अन्य प्रशासनिक कार्यों के बहाने मुस्लिम इलाकों को निशाना बनाया जा रहा है। जमाअ मस्जिद हिंसा के बाद पुलिस की कथित "टारगेट किलिंग" की घटनाओं ने डर और असुरक्षा का माहौल पैदा कर दिया है।

पुलिस पर यह आरोप है कि वह हिंसा में मारे गए मुसलमानों के परिजनों पर बयान बदलने का दबाव बना रही है। जब इन परिजनों ने दबाव मानने से इनकार कर दिया, तो पुलिस ने पूरे इलाके को निशाना बनाना शुरू कर दिया। स्थानीय मुस्लिम समुदाय का कहना है कि राज्य सरकार जानबूझकर उन्हें दबाने और डराने का प्रयास कर रही है।

मोदी-योगी की दोहरी राजनीति

मोदी जब खाड़ी देशों में भाईचारे, शांति और साझेदारी की बातें करते हैं, तो यह सवाल उठता है कि क्या वही भावनाएं उनके शासन में भारत में लागू नहीं होनी चाहिए? खाड़ी देशों में उनकी छवि एक "सहिष्णु और मज़बूत नेता" की बनाई जाती है, जबकि भारत में उनकी सरकार मुस्लिम समुदाय के खिलाफ नफरत और विभाजन की राजनीति को बढ़ावा देती है।

योगी आदित्यनाथ की अगुवाई में उत्तर प्रदेश में "ठोक दो" की नीति ने सांप्रदायिकता को और बढ़ावा दिया है। मुसलमानों को निशाना बनाकर की जा रही कार्रवाइयों का मकसद सत्ता में बने रहना और एक खास तबके को राजनीतिक फायदा पहुंचाना है।

अंतरराष्ट्रीय और घरेलू छवि का टकराव

खाड़ी देशों के राजशाही नेतृत्व, जिन्हें राजनीतिक इस्लाम और कट्टरता से सख्त परहेज है, ने मोदी की इस छवि को स्वीकार कर लिया है। लेकिन यह भी साफ है कि मोदी और योगी की सांप्रदायिक राजनीति का असर खाड़ी देशों में रहने वाले लाखों भारतीयों की सुरक्षा और छवि पर पड़ सकता है।

अरब देशों के साथ मजबूत होते संबंधों को मोदी सरकार की उपलब्धि के रूप में पेश किया जा रहा है, लेकिन घरेलू मोर्चे पर सांप्रदायिकता और नफ़रत का बढ़ता माहौल भारत के सामाजिक ताने-बाने को कमजोर कर रहा है।

सवालों का वक्त

  1. क्या खाड़ी देशों में मोदी की "शांति और साझेदारी" की बातें भारत में लागू नहीं हो सकतीं?
  2. क्या खाड़ी देशों की तरह भारत में भी धार्मिक अल्पसंख्यकों को बराबरी और सम्मान नहीं मिलना चाहिए?
  3. क्या मोदी-योगी की यह दोहरी राजनीति भारत के लोकतंत्र को खोखला नहीं कर रही?

नफरत का जवाब भाईचारे से

यह वक्त है कि देश के नागरिक मोदी और योगी की इस दोहरी राजनीति को पहचानें। खाड़ी देशों में शांति और सहिष्णुता की बातें करने वाले इन नेताओं को भारत में भी वही नीति लागू करनी होगी। भारत का संविधान धर्म, जाति और संप्रदाय से ऊपर उठकर सबको समानता का अधिकार देता है। अगर इस संविधान को कमजोर किया गया, तो देश का भविष्य भी कमजोर होगा।

भारत को खाड़ी देशों में अपनी छवि बनाए रखने के लिए, पहले अपने ही घर में नफरत की राजनीति को खत्म करना होगा। अन्यथा, यह दोहरी छवि जल्द ही टूट जाएगी, और इसके परिणाम भारतीय समाज और कूटनीति, दोनों के लिए खतरनाक होंगे।

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