राहुल गांधी का संयत जवाब: राजनैतिक शोर में “नो कमेंट”
प्रधानमंत्री मोदी ने विपक्ष की बिहार हार को निशाना बनाते हुए कहा था कि संसद “मेल्टडाउन की जगह” नहीं बननी चाहिए। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए राहुल गांधी ने मात्र दो शब्द कहे—“नो कमेंट”।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह प्रतिक्रिया एक सोची-समझी रणनीति है, जिससे कांग्रेस नेतृत्व अनावश्यक विवाद में उलझने से बचना चाहता है और सत्र के गंभीर मुद्दों पर फोकस रखना चाहता है।
प्रियंका गांधी का तीखा जवाब: “जनहित के सवाल उठाना ड्रामा नहीं, संसद का कर्तव्य”
प्रियंका गांधी ने प्रधानमंत्री के बयान को कठोर शब्दों में खारिज किया और कहा:
“SIR से लेकर प्रदूषण तक—ये जनता के जीवन से जुड़े मुद्दे हैं। संसद इन्हीं पर चर्चा करने के लिए है। इन्हें उठाना ड्रामा नहीं। असली ड्रामा तब होता है जब जनहित पर बातचीत रोकी जाती है और लोकतांत्रिक सवालों से बचा जाता है।”
विपक्ष का गंभीर आरोप: “प्रधानमंत्री की प्राथमिकता विपक्ष को दबाना, न कि मुद्दों का समाधान”
सत्र से ठीक पहले विपक्षी दलों में यह चर्चा ज़ोर पकड़ रही है कि प्रधानमंत्री मोदी की राजनीति का केंद्रबिंदु अब विपक्ष पर दबाव बनाना, धमकी भरी भाषा, और व्यंग्यपूर्ण कटाक्षों से माहौल को नियंत्रित करना बन चुका है।
विपक्ष का कहना है कि—
-
प्रधानमंत्री कभी भी महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दों पर सकारात्मक, ठोस जवाब देते दिखाई नहीं देते।
-
संसद में उनकी उपस्थिति अक्सर विपक्ष पर कटाक्ष और आरोपों तक ही सीमित रहती है।
-
देश के अहम विषय—जैसे भारतीय सेना का बजट, शिक्षा में सुधार, स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता, सुरक्षा अवसंरचना, और रणनीतिक योजनाएँ—इन पर चर्चा की उम्मीदें लगातार अधूरी रह जाती हैं।
कल का बयान: विपक्ष इसे ‘एक विधायक स्तर की टिप्पणी’ बता रहा है
कई विपक्षी नेताओं ने प्रधानमंत्री के बयान को एक “राष्ट्रीय नेता के स्तर के अनुरूप” नहीं बताया। उनका कहना है कि:
-
यह बयान ऐसा लग रहा था जैसे कोई “स्थानीय विधायक या पार्टी कार्यकर्ता चुनावी जीत का उत्सव मनाते हुए विपक्ष को चिढ़ा रहा हो।”
-
प्रधानमंत्री यदि चाहें तो ऐसे अवसरों पर राष्ट्रहित से जुड़े कामों और उपलब्धियों पर विस्तार से बात कर सकते थे।
-
लेकिन संसद सत्र शुरू होने से ठीक पहले इस तरह के तीखे तंज का उद्देश्य सिर्फ विपक्ष को परेशान और कमजोर करना था।
विपक्ष की आलोचना: “प्रधानमंत्री मुद्दों से बचते हैं, बहस से नहीं”
विपक्ष का आरोप है:
-
प्रधानमंत्री संसद में आते हैं,
-
विपक्ष पर कठोर भाषा में हमला करते हैं,
-
फिर तुरंत निकल जाते हैं—
बिना यह बताए कि सरकार सेना, शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण, रोजगार या कृषि जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में क्या ठोस काम कर रही है या करने वाली है।
विपक्ष इसे एक “नए राजनीतिक सामान्य” के रूप में देख रहा है, जहाँ:
-
राष्ट्रीय मुद्दों से बचना,
-
विपक्ष को डराना या दबाना,
-
और संसद को केवल संदेश देने का मंच बनाना—
एक रणनीति बन चुका है।
प्रधानमंत्री का तंज: “ड्रामा नहीं, डिलीवरी हो” — विपक्ष की नाराज़गी और बढ़ी
प्रधानमंत्री ने कहा कि:
-
“जो लोग ड्रामा करना चाहते हैं, उन्हें संसद को उसकी जगह समझनी चाहिए।”
-
“नेगेटिविटी की भी सीमा होती है।”
-
“कुछ पार्टियाँ गुस्सा संसद में निकालती हैं।”
इस बयान को लेकर विपक्ष में भारी असंतोष है। विपक्ष का कहना है कि सरकार हर आलोचना को ‘ड्रामा’ बताकर असल सवालों से बच रही है।
शीतकालीन सत्र: मुद्दे बड़े, तनाव उससे भी बड़ा
1 दिसंबर से 19 दिसंबर तक चलने वाले इस शीतकालीन सत्र में:
-
15 बैठकें,
-
13 नए विधेयक,
-
और SIR (Special Intensive Revision of Voter Lists) सबसे बड़ा टकराव का केंद्र बनने वाला है।
विपक्ष का दावा है कि SIR के बहाने मतदाता सूचियों में बड़े पैमाने पर राजनीतिक हस्तक्षेप हो रहा है, और वे इसे संसद में प्रमुख मुद्दा बनाएंगे।
निष्कर्ष: संसद में आने वाले दिनों में तीखी राजनीतिक भिड़ंत तय
प्रधानमंत्री मोदी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के बयानों के बाद यह साफ हो गया है कि शीतकालीन सत्र महज़ विधायी गतिविधियों तक सीमित नहीं रहेगा।
यह सत्र बनेगा—
-
लोकतांत्रिक जवाबदेही बनाम सत्ताधारी आत्मविश्वास,
-
मुद्दों पर बहस बनाम राजनीतिक कटाक्ष,
-
और विपक्ष की मजबूती बनाम सरकार की रणनीति—
के बीच की सीधी टक्कर का मैदान।
