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बंगाल में SIR विवाद गहराया: ECI–TMC टकराव के बीच राष्ट्रीय स्तर पर उठ रहे गंभीर सवाल

  25 नवंबर 2025 |✍🏻 Z S Razzaqi |वरिष्ठ पत्रकार  

पश्चिम बंगाल में मतदाता सूचियों की Special Intensive Revision (SIR) को लेकर विवाद अब राज्य की राजनीति की सीमाओं से बाहर निकलकर एक राष्ट्रव्यापी बहस का रूप ले चुका है। जहाँ ECI और TMC के बीच शुक्रवार को हुई बैठक में तीखी नोकझोंक सामने आई, वहीं SIR प्रक्रिया को लेकर कई अन्य राजनीतिक दल पहले से ही अपने आरोप दर्ज करा चुके हैं।

दरअसल, BJP को छोड़कर लगभग सभी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों ने वर्षों से SIR या इसी प्रकार की संशोधन प्रक्रियाओं पर सवाल उठाए हैं।
पार्टियों का आरोप है कि चुनाव आयोग कई बार शिकायतों का जवाब नहीं देता, और अदालतों में पूछे जाने पर अक्सर यह कहकर पल्ला झाड़ लेता है कि “डेटा डिलीट कर दिया गया है”—यह रुख अब गहरी अविश्वसनीयता पैदा कर रहा है।

Symbolic Image 

इन कथित अनियमितताओं, सवालों और आरोपों के बीच SIR का काम तेज गति से जारी है, जिससे राजनीतिक घमासान और बढ़ गया है।


ECI बनाम TMC: तीखी बैठक, सख्त चेतावनियाँ

शुक्रवार को हुई बैठक में ECI ने TMC के आरोपों को “बेसलेस” बताते हुए कहा कि पार्टी:

  • BLOs, EROs या DEOs को किसी रूप में प्रभावित न करे,

  • 9 दिसंबर को ड्राफ्ट रोल आने तक अनावश्यक दबाव न बनाए,

  • और मृत, स्थानांतरित या डुप्लीकेट मतदाताओं पर BLOs को धमकाने की कोशिश न करे।

ECI ने यह भी दोहराया कि मताधिकार केवल भारतीय नागरिकों का अधिकार है—एक भी विदेशी का नाम वोटर लिस्ट में होना अस्वीकार्य है।


राजनीतिक दलों का बड़ा आरोप: “SIR से एक विशेष पार्टी को लाभ पहुँचाया जा रहा है”

पश्चिम बंगाल से उठी यह बहस अब बड़े राजनीतिक विमर्श में बदल चुकी है। कई दलों का कहना है कि:

  • SIR के ज़रिए मतदाता सूचियों में लक्षित संशोधन किए जा रहे हैं,

  • प्रक्रिया के दौरान एक खास राजनीतिक दल को लाभ पहुँचाने की कोशिश हो रही है,

  • और SIR की पूरी संरचना नीतिगत रूप से संदेहास्पद है।

राजनीतिक दलों का यह भी आरोप है कि अनियमितताओं और सैकड़ों शिकायतों के बावजूद SIR को तेज़ी से आगे बढ़ाया जा रहा है—मानो यह प्रक्रिया किसी “पूर्व-निर्धारित राजनीतिक उद्देश्य” की पूर्ति का साधन बन चुकी हो।


सबसे बड़ी चिंता: सुप्रीम कोर्ट की चुप्पी पर सवाल

इस पूरे विवाद का सबसे संवेदनशील पहलू यह है कि कई राजनीतिक दल और विश्लेषक इस बात पर हैरानी जताते हैं कि:

“जिस मामले में सुप्रीम कोर्ट को स्वतः संज्ञान लेकर प्रक्रिया रोक देनी चाहिए थी, उसी प्रक्रिया को तकनीकी बहानों के सहारे आगे बढ़ने दिया जा रहा है।”

कई विपक्षी दल इसे भारतीय लोकतंत्र की पारदर्शिता पर बड़ा आघात बताते हुए कह रहे हैं कि:

  • उच्चतम न्यायालय की निष्क्रियता ने

  • संवैधानिक संस्थाओं की साख को गंभीर प्रश्नों के घेरे में डाल दिया है,

  • और यह स्थिति भारत के इतिहास में एक काला अध्याय के रूप में दर्ज हो सकती है।

दल यह भी दावा कर रहे हैं कि अदालत में हुई कई सुनवाइयों के दौरान ECI ने जो जवाब दिए—विशेषकर “डेटा डिलीट किए जाने” वाले बयान—उन्होंने जनता के भरोसे को और कमजोर किया है।


ECI की कड़ी कार्रवाई और सख्त निर्देश

विवाद के बीच ECI ने कई प्रशासनिक कदम उठाए हैं:

✔ विशेष रोल ऑब्जर्वर की नियुक्ति

SIR प्रक्रिया की निगरानी के लिए उच्च-स्तरीय अधिकारी तैनात किया गया।

✔ राज्य DGP और कोलकाता पुलिस को निर्देश

किसी भी BLO पर राजनीतिक दबाव न पड़े—इसके लिए सख्त सुरक्षा उपायों का आदेश।

✔ नए पोलिंग स्टेशन

झुग्गियों, हाई-राइज़ और गेटेड सोसाइटीज़ में नए केंद्र खोलने के निर्देश।

✔ CEO ऑफिस की सुरक्षा व्यवस्था

हालिया सुरक्षा उल्लंघन के बाद कार्यालय को अधिक सुरक्षित परिसर में स्थानांतरित करने का आदेश।


TMC का आंतरिक पुनर्गठन: ज़मीनी स्तर पर ‘वार रूम मोड’

ECI से जारी टकराव के बीच TMC ने SIR में बेहतर समन्वय और नियंत्रण के लिए एक बड़ा आंतरिक फेरबदल शुरू कर दिया है।

  • अभिषेक बनर्जी ने 9 वरिष्ठ नेताओं को जिलों में भेजा।

  • सभी को निर्देश:
    “नौ दिनों का सामान पैक करें, पार्टी ऑफिस नहीं, वार रूम से काम करें।”

उन्होंने उन नेताओं के नाम भी बताए जिनकी फील्ड उपस्थिति “असंतोषजनक” पाई गई।
अभिषेक बनर्जी का कहना है कि ऐसी लापरवाही 2026 चुनाव से पहले “राजनीतिक बारूदी सुरंगें” पैदा कर सकती है।



निष्कर्ष:-
 SIR अब केवल तकनीकी प्रक्रिया नहीं, बल्कि राष्ट्रीय बहस का केंद्र
पश्चिम बंगाल में शुरू हुआ यह विवाद अब तीन बड़े स्तरों पर फैल चुका है:

राज्य बनाम ECI टकराव
राष्ट्रव्यापी दलों द्वारा चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर सवाल
सुप्रीम कोर्ट की भूमिका और चुप्पी पर गंभीर चर्चा
SIR अब सिर्फ मतदाता सूची सुधार का कार्यक्रम नहीं रहा—यह भारत की चुनावी पारदर्शिता, संवैधानिक संस्थाओं की विश्वसनीयता और राजनीतिक अखंडता पर उठ रहे गहरे प्रश्नों का प्रतीक बन चुका है।
आने वाले हफ्ते, खासकर 9 दिसंबर के बाद, यह विवाद किस दिशा में जाता है, इस पर पूरे देश की निगाहें टिकी रहेंगी।


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