5 दिसंबर 2025 |✍🏻 Z S Razzaqi | अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन दिल्ली पहुंचे हैं, जहां उनका भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ वार्षिक शिखर वार्ता का कार्यक्रम तय है। यह दौरा केवल कूटनीतिक औपचारिकताओं तक सीमित नहीं है, बल्कि ऊर्जा, व्यापार, रक्षा सहयोग और बदलती वैश्विक राजनीति के सन्दर्भ में दोनों देशों की प्राथमिकताओं को नए आयाम देने वाला माना जा रहा है।
यह पुतिन का भारत का पहला दौरा है, तब से जब रूस ने 2022 में यूक्रेन पर पूर्ण पैमाने पर सैन्य कार्रवाई की थी। ऐसे समय में जब पश्चिमी देश रूस को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अलग-थलग करने की कोशिश में लगे हैं, यह यात्रा मॉस्को के लिए महत्वपूर्ण संदेश लेकर आई है: रूस अभी भी बड़े वैश्विक खिलाड़ियों के साथ मजबूत साझेदारी निभा रहा है।
दिल्ली में पुतिन का गरमजोशी भरा स्वागत
राष्ट्रपति पुतिन गुरुवार देर रात दिल्ली पहुंचे, जहां प्रधानमंत्री मोदी ने प्रोटोकॉल से हटकर स्वयं एयरपोर्ट पर उनका स्वागत किया। दोनों नेताओं के बीच गर्मजोशी भरे आलिंगन ने यह संकेत दे दिया कि भारत-रूस संबंध अब भी विश्व राजनीति में अपनी अलग जगह बनाए हुए हैं।
शुक्रवार को राष्ट्रपति भवन में औपचारिक स्वागत के साथ 21 तोपों की सलामी दी गई। पूरा राष्ट्रपति भवन परिसर भारतीय और रूसी झंडों से सजा हुआ दिखा, और सुरक्षा व्यवस्था अत्यंत कड़ी रही।
पुतिन का कार्यक्रम बेहद व्यस्त है। वे राजघाट जाकर महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि देंगे, व्यापार सम्मेलन में शामिल होंगे और शाम को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मुलाकात करेंगे।
भारत को रूस की जरूरत क्यों है
भारत और रूस की साझेदारी दशकों पुरानी है, लेकिन आज इसकी रणनीतिक महत्ता और बढ़ गई है।
ऊर्जा सुरक्षा
रूस भारत के लिए सबसे बड़ा रियायती कच्चे तेल का स्रोत बनकर उभरा है। इससे न केवल भारत की ऊर्जा जरूरतें पूरी होती हैं, बल्कि महंगाई को नियंत्रित रखने में भी मदद मिलती है। अमेरिका द्वारा अतिरिक्त शुल्क लगाने के बावजूद भारत ने अपने ऊर्जा हितों से समझौता नहीं किया।
रक्षा सहयोग
भारत की सैन्य क्षमता और तैयारियों में रूस की भूमिका ऐतिहासिक रही है। भारत:
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संयुक्त उत्पादन
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स्पेयर पार्ट्स
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रणनीतिक हथियार प्लेटफॉर्म
के लिए अब भी रूस पर भरोसा करता है। इस यात्रा में Su-57 फाइटर जेट और S-500 एयर-डिफेंस सिस्टम पर वार्ता अत्यंत महत्वपूर्ण है।
कूटनीतिक संतुलन
भारत पश्चिमी देशों के साथ अपने रिश्ते मजबूत कर रहा है, लेकिन रूस के साथ जुड़ाव उसे वैश्विक मंचों पर रणनीतिक स्वायत्तता प्रदान करता है। यह संबंध भारत के बहुध्रुवीय विश्व की संकल्पना को मजबूत करता है।
पुतिन की यात्रा में छुपे भू-राजनीतिक संदेश
यात्रा का सबसे बड़ा संकेत यही है कि पश्चिम द्वारा रूस को अलग करने की कोशिश पूरी तरह सफल नहीं हो पाई है।
पिछले महीनों में:
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पुतिन चीन गए
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शी जिनपिंग से मुलाकात की
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वैश्विक मंचों पर रूस के लिए समर्थन जुटाया
अब भारत की यात्रा उसी कूटनीतिक अभियान का हिस्सा है। यह दिखाता है कि रूस अब भी दुनिया की दो सबसे बड़ी उभरती अर्थव्यवस्थाओं—भारत और चीन—के साथ गहरे संबंध बनाए हुए है।
अमेरिकी दबाव और भारत की कूटनीतिक चुनौती
अमेरिका ने हाल ही में भारतीय आयात पर 25 प्रतिशत अतिरिक्त शुल्क लगाया, जिसमें रूस से आने वाला कच्चा तेल भी शामिल था। पश्चिमी देशों, विशेषकर अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी और ब्रिटेन ने कई बार भारत से रूस की आलोचना करने का दबाव बनाया है।
लेकिन भारत ने अपने रुख को स्पष्ट रखा है:
राष्ट्रीय हित सर्वोपरि हैं।
भारतीय विदेश नीति विशेषज्ञों के अनुसार भारत:
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रूस के साथ मित्रता बनाए रखते हुए
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अमेरिका और यूरोप के साथ साझेदारी भी आगे बढ़ा रहा है
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और अंतरराष्ट्रीय दबाव से ऊपर उठकर रणनीतिक स्वायत्तता को प्राथमिकता दे रहा है
इस यात्रा ने इस संतुलन को और भी जटिल लेकिन महत्वपूर्ण बना दिया है।
कौन-कौन से समझौते हो सकते हैं
दोनों देशों के बीच कई महत्वपूर्ण समझौते तय माने जा रहे हैं:
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ऊर्जा और कच्चे तेल की सप्लाई पर नई व्यवस्था
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रक्षा सौदे (Su-57 और S-500 प्रमुख दावेदार)
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व्यापार को डॉलर के बजाय स्थानीय मुद्रा में बढ़ावा
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हाई-टेक, साइबर, स्पेस और शिक्षा क्षेत्र में संयुक्त परियोजनाएँ
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रूस के बाजार में भारतीय उत्पादों के लिए नई आर्थिक पहुंच
इन समझौतों से भारत-रूस संबंधों के अगले दस वर्षों की दिशा तय हो सकती है।
वैश्विक नजरों में मोदी-पुतिन की मुलाकात
यह मुलाकात सिर्फ द्विपक्षीय रिश्तों की नहीं, बल्कि पूरी वैश्विक राजनीति की परीक्षा है।
यूक्रेन युद्ध जारी है, पश्चिम और रूस के रिश्तों में तनाव चरम पर है, और दुनिया तेजी से बहुध्रुवीय व्यवस्था की ओर बढ़ रही है।
ऐसे दौर में रूस के राष्ट्रपति का भारत आना यह संकेत है कि भारत विश्व मंच पर नई भूमिका निभा रहा है—एक ऐसे देश के रूप में जो शक्ति संतुलन में निर्णायक योगदान कर सकता है।
निष्कर्ष:-
भारत-रूस संबंधों का नया अध्याय
राष्ट्रपति पुतिन का यह दौरा ऊर्जा आपूर्ति, रक्षा क्षमताओं, आर्थिक साझेदारी और वैश्विक रणनीति—चारों स्तरों पर भारत-रूस संबंधों को मजबूती देगा।
साथ ही यह संदेश देता है कि नई विश्व व्यवस्था में भारत एक ऐसा राष्ट्र है जो अपनी स्वतंत्र विदेश नीति के साथ, बिना दबाव में आए, दोनों ध्रुवों — पश्चिम और रूस — के साथ संबंध बनाए रखते हुए आगे बढ़ रहा है।
भारत के लिए यह यात्रा इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह आने वाले वर्षों में उसकी ऊर्जा सुरक्षा, रक्षा तैयारी, आर्थिक विस्तार और भू-राजनीतिक प्रभाव को नई दिशा दे सकती है।
