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चुनावी आयोग के SIR आदेश पर बड़ा खुलासा: ड्राफ्ट में ‘Citizenship Act’ का ज़िक्र, अंतिम आदेश में हटाया गया

 2 दिसंबर 2025 |✍🏻 Z S Razzaqi |वरिष्ठ पत्रकार 

भारत में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) को लेकर 24 जून के आदेश के भीतर कई महत्वपूर्ण तथ्य सामने आए हैं। दस्तावेज़ों और आधिकारिक फाइल नोटिंग की समीक्षा से यह स्पष्ट हुआ है कि चुनाव आयुक्त सुखबीर सिंह संधू (EC Sandhu) ने ड्राफ्ट आदेश में सच्चे मतदाताओं और संवेदनशील समूहों को किसी भी प्रकार की उत्पीड़न-स्थिति में न डालने को लेकर सख्त चेतावनी दी थी।

संधू ने अपने लिखित नोट में उल्लेख किया था कि यह प्रक्रिया उन लोगों के लिए बोझिल या भय का कारण न बने जो पहले से ही उम्र, बीमारी, दिव्यांगता या गरीबी जैसी परिस्थितियों से जूझ रहे हैं। ड्राफ्ट आदेश में यह टिप्पणी उसी दिन दर्ज की गई, जिस दिन आयोग ने SIR को लागू करने का निर्णय लिया।

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ड्राफ्ट आदेश उसी दिन व्हाट्सऐप पर मंजूर, तात्कालिकता ने कई सवाल खड़े किए

सूत्रों के अनुसार, 24 जून को ही ड्राफ्ट आदेश को व्हाट्सऐप के माध्यम से मंजूरी दी गई, जो इस प्रक्रिया की असामान्य जल्दबाज़ी को दर्शाता है। उसी शाम को अंतिम आदेश सार्वजनिक भी कर दिया गया।

यह संकेत देता है कि SIR को तुरंत लागू करने का दबाव या तात्कालिकता पहले से मौजूद थी—जबकि यह प्रक्रिया देशभर के करोड़ों मतदाताओं को सीधे प्रभावित करती है।


ड्राफ्ट में ‘Citizenship Act’ का स्पष्ट उल्लेख—परंतु अंतिम आदेश में गायब

सबसे महत्वपूर्ण विरोधाभास ड्राफ्ट और फाइनल आदेश के बीच नज़र आता है।

ड्राफ्ट आदेश में स्पष्ट रूप से Citizenship Act, 1955 और इसके 2004 के बड़े संशोधन का हवाला दिया गया था, यह कहते हुए कि:

  • आयोग की संवैधानिक जिम्मेदारी है कि केवल वही लोग मतदाता सूची में शामिल हों जो भारतीय नागरिक हों

  • 2004 में नागरिकता कानून में संशोधन के बाद से देशभर में कोई व्यापक पुनरीक्षण नहीं किया गया

परंतु अंतिम आदेश में Citizenship Act का सारा संदर्भ हटा दिया गया

यह बदलाव न केवल चौंकाने वाला है, बल्कि यह सवाल भी खड़ा करता है कि—
क्या नागरिकता से जुड़े संवेदनशील राजनीतिक विवादों से बचने के लिए यह संशोधन किया गया?


फाइनल आदेश के पैराग्राफ 8 में अचानक टूटी हुई पंक्ति: आयोग ने चुप्पी साधी

24 जून के अंतिम आदेश के पैराग्राफ 8 में लिखा गया:

“Whereas, one of the fundamental pre-conditions set out in Article 326 of the Constitution is that a person is required to be an Indian citizen, for his/her name to be registered in the electoral roll. Consequently, the Commission has a constitutional obligation to ensure that only persons who are citizens;”

लेकिन यह वाक्य सेमीकोलन के बाद अचानक टूट जाता है।
वाक्य अधूरा है, और अब तक आयोग ने इस त्रुटि पर कोई बयान जारी नहीं किया है

यह अधूरा वाक्य इस बात का संकेत माना जा रहा है कि ड्राफ्ट से अंतिम आदेश तैयार करते समय महत्वपूर्ण संपादन हुए, और संभवतः कुछ भाग हटाए गए हैं।


संधू की चेतावनी को अंतिम आदेश में शामिल किया गया—पर बिना श्रेय दिए

भारतीय चुनाव आयोग ने अंतिम आदेश में संधू की चेतावनी को अपने शब्दों में शामिल किया, लेकिन उनके नाम का उल्लेख नहीं किया।
पैराग्राफ 13 में कहा गया:

“…genuine electors, particularly old, sick, PwD, poor and other vulnerable groups are not harassed and are facilitated to the extent possible…”

यह उसी चिंता का स्वर है जो संधू ने ड्राफ्ट में दर्ज की थी।


चुनावी प्रक्रिया पर उठ रहे व्यापक सवाल

यह पूरा प्रकरण कई महत्वपूर्ण प्रश्न उठाता है:

  1. ड्राफ्ट और फाइनल आदेश में ‘Citizenship Act’ हटाए जाने का कारण क्या था?

  2. क्या SIR का उद्देश्य केवल मतदाता सूची अपडेट करना था या नागरिकता सत्यापन से भी जुड़ा था?

  3. व्हाट्सऐप पर ड्राफ्ट मंजूरी देना आयोग के मानक प्रक्रियाओं के अनुरूप है?

  4. अधूरे वाक्य पर आयोग की चुप्पी क्या किसी बड़े संशोधन की ओर संकेत करती है?

चूंकि यह आदेश देशव्यापी मतदाता सूची पुनरीक्षण का आधार है, इसलिए इसमें हुई हर छोटी-बड़ी संपादकीय प्रक्रिया का महत्व अत्यधिक है।


EC और आयुक्त संधू—दोनों की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं

The Indian Express द्वारा किए गए औपचारिक प्रश्नों पर:

  • आयोग के प्रवक्ता ने कोई टिप्पणी नहीं दी

  • आयुक्त संधू से संपर्क किया गया, पर वे उपलब्ध नहीं हुए

इससे स्पष्ट है कि यह मामला अभी भी संवेदनशील है और आधिकारिक प्रतिक्रिया आने में समय लग सकता है।


निष्कर्ष:-

चुनावी आयोग द्वारा जारी 24 जून का SIR आदेश अब केवल एक प्रशासनिक दस्तावेज़ नहीं रहा। ड्राफ्ट और फाइनल आदेश के बीच हुए विरोधाभास, अधूरे वाक्य, हटाए गए उद्धरण और तात्कालिक अनुमोदन—ये सभी व्यापक राजनीतिक और संवैधानिक बहस को जन्म दे रहे हैं।

भारत जैसे विशाल लोकतंत्र में मतदाता सूची का पुनरीक्षण बेहद महत्वपूर्ण कार्य है। ऐसे में इसकी पारदर्शिता, प्रक्रियागत शुद्धता और नागरिकों के अधिकारों के प्रति संवेदनशीलता सर्वोपरि होनी चाहिए।







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