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अमेरिका की रिपोर्ट में मोदी सरकार पर गंभीर आरोप: धार्मिक स्वतंत्रता पर सवाल?

 अमेरिका में धार्मिक स्वतंत्रता पर मोदी सरकार पर सवाल, रिपोर्ट में गंभीर आरोप

अमेरिका के धार्मिक स्वतंत्रता आयोग (USCIRF) ने हाल ही में एक रिपोर्ट जारी की है, जिसमें भारत की मोदी सरकार पर कई गंभीर आरोप लगाए गए हैं। यह रिपोर्ट भारतीय विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर की उपस्थिति में पेश की गई। इसमें कहा गया है कि भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है और लोकतांत्रिक मूल्यों पर दबाव डाला जा रहा है।


रिपोर्ट में प्रमुख आरोप:

  • धार्मिक विभाजनकारी बयान: रिपोर्ट के अनुसार, "भारत के सत्ताधारी दल के नेता" सार्वजनिक तौर पर ऐसे बयान देते हैं, जो धार्मिक आधार पर विभाजन को बढ़ावा देते हैं। उदाहरण के तौर पर, दंगे-फसाद करने वालों को कपड़ों से पहचानने की बात कही गई।
  • चुनावी प्रचार में भेदभाव: चुनाव प्रचार के दौरान एक खास धर्म के लोगों को निशाना बनाकर बयानबाजी की जाती है।
  • अल्पसंख्यक विरोधी कानून: गोकशी और वक्फ बोर्ड जैसे मुद्दों पर कानून बनाकर अल्पसंख्यकों को बहुसंख्यकवाद के दबाव में लाया जा रहा है।
  • मीडिया की स्वतंत्रता पर सवाल: रिपोर्ट में यह भी आरोप है कि भारतीय मीडिया को स्वतंत्र रूप से कार्य करने की अनुमति नहीं है, और प्रेस पर लगातार दबाव बनाया जा रहा है।

आयोग का बयान:

USCIRF ने कहा कि जब वे भारत में अपनी जांच और तथ्यों की पुष्टि के लिए यात्रा करना चाहते हैं, तो उन्हें वीज़ा देने से इनकार कर दिया जाता है। आयोग ने इसे "सूचना तक पहुँच को रोकने की रणनीति" करार दिया।

मोदी सरकार की प्रतिक्रिया:

जैसा कि अक्सर होता है, मोदी सरकार ने इस रिपोर्ट और उसके आरोपों को "तथ्यहीन और प्रेरित" बताया है। सरकार ने इसे भारत के खिलाफ दुष्प्रचार करार देते हुए रिपोर्ट को खारिज कर दिया।

आलोचना और शर्मिंदगी:

गांधी और नेहरू जैसे नेताओं के देश पर इस प्रकार के आरोपों को लेकर आलोचक इसे शर्मनाक मानते हैं। सवाल यह भी उठता है कि भारत की छवि को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नुकसान क्यों हो रहा है।

विदेशी "डंका" या "लंका"?

प्रधानमंत्री मोदी अक्सर विदेशी दौरों पर "मोदी-मोदी" के नारों और समर्थकों की भीड़ के जरिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी लोकप्रियता का दावा करते हैं। लेकिन यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या वाकई भारत की विदेशों में "डंका" बज रही है, या फिर यह मात्र एक प्रचार रणनीति है? आलोचक इसे "संगठित प्रचार" और वास्तविकता से दूर बताते हैं।

निष्कर्ष:

धार्मिक स्वतंत्रता आयोग की यह रिपोर्ट भारत में लोकतंत्र और अल्पसंख्यकों की स्थिति पर अंतरराष्ट्रीय चिंता को दर्शाती है। इसे खारिज करने के बजाय, सरकार को इन मुद्दों पर गंभीरता से आत्ममंथन करने की आवश्यकता है। केवल नकारने या आलोचकों पर आरोप लगाने से समस्याओं का समाधान संभव नहीं है।

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