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श्रीलंका में आपातकाल: बाढ़ और भूस्खलन से 330 से अधिक मौतें, हजारों बेघर – देश ने मांगी अंतरराष्ट्रीय मदद

1 दिसम्बर 2025 |✍🏻 Z S Razzaqi |वरिष्ठ पत्रकार  

श्रीलंका इस समय अपनी आधुनिक इतिहास की सबसे भयावह प्राकृतिक आपदाओं में से एक से जूझ रहा है। चक्रवात “Ditwah” के प्रहार के बाद देश के कई हिस्सों में भीषण बाढ़, भूस्खलन और विनाश का ऐसा सिलसिला शुरू हुआ कि देखते ही देखते 330 से अधिक लोगों की जान चली गई, जबकि 200 से ज्यादा लोग अब भी लापता बताए जा रहे हैं।

आपदा प्रबंधन केंद्र के अनुसार, 20,000 से अधिक घर पूरी तरह नष्ट, और 1 लाख 8 हजार से अधिक लोग सरकारी अस्थायी राहत शिविरों में शरण लेने को मजबूर हैं। हालात की गंभीरता को देखते हुए सरकार ने आपातकाल (State of Emergency) की घोषणा कर दी है।

देश का एक-तिहाई हिस्सा अंधेरे में, पानी-बिजली ठप

भारी बारिश और बाढ़ ने बिजली ग्रिड और जलापूर्ति व्यवस्था को बुरी तरह क्षतिग्रस्त कर दिया है। अधिकारियों के मुताबिक, देश का करीब एक-तिहाई हिस्सा बिजली और पीने के पानी दोनों से वंचित है।

केलानी नदी में जलस्तर तेजी से बढ़ रहा है, जिसके चलते कई क्षेत्रों में अनिवार्य Evacuation Orders जारी किए गए हैं। कई पुल और सड़कें टूट चुकी हैं, जिससे राहत दलों के लिए अंदरूनी इलाकों तक पहुँचना बेहद मुश्किल हो रहा है।

राष्ट्रपति का बयान: “देश के इतिहास की सबसे चुनौतीपूर्ण आपदा”

राष्ट्रपति अनुरा कुमारा डिसानायके ने कहा कि इस आपदा का पैमाना इतना बड़ा है कि पुनर्निर्माण की लागत का आकलन करना भी कठिन हो गया है। उन्होंने इसे “देश के इतिहास की सबसे चुनौतीपूर्ण प्राकृतिक त्रासदी” बताया।

सरकार ने अंतरराष्ट्रीय सहायता की अपील की है और विदेशों में रह रहे श्रीलंकाई नागरिकों से भी राहत कोष में योगदान देने की गुज़ारिश की है।

मानवीय त्रासदी: पूरा गांव मलबे में दफन

मध्य श्रीलंका की एक महिला ने बीबीसी को बताया कि उसके इलाके में करीब 15 घर विशाल बोल्डरों और कीचड़ के नीचे दब गए, और कोई भी जीवित नहीं बच पाया

सबसे ज़्यादा मौतों की खबरें कैंडी और बडुल्ला ज़िलों से आई हैं, जहां कई गांव अभी भी बाहरी दुनिया से कटे हुए हैं।

बडुल्ला जिले के मसपन्ना गांव के निवासी समन कुमार ने बताया:
“हमारे गांव में दो लोगों की मौत हुई... बाकी लोग मंदिर और एकमात्र बचे हुए घर में शरण लिए हुए हैं। सभी रास्ते भूस्खलन से बंद हैं, न खाना मिल रहा है, न साफ पानी।”

बुजुर्गों का केयर होम भी डूबा—11 की मौत

कुरुनेगला जिले के एक वृद्धाश्रम में पानी भर जाने से 11 बुजुर्गों की मौत हो गई।
नौसेना और पुलिस ने 24 घंटे तक लगातार बचाव अभियान चलाया।

एक जीवित बचे यात्री ने AFP को बताया:
“हमें नौसेना ने पास की इमारत की छत पर चढ़ाया। हम बहुत किस्मत वाले थे… छत का एक हिस्सा टूटकर गिर गया और तीन महिलाएँ पानी में बह गईं, लेकिन किसी तरह उन्हें फिर से ऊपर खींच लिया गया।”

दक्षिण-पूर्व एशिया में भी चरम बाढ़—क्षेत्रीय संकट गहराता हुआ

इस समय केवल श्रीलंका ही नहीं, बल्कि पूरा दक्षिण-पूर्व एशिया भी भीषण बाढ़ से कराह रहा है।
इंडोनेशिया, मलेशिया और थाईलैंड में लाखों लोग प्रभावित हुए हैं, जिससे पूरे क्षेत्र में मानवीय संकट गहराने की आशंका है।

श्रीलंका में इससे पहले 2003 में इतनी बड़ी बाढ़ आई थी जब 254 लोगों की मौत हुई थी। लेकिन इस बार नुकसान कहीं अधिक बड़ा, व्यापक और बहुआयामी है।

चक्रवात 'Ditwah'—क्यों हुआ इतना विनाश?

हालाँकि यह चक्रवात सीधे श्रीलंका से नहीं टकराया, लेकिन

  • अत्यधिक नमी

  • अनियमित वायु प्रवाह

  • कमजोर हो चुके जलनिकासी तंत्र

  • और पहाड़ी भूभाग पर मूसलाधार बारिश

इन सभी कारणों ने मिलकर आपदा के प्रभाव को कई गुना बढ़ा दिया।

विशेषज्ञों के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण अब छोटे चक्रवात भी भारी विनाश का कारण बन रहे हैं और दक्षिण एशिया में असामान्य मौसम पैटर्न लगातार गहराता जा रहा है।

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क्या आने वाले दिनों में खतरा कम होगा?

मौसम विभाग ने अगले 48 घंटों में

  • कुछ इलाकों में और बारिश

  • नदियों में तेज बहाव

  • तथा और भूस्खलन होने की आशंका

जताई है।
राहत टीमें ड्रोन और हेलिकॉप्टरों की मदद से कटे हुए इलाकों तक पहुँचने की कोशिश कर रही हैं।


निष्कर्ष:-

श्रीलंका आज अपने इतिहास की सबसे कठिन प्राकृतिक परीक्षा से गुजर रहा है।
यह आपदा न सिर्फ बुनियादी ढांचे को चुनौती दे रही है, बल्कि जलवायु परिवर्तन और आपदा-प्रबंधन क्षमता पर भी गंभीर सवाल उठाती है।
आने वाले हफ्तों में राहत, पुनर्वास और पुनर्निर्माण—तीनों ही मोर्चों पर देश को बड़े पैमाने पर अंतरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता होगी।







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