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थाईलैंड–कंबोडिया सीमा पर फिर भड़की हिंसा: एक सैनिक की मौत के बाद थाई वायुसेना की जवाबी कार्रवाई, दोनों देशों में तनाव चरम पर

  8 दिसम्बर 2025 |✍🏻 Z S Razzaqi |वरिष्ठ पत्रकार  

थाईलैंड और कंबोडिया के बीच दशकों से चले आ रहे सीमा विवाद ने एक बार फिर हिंसक मोड़ ले लिया है। सोमवार सुबह शुरू हुई झड़प के बाद हालात तेजी से बिगड़े और थाई सेना ने विवादित सीमा क्षेत्र के ऊपर सीमित एयर-स्ट्राइक (सुरक्षात्मक हवाई हमले) की पुष्टि की। यह हिंसा न केवल दोनों पड़ोसी देशों के बीच गहरी अविश्वास को उजागर करती है, बल्कि दक्षिण-पूर्व एशिया की क्षेत्रीय स्थिरता के लिए भी गंभीर खतरा पैदा करती है।

इस संघर्ष में अब तक—

1 थाई सैनिक की मौत,
4 कंबोडियाई नागरिकों की मौत,
दोनों देशों के 20 से अधिक लोग घायल,
और हजारों नागरिक सुरक्षित स्थानों की ओर पलायन कर चुके हैं।


पहली गोली किसने चलाई?—दोनों देशों का एक-दूसरे पर आरोप

सीमा पर हिंसा का समय और घटनाओं का क्रम दोनों देशों के बयानों में बिलकुल अलग है, जिससे स्थिति और पेचीदा हो गई है।

थाईलैंड का दावा: “कंबोडियाई सैनिकों ने सुबह 5:05 बजे हमला शुरू किया”

थाई सेना के प्रवक्ता मेजर-जनरल विनथाई सुवरी ने बताया कि—

  • सीमा चौकी पर तैनात सैनिकों पर छोटे हथियारों और आर्क वाली प्रक्षेपिकाओं (curved trajectory weapons) से हमला हुआ।

  • गोलीबारी के लगभग दो घंटे बाद एक घायल सैनिक की मौत हो गई।

  • इसके बाद “हमले को दबाने और सीमा सुरक्षा बनाए रखने” के लिए हवाई कार्रवाई की गई।

थाईलैंड ने इसे “सुरक्षा आधारित प्रतिरोधात्मक कार्रवाई” कहा है, आक्रामक नहीं।

कंबोडिया का जवाब: “हमने एक भी गोली नहीं चलाई—युद्ध में खींचा जा रहा है”

कंबोडियाई सेना ने फेसबुक पर बयान जारी करके कहा—

  • हमला थाई सेना ने सुबह 5 बजे के आसपास किया।

  • पिछले 3–4 दिनों से थाई सैनिक “उकसाने वाली गतिविधियाँ” कर रहे थे।

  • कंबोडियाई सैनिकों को “सख्त निर्देश था कि संघर्ष में न उलझें।”

कंबोडिया के सूचना मंत्री ने बताया कि—

  • थाई हमलों में चार नागरिक मारे गए,

  • 10 घायल हुए,

  • और दो प्रांतों में अत्यधिक भय का माहौल बन गया है।

दोनों पक्षों के विपरीत बयानों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि सत्य का निर्धारण केवल अंतरराष्ट्रीय निरीक्षण से ही संभव है।


एक दिन पहले भी हुई थी झड़प—सीमा पर शांति पहले से ही डगमगाई हुई थी

संघर्ष से ठीक एक दिन पहले, फू फा लेक–फ्लान हिन पैट कोन क्षेत्र में भी गोलीबारी हुई थी।
थाई सेना का दावा:

  • कंबोडिया की ओर से फायरिंग में उसके दो सैनिक घायल हुए।
    कंबोडिया का दावा:

  • फायरिंग थाई सेना ने पहले की, और उनके सैनिकों ने “जवाबी फायर” नहीं किया।

यह घटनाक्रम बताता है कि सीमा पर अस्थिरता पहले से बढ़ चुकी थी और सोमवार की हिंसा उसी बढ़ते तनाव का चरम बिंदु है।


सीज़फायर की टूटती उम्मीद: जुलाई के युद्ध से लेकर नवंबर के लैंडमाइन विस्फोट तक

जुलाई का युद्ध (5 दिन, 48 मौतें, 3 लाख विस्थापित)

पिछले जुलाई में सीमा विवाद इतना उग्र हुआ था कि दोनों देशों ने पांच दिनों तक भारी गोलाबारी की थी।

  • कुल 48 मौतें,

  • 300,000 से अधिक लोग विस्थापित,

  • और सैकड़ों घर तबाह हुए थे।

इसके बाद मलेशिया के प्रधानमंत्री अनवर इब्राहिम और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की मध्यस्थता से शांति समझौता हुआ।

नवंबर का लैंडमाइन विस्फोट—समझौते पर शिकंजा

पिछले महीने एक लैंडमाइन विस्फोट में थाई सैनिक घायल हो गया।

  • थाईलैंड ने आरोप लगाया कि कंबोडिया ने नई लैंडमाइनें लगाई हैं।

  • कंबोडिया के अनुसार यह “पुरानी लड़ाइयों की माइन” थी।

इसी घटना के बाद थाईलैंड ने सीज़फायर कार्यान्वयन सस्पेंड कर दिया।


थाई प्रधानमंत्री का राष्ट्र को संबोधन: “हम हिंसा नहीं चाहते, पर सीमा की रक्षा अनिवार्य”

थाई प्रधानमंत्री अनुतिन चार्नवीराकुल ने देश को संबोधित करते हुए कहा—

“हमने कभी किसी देश पर आक्रमण नहीं किया। लेकिन थाईलैंड की संप्रभुता का उल्लंघन बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। हमारी सेना केवल संरक्षण के लिए कार्रवाई कर रही है।”

यह बयान थाई नागरिकों के भीतर बढ़ते असंतोष को शांत करने और सेना की कार्रवाई को सही ठहराने का प्रयास माना जा रहा है।


कंबोडिया भी शांति चाहता है—पर दोहरी चुनौती का सामना

कंबोडियाई सेना का कहना है—

“हमने दोनों हमलों में प्रतिक्रिया नहीं दी, क्योंकि शांति समझौतों का सम्मान करना हमारी प्राथमिकता है।”

कंबोडिया के पूर्व प्रधानमंत्री हुन सेन ने चेतावनी दी कि—

“थाईलैंड जानबूझकर हमें हिंसा में खींच रहा है। हमें धैर्य और संयम दिखाना है।”

साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि कंबोडियाई खिलाड़ी जिन्हें Southeast Asia Games में भाग लेना है, वे “योजनानुसार प्रतियोगिता में हिस्सा लें”—स्पष्ट संकेत कि सरकार नहीं चाहती कि संघर्ष अंतरराष्ट्रीय मंच तक पहुँचे।


मानवीय संकट: दोनों देशों में हजारों लोगों का भारी पलायन

संघर्ष के बाद सीमा क्षेत्रों में हालात काफी भयावह हो गए हैं।

थाईलैंड में

थाई सेकंड आर्मी रीजन के अनुसार—

  • 35,000 से अधिक नागरिकों को सीमा से दूर निकालकर सुरक्षित स्थानों पर ले जाया गया है।

  • कई गांव “व्यावहारिक रूप से खाली” हो चुके हैं।

कंबोडिया में

ओद्दार मीनचाय प्रशासन का कहना है—

  • ग्रामीण तेज़ी से घर छोड़कर भाग रहे हैं,

  • सीमा के पास के स्कूल सोमवार को बंद रहे,

  • स्थानीय बाज़ारों में घबराहट और अफरा-तफरी मची हुई है।


मलेशिया की चिंता: “दक्षिण-पूर्व एशिया ऐसे संघर्ष झेल नहीं सकता”

मलेशियाई प्रधानमंत्री अनवर इब्राहिम ने X (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा—

“हम दोनों देशों से अधिकतम संयम की अपील करते हैं। कूटनीति के रास्ते खुले रखें, क्योंकि हमारा क्षेत्र किसी भी टकराव को झेलने की स्थिति में नहीं है।”

ASEAN देशों में भी यह चिंता बढ़ गई है कि यदि स्थिति नियंत्रण से बाहर हो गई तो यह विवाद पूरे क्षेत्रीय सुरक्षा ढांचे को प्रभावित कर सकता है।


110 साल पुराना सीमा विवाद आज तक क्यों नहीं सुलझा?—इतिहास की जड़ें बहुत गहरी हैं

थाईलैंड–कंबोडिया सीमा विवाद की जड़ें 1907 तक जाती हैं, जब फ्रांस ने कंबोडिया पर उपनिवेश शासन करते हुए दोनों देशों की सीमा रेखा बनाई थी।
समस्या यह है कि—

  • उस समय बनाए गए कई नक्शे आज भी अस्पष्ट हैं,

  • कई सीमांत क्षेत्रों में “ओवरलैपिंग दावे” मौजूद हैं,

  • और दोनों देशों में राष्ट्रवाद की भावना इस मुद्दे को और जटिल बनाती है।

2011 में भी दोनों देशों ने एक सप्ताह तक गोले दागे थे, जिसमें सीमा मंदिर ‘प्रेह विहियर’ के आसपास ज़बरदस्त नुकसान हुआ।


विश्लेषण: क्या यह बड़ा युद्ध बनने की ओर बढ़ रहा है?

यह संघर्ष कई स्तरों पर खतरनाक बन गया है—

  • दोनों देशों की सेना तैयार स्थिति में है,

  • सीमा पर भारी तनाव है,

  • सीज़फायर पहले ही कमजोर था,

  • नागरिकों में घबराहट बढ़ रही है,

  • और दोनों पक्ष एक-दूसरे पर दोष मढ़ रहे हैं

अगर ASEAN, संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य अंतरराष्ट्रीय साझेदारों ने तुरंत हस्तक्षेप नहीं किया तो यह संघर्ष आर्थिक गतिविधियों, नागरिक सुरक्षा, क्षेत्रीय व्यापार मार्गों, और कूटनीतिक रिश्तों को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है।


निष्कर्ष:

 शांति की राह कठिन लेकिन अनिवार्य

थाईलैंड–कंबोडिया विवाद केवल सीमा की रेखा परिघाटित नहीं होता—यह दक्षिण-पूर्व एशिया की सामूहिक सुरक्षा और स्थिरता से जुड़ा हुआ मुद्दा है। वर्तमान स्थिति यह दर्शाती है कि जब तक विश्वसनीय अंतरराष्ट्रीय निरीक्षण, पारदर्शी संवाद, और दीर्घकालिक सीमा-संधि नहीं बनती, ऐसे संघर्ष बार-बार उभरते रहेंगे।

शांति आज कठिन दिखती है—पर दोनों देशों और पूरे क्षेत्र के भविष्य के लिए यह अनिवार्य है।




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